बॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे कई संघर्ष भरी कहानियां भी होती हैं। इंडस्ट्री में आउटसाइडर्स का सफर काफी मुश्किल होता है और ऐसा ही कुछ था दिग्गज अभिनेता अनुपम खेर के साथ। अनुपम ने बिना किसी गॉडफादर के इस फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाई थी। हाल ही में एक इंटरव्यू में अनुपम खेर ने अपने संघर्ष के दिनों का जिक्र किया और अपने पिता के निधन की भावुक यादें भी शेयर कीं।

अनुपम खेर के पिता की मौत और उनका आखिरी संदेश

अनुपम खेर ने इस बातचीत में अपनी ज़िंदगी के सबसे भावुक पल का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि उनके पिता की मौत भूख से हुई क्योंकि उन्हें एक अजीब बीमारी हो गई थी। अनुपम ने बताया,
“उन्हें एक अजीब बीमारी हो गई थी। खाना उन्हें रेत जैसा लगता था और पानी एसिड जैसा। वो सब फेंक देते थे। धीरे-धीरे वो बहुत कमजोर हो गए।”

आखिरी समय में, अनुपम के पिता के पास लिखने की ताकत भी नहीं बची थी। उन्होंने कुछ लिखने की कोशिश की, लेकिन केवल कुछ लाइनें बना पाए।

तबाह कइले बानी: अक्षरा सिंह और मोनालीसा संग झूमे पवन सिंह, सावन में वायरल हुआ ‘दिल बोले बम बम’

अनुपम ने कहा, “मैंने बस सामान्य तरीके से जवाब दिया- ‘हां, बिल्कुल।’ वो थोड़ा निराश दिखे। फिर उन्होंने मुझे पास बुलाया। मैं झुका, कान उनके मुंह के पास ले गया। और वो आदमी, जो अगले 20 मिनट में मरने वाला था, उसने मुझसे दो शब्द कहे- ‘जिंदगी जीओ।’ यह अविश्वसनीय था। एक मरता हुआ आदमी… आपको जिंदगी जीने की सलाह दे रहा था। क्योंकि उसने अपनी जिंदगी जी ली थी।”

बोल बम बोले देवघर’ सावन में छाया दिनेश लाल यादव निरहुआ और आम्रपाली दुबे का गाना, दिखी कांवर की पॉवर

मुंबई में शुरुआती दिन बेहद कठिन थे – अनुपम खेर

अनुपम खेर ने इसी इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने 27 दिन मुंबई के बांद्रा स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर गुजारे। उन्होंने कहा,
“संघर्ष के दिन बहुत मुश्किल थे। मैं बांद्रा ईस्ट के प्लेटफॉर्म पर 27 दिन सोया। पुलिस वाले मुझे नहीं भगाते थे क्योंकि मैं रात 1:20 बजे सोता था, जब आखिरी ट्रेन निकल जाती थी। एक पुलिसवाले बहुत अच्छे थे। मैं चार साल पहले उनके बेटे से मिला। उसने कहा, ‘आपको याद है, वो पुलिस वाले कितने अच्छे थे।’ दुनिया में बहुत दयालु लोग हैं।”

बंद हुआ ULLU App, अश्लीलता फैलाने वाले 25 ऐप को सरकार ने किया बैन, लिस्ट में ये बड़े नाम भी शामिल

उन्होंने यह भी कहा कि उस समय फिल्मों का माहौल अलग था। काम न होने के बावजूद डायरेक्टर्स और राइटर्स मिलते थे। इन्हीं मुलाकातों में उनकी ज़िंदगी बदलने वाली एक मुलाकात हुई– महेश भट्ट से, जिन्होंने उन्हें फिल्म सारांश (1984) में कास्ट किया। यह रोल उनकी ज़िंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।