वही ‘राम और श्याम’, ‘सीता और गीता’ और ‘राउडी राठौर’ वाला मामला है। एक जैसे दिखनेवाले दो शख्स। वे दो अलग-अलग शख्स हैं या जुड़वा हैं या कुछ और मामला है यानी एक पुरानी शैली की नई फिल्म है ‘ए जेंटलमैन’। सिद्धार्थ मल्होत्रा ने दो लोगों के किरदार निभाए हैं। पहला है गौरव और दूसरा है ऋषि। गौरव शरीफ है। एक दम सुशील और आर्थिक रूप से बेहतर। एक दम जेंटलमैन। वह मियामी में रहता है। काव्या (जैक्लीन फर्नांडीज) से प्रेम करता है। काव्या स्मार्ट है, रोमांटिक भी। गौरव उसे अच्छा लगता है। लेकिन बोरिंग भी। दूसरी ओर ये पाती है कि जब वही शख्स उसके सामने ऋषि के रूप में आता है, तो अच्छा लगता है। गौरव में जोखम मोल लेने की क्षमता है। पर क्या वह ऋषि पर पूरी तरह अपने भविष्य को लेकर भरोसा कर सकती है। काव्या असमंजस में है। असल में गौरव और ऋषि के चेहरे मिलते-जुलते हैं इसलिए भी काव्या भ्रमित रहती है।
‘ए जेंटलमैन’ कई देशों की सैर करानेवाली फिल्म है। मियामी; अमेरिका से लेकर थाइलैंड और भारत। यानी सौ-डेढ़ सौ… आपने कितने का टिकट खरीदा है इससे तय होता है। कई शहरों और देशों के दृश्य दिखा देती है। फिल्म हास्य और एक्शन से भरपूर है। सुनील शेट्टी ने इसमें कर्नल नाम के ऐसे शख्स का किरदार निभाया है, जो अपराधियों का एक गैंग चलाता है। ऋषि अपने अपराधिक जीवन से ऊब चुका है और सब कुछ छोड़छाड़कर सामान्य जिंदगी बिताना चाहता है। लेकिन कर्नल उससे कहता है कि बस एक आखिरी मामले में उसका सहयोग करे, फिर वो चाहे जैसे अपनी जिंदगी बिताए। ऋषि उसका कहा मान लेता है। उसे मुंबई जाना है। क्या इस मामले से गौरव का भी कुछ लेना देना है? ये फंदा है या ऋषि की मुक्ति का अवसर? जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है गुत्थियां उलझती जाती है।
इसमें संदेह नहीं है कि सिद्धार्थ मल्होत्रा ने दो तरह के व्यक्तित्वों वाला किरदार निभाकर एक चुनौती स्वीकारी है और दोनों में वे सफल रहे हैं। गौरव और ऋषि दोनों ही चरित्र अपनी-अपनी जगह प्रभावशाली हैं। एक्शन के दृश्यों में भी सिद्धार्थ धांसू लगते हैं। हालांकि काव्या की भूमिका में जैक्लीन फर्नांडीज के पास करने के लिए कुछ खास नहीं है। फिर भी जिस तरह से उनका मेकअप किया गया है और जैसी उनकी वस्त्रसज्जा है उसमें वे बेहद असरदार लगी हैं। एकदम ग्लैमरस। पर फिल्म की कहानी इंटरवल के बाद कुछ ढीली हो जाती है। फिल्म का गाना, ‘बंदूक मेरी लैला…’ लबों पर बैठनेवाला है। आखिरी खुलासा थोड़ा ढीला ढाला हो गया है और निर्देशकीय पकड़ छूट गई है।