‘मोदी जी कहते हैं कि वाराणसी को क्योटो जैसा बना देंगे, अरे हम कहते हैं आप इसे बेंगलुरु जैसा बना दो, पूरा शहरीकरण कर दो, बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर दो, क्या फर्क पड़ता है। भूल जाओ काशी की क्या संस्कृति है, यहां का इतिहास क्या है…’, जब हम दशाश्वमेध घाट पर घूम रहे थे, एक नौजवान ने खुद सामने से आकर हमे यह सब बोला। काशी में मोदी के खिलाफ कुछ सुनने को मिलेगा, ऐसी उम्मीद नहीं थी, लेकिन यहां तो कई नौजवान बस एक सवाल लगातार पूछ रहे थे।
विकास बनाम संस्कृति की लड़ाई
वो सवाल था- क्या संस्कृति को संजोकर भी काशी का विकास किया जा सकता है? वाराणसी में जब काशी कॉरिडोर का निर्माण होना था, सभी को पता था कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए कई घरों की, कई दुकानों, कई छोटे-बड़े मंदिरों की तिलांजलि देनी पड़ेगी। ऐसा हुआ भी, मंदिर ट्रस्ट ने लोगों को मुआवजा भी दिया, लेकिन इतने सालों बाद भी काशी के लोग यह सवाल पूछते हैं- आखिर कुछ सड़कों को चौड़ा करने के लिए दूसरों का आशियाना क्यों उजाड़ा गया? आखिर क्यों इतने सारे छोटे मंदिरों को वहां से हटाया गया?
अब ऐसा नहीं है कि यह कोई पूरे काशी की राय हो, लेकिन कई जगहों पर इस बात पर सहमति बन रही है कि लोग विकास तो चाहते हैं, लेकिन अपनी वाराणसी की प्राचीन संस्कृति को संजोकर। इस समय बीजेपी वाराणसी में चौड़ी होती सड़कों को विकास का पैमाना बता रही है, लेकिन अब काशी के ही कुछ लोग कह रहे हैं कि उनके लिए विकास अच्छी बात है, लेकिन संस्कृति के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए।
घाटों पर सफाई, गंगा अभी भी प्रदूषित
वैसे काशी में घाटों का महत्व इतना ज्यादा है कि हम भी खुद को वहां जाने से नहीं रोक पाए। अस्सी घाट हो, मणिकर्णिका घाट हो या फिर दशाश्वमेध। एक चीज देखने को मिली कि घाट काफी साफ हैं, वहां पर कूड़ा-कचरा नहीं पड़ा है। जगह-जगह डस्टबिन है, लगातार सफाई भी वहां पर जारी है। लेकिन यह गंगा के पानी को लेकर नहीं कहा जा सकता। सीवर का पानी अभी भी गंगा को दूषित कर रहा है। लेकिन लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं आई है, फिर भी सभी डुबकी लगा रहे हैं, हर-हर महादेव का जयघोष हो रहा है।
अब प्रदूषित गंगा और संस्कृति से ज्यादा विकास पर फोकस करना जरूर पीएम मोदी के खिलाफ जाता है, लेकिन जब काशी की सड़कों पर घूमा गया, कई दूसरे ऐसे काम हुए हैं जिनकी वजह से उनकी तारीफ भी इसी काशी में सबसे ज्यादा देखने को मिल जाती है। वाराणसी का चौक इलाका कई दुकानों से पटा हुआ है, वहां पर इतनी भीड़ है कि चलना भी मुश्किल हो जाए। लेकिन जितनों से भी बात की, सभी की जुबान पर सिर्फ मोदी का नाम दिखा। इतने काउंटर सवाल किए, यहां तक पूछा कि क्या विपक्ष कोई काम नहीं कर रहा, लोगों का जवाब मोदी से शुरू हो रहा है, मोदी की तारीफ पर खत्म।
मोदी की लोकप्रियता का आधार- ‘400 पार’
वाराणसी की सड़कों पर यह भी साफ देखने को मिला कि बीजेपी का 400 पार का नारा लोगों के बीच में खासा लोकप्रिय हो चुका है। अब इतनी सीटें आती हैं या नहीं, यह समय बताएगा, लेकिन इस नारे की चर्चा काफी ज्यादा दिखी है। बीजेपी समर्थकों के लिए ये नारा पीएम मोदी के सशक्तिकरण से जुड़ चुका है। एक बुजुर्ग ने अपना अनुभव बताते हुए कहा, ‘अखिलेश के समय तो हम लोग आधे समय कर्फ्यू में रहने को मजबूर रहते थे, बाहर नहीं निकल सकते थे, अब देखिए कोई कर्फ्यू नहीं लगता है, हम लोग आजाद हो चुके हैं। मोदी का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है’।
अब यह माहौल तो हमे वाराणसी के हर मोड़, हर नुक्कड़ पर देखने को मिल गया। ज्यादा सटीक स्थिति समझने के लिए उस गांव का रुख भी किया जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में ही गोद ले लिया था। हम बात कर रहे हैं कि जयापुर गांव की जहां पर जाते ही पक्की सड़के स्वागत कर रही हैं, एंट्री के साथ ही एक बड़े बैंक के दर्शन भी हो जाते हैं। लोग बताते हैं कि जयापुर में पहले पानी की काफी समस्या थी, महिलाएं कुएं तक जाती थीं। लेकिन पीएम मोदी ने जब से इस गांव को गोद लिया है, यहां पर पानी की टंकी आ चुकी है, हर घर में नल का पानी आ रहा है।
जिस गांव को मोदी ने लिया गोद, कैसे हालात?
गांव के सरपंच राजकुमार से हमने बातचीत की है। उन्होंने बताया कि इस गांव में पीएम मोदी की हर योजना पहुंच चुकी है, किसानों को खाते में पैसा मिल रहा है, मुफ्त राशन आ रहा है और स्वास्थ्य के भी बेहतर इंतजाम हो चुके हैं। लेकिन इस सब के बावजूद लोग यह शिकायत जरूर करते हैं कि अभी भी रोजगार के लिए यहां पर युवाओं को बाहर जाना पड़ता है, उस क्षेत्र में और ज्यादा सुधार की गुंजाइश दिखाई देती है। ऐसे में विकास हुआ है, सुधार हुआ है, लेकिन और बेहतर स्थिति की कल्पना भी की जा सकती है। इसी वजह से काशी के लोग कहते नहीं थक रहे- वाराणसी का विकास तभी साकार, जब प्राचीन संस्कृति का भी साथ में हो विस्तार।