Adipurush Movie Review, Rating in Hindi: ‘कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की तो जलेगी भी तेरे बाप की।’ ये वो डायलॉग है जो हनुमान रावण पुत्र मेघनाथ से कहते हैं। वहीं एक जगह हनुमान लंका लगाने की बात कहते हैं। जब हनुमान अशोक वाटिका पहुंचते हैं तो धाकड़ासुर उनसे कहता है कि ‘क्या ये तेरी बुआ का बगीचा है? तू अपनी जान से हाथ धोएगा’, जवाब में हनुमान जी कहते हैं, ‘और मैं धकड़ा को धोऊंगा।’ अब हनुमान जी ऐसे डायलॉग बोलेंगे तो हॉल में सीटियां उस वक्त जरूर बज जाएं मगर धीरे-धीरे आपको एहसास होगा कि आप जो उम्मीद लेकर थियेटर में आए हैं वो उम्मीद पूरी नहीं होगी। फिल्म के डायलॉग मनोज मुंतशिर ने लिखे हैं और वो इस मेस के लिए जिम्मेदार हैं।
फिल्म में दिखाया गया है कि राघव अपनी पत्नी जानकी और भाई शेष के साथ जंगल में वनवास काट रहे हैं। शूर्पणखा की नाक में शेष ने बाण चला दिया, राम शूर्पणखा के आगे हाथ जोड़ते हैं और शूर्पणखा लंकेश को जानकी की खूबसूरती के बारे में बताती है। जानकी का अपहरण, शबरी के बेर, राघव-बजरंग का मिलन, समुद्र सेतु से होते हुए फिल्म अपने आखिरी चरण युद्ध तक पहुंचती है।
अब इन सीक्वेंस में बहुत सारी दिक्कतें हैं लेकिन पहले कुछ अच्छाईयों के बात करते हैं। फर्स्ट हाफ में कई ऐसे सीन हैं जो गूजबंप्स देते हैं। जैसे राम और हनुमान का मिलन। राम सिया राम गाना और रावण का शिव जी के लिए गाया गाना, ये कुछ सीन आपके रोंगटे खड़े करने में कामयाब होते हैं। मगर फिल्म में इतनी दिक्कतें हैं कि आप चाहकर भी फिल्म से खुद को अटैच नहीं कर पाएंगे।
पहली बात तो फिल्म में प्रचलित नाम न इस्तेमाल करते उनके दूसरे नामों का इस्तेमाल किया गया है, लक्ष्मण को शेष कहने का क्या औचित्य था। वहीं राम सीता में जो बात है वो राघव और जानकी के साथ नहीं आती है। मेघनाथ को इंद्रजीत, रावण को लंकेश कहकर ही हर जगह संबोधित किया गया है। जटायू एक गिद्ध था मगर इस फिल्म में बाज दिखाया गया है। प्रभास को देखकर श्रीराम की फीलिंग कम आती है उन्हें देखकर बाहुबली की याद ज्यादा जाती है। फिल्म के राक्षस किसी गेम के विलेन लगते हैं। रावण, मेघनाथ, विभीषण का लुक देखकर भी हैरानी होती है। शूर्पणखा जब मदिरा पीते हुए मंदोदरी से बात करती है तब ऐसा लगता है कि कॉकटेल पार्टी की दो महिलाएं बात कर रही हैं। इतना ही नहीं रावण की हाई-फाई लंका में लिफ्ट भी है।
फिल्म में ऐसे सीन हैं जो ना वाल्मीकि की रामायण में है न ही तुलसीदास के राम चरित मानस में। लक्ष्मण जब मूर्छित होते हैं तो हम सभी को पता है वैद्य सुषेण को बुलाया जाता है मगर इस फिल्म में संजीवनी के बारे में न सिर्फ विभीषण की पत्नी बताती हैं बल्कि इलाज भी वही करती हैं। रामायण के एक एक सीन से लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं जिन्हें आहत करने की जरूरत ही नहीं थी। युद्ध का सीक्वेंस बहुत बोरिंग है, लंबे-लंबे सिर्फ वीएफएक्स के सीक्वेंस चल रहे हैं जहां कोई डायलॉग नहीं है, ऐसा लगता है किसी वीडियो गेम में हीरो और विलेन की लड़ाई चल रही है। पूरी फिल्म किसी एनिमेशन फिल्म जैसी लगती है जिसमें वीएफएक्स की क्लालिटी भी खराब है।
हनुमान जी का राम को पीठ पर बिठाकर उड़ना, रावण का वध, मेघनाथ और कुंभकर्ण का वध ये सारे सीक्वेंस आपको सिर्फ और सिर्फ निराश करेंगे।
अगर आप बच्चों को हिंदू महाकाव्य के बारे में जानकारी देना चाहते हैं तो उन्हें ‘आदिपुरुष’ दिखाने की जरूरत नहीं है, इसे आप एक फिल्म के तौर पर भले देख लें मगर रामायण वाली श्रद्धा के साथ न देखें। इतने बड़े बजट में बनी ये फिल्म निराशाजनक है।