बिहार विधानसभा चुनाव में अपने प्र्त्याशियों को जिताने के लिए नीतीश कुमार अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। पिछले सप्ताह सारन की एक रैली में वह जनसभा को संबोधित करते-करते ही आपा खो बैठे। दरअसल सभा में कुछ लोग लालू जिंदाबाद के नारे लगाने लगे थे। इसपर नीतीश ने कहा, ‘वोट नहीं देना है तो न दो, लेकिन यहां से चले जाओ।’ इसके बाद शनिवार को नीतीश कुमार एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। कुछ लोगों के विरोधी स्वर देखकर उन्हें फिर कहना पड़ा, ‘तुम वोट मत देना।’ सवाल यह है कि आखिर नीतीश को गुस्सा क्यों आ रहा है? क्या बिहार में उनके सामने चुनौतियां विकट रूप ले चुकी हैं?
नीतीश कुमार ने सासाराम की जनसभा के दौरान यह माना कि इस बार का चुनाव पहले से अलग है। 28 अक्टूबर को होने वाले पहले चरण के मतदान से पहले इंडियन एक्सप्रेस ने वे तीन चुनौतियों को सामने लाने की कोशिश की है जो कि उन्हें दोबारा सीएम बनाने की राह में रोड़ा बन सकती हैं।
ऐंटी इनकंबेंसी और थकान
दिनारा विधानसभा सीट के खैरिही गांव का एक ग्रामीण कहता है, ‘इन 15 सालों में नीतीश कुमार ने मूलभूत चीजें दी हैं जैसे सड़क, पीने का पानी और बिजली। अब अगले कार्यकाल में वह खेतों तक पानी पहुंचाना चाहते हैं। क्या रोजगार देने में उन्हें अभी 50 साल लग जाएंगे?’ स्पष्ट है कि नीतीश के कार्यकाल में कई सुधार हुए लेकिन वोटर अब इससे ज्यादा की उम्मीद कर रहा है। बिहार में अब भी रोजगार, उद्योग और पलायन की दिक्कत है। कोरोना के बाद नीतीश के लिए यह चुनौती और बढ़ गई है क्योंकि दूसरे राज्यों में रहने वाले प्रवासी मजदूर वापस आ गए हैं और उनके सामने रोजगार का बड़ा संकट खड़ा है। ऐसे में वे सरकार से रोजगार की उम्मीद रखते हैं औऱ असंतुष्ट नजर आते हैं।
बिहार सरकार ने 17 लाख प्रवासियों की स्किल मैपिंग की है और उन्हें रोजगार देने का वादा किया है, बावजूद इसके कई तरह के सवाल हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि यह संकट क्यों खड़ा हुआ? पिछले 15 सालों में नीतीश सरकार ने इस दिशा में काम क्यो नहीं किया? बिहार में शराब बंदी के बाद भी लोग सरकार से नाराज नजर आए थे। शिकायत यह भी है कि बिहार में शराबबंदी से भी लोगों के रोजगार गए हैं और बॉटलिंग प्लांट जैसी जगहों पर काम करने वाले लोग बेरोजगार हो गए।
LJP फैक्टरः सरकार पर लोगों को संदेह
शुरू में ऐसा लगा था कि एनडीए का गठबंधन पहले से ज्यादा मजबूत बनकर सामने आएगा लेकिन बाद में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार की आलोचना शुरू कर दी और वह गठबंधन से बाहर हो गए। उन्होंने कहा केंद्र में वह गठबंधन में रहेंगे लेकिन बिहार में अकेले ही मैदान में उतरेंगे। इस मामले में बीजेपी चुप्पी साधे रही। अब चिराग पासवान अलग चुनाव लड़ रहे हैं। जाहिर सी बात है कि चिराग के गठबंधन से अलग होने से जेडीयू के लिए ही चुनौती बढ़ी है। बीजेपी की 143 सीटों में से लोजपा केवल पांच पर ही चुनाव लड़ रही है लेकिन जेडीयू के प्रत्याशियो के सामने चिराग के उम्मीदवार खड़े हुए हैं। अनुमान यह भी है कि एलजेपी के प्रत्याशी जेडीयू के वोट काट सकते हैं जिससे तेजस्वी को फायदा मिल सकता है और कई सीटों को समीकरण बदल सकते हैं।
तेजस्वी की लोकप्रियता
तेजस्वी यादव की चुनावी रैलियों में भारी भीड़ इकट्ठी हो रही है। उन्होंने लोगों से 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया है। तेजस्वी भी आरजेडी के पुराने सेक्युलरिजम के नारे को दोहरा रहे हैं। एक आरजेडी नेता ने कहा, ‘बिहार सरकार में लगभग 4.5 लाख पद खाली हैं। सरकार को 5.5 वैकंसी क्रिएट करने की जरूरत है। हमने 10 लाख सरकारी नौकरियों का विचार दिया और अब बीजेपी भी इसकी नकल करने लगी है।’ एक अन्य नेता ने कहा कि लालू राज के बाद अब यादव राज शुरू होगा। जनसभाओं में तेजस्वी यादव के समर्थन में लोगों की भारी भीड़ जमा हो रही है। इसमें युवाओँ की संख्या ज्यादा है। बिहार में लोग सरकारी नौकरी की चाह ज्यादा रखते हैं। ऐसे में 10 लाख नौकरियों का वादा उन्हें खूब लुभा रहा है।
नीतीश के पक्ष में हैं सामाजिक समीकरण
जमीन पर कई चुनौतियों के बावजूद बीजेपी सामाजिक समीकरण को लेकर आश्वस्त है। आरजेडी के पास अगर मुस्लिमों और यादवों का वोट बैंक है तो बीजेपी के पास भुमिहार और सवर्णों का समर्थन है। वहीं जेडीयू को निचली जातियों, महादलितों का समर्थन हासिल हैं। एक जेडीयू नेता ने कहा, ‘सामाजिक समीकरण से एनडीए को 10 से 12 प्रतिशत की बढ़त मिल रही है। जो 9वीं में फेल है वह क्या जाने सामाजिक समीकरण? 2005 से पहले का बिहार में जंगलराज लोगों को अब तक याद है। मैं यह नहीं कहता कि लोगों में गुस्सा नहीं है लेकिन 2005 के पहले के जंगल राज से यह लाख गुना बेहतर समय है।’
