निर्देशक-एजाज गुलाब, कलाकार-नाना पाटेकर, गुल पनाग, विक्रम गोखले, आशुतोष राणा।

जब पहली बार अब तक छप्पन बनी थी तो उसे बनाने वाले निर्देशक थे शिमित अमीन। अब तक छप्पन -2 के निर्देशक वे नहीं है। इसे निर्देशित किया है एजाज गुलाब ने। फिल्म वैसे तो सिक्वेल के रूप में बनी है लेकिन इसमें वो दम नहीं है जो पहली फिल्म में था। हालांकि दोनों के मुख्य किरदार एक ही हैं- नाना पाटेकर। लेकिन वक्त बदल गया है और बदले वक्त में इस फिल्म की विचारधारा और पुलिसिया तरीके को वैसी स्वीकृति नहीं मिल सकती है जैसी पहली फिल्म को मिली थी। पहली फिल्म दया नायक के जीवन पर बनी थी जो मुंबई पुलिस का अधिकारी था। बाद में दया नायक के बारे में कई कहानियां आईं और वो आम जिंदगी में नायक से दर्जे से गिर गया।

नाना पाटेकर ने पहले की ही तरह साधु अगाशे नाम के पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई है जो निलंबित होने के बाद अपने बेटे का साथ शांत जीवन गुजार रहा है। लेकिन इसी बीच मुंबई में अडरवर्ल्ड की ताकत बढ़ गई है और पुलिस कमिश्नर को लगता है कि साधु ही इससे निपट सकता है। साधु को फिर से बुलाया जाता है और वो अंडरवर्ल्ड के अपराधियों से निपटना शुरू कर देता है। इस बीच विभाग में कई ऐसे लोग हैं जो अंडरवर्ल्ड की मदद करते हैं साधु उन सबको बेनकाब करता है।

फिल्म देखने के बाद ऐसा लगता है कि उस दौर का एक्शन रिप्ले देख रहे हैं जो काफी पहले बीत चुका है। आज के जमाने में अपराधियों से जितनी साठगांठ नेताओं की रहती है उतनी ही पुलिस की रहती है। जमाना बदल गया और हकीकत भी इसलिए फिल्म की कहानी भी बदलनी चाहिए और वही नहीं बदली। सिर्फ पुराना नाम रख लेने से क्या होता है।