उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस दलित कार्ड खेल रही है ताकि राज्य में सत्ता हासिल की जा सके। प्रदेश कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दलित कार्ड का पासा फेंका है। रावत ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए कांग्रेस गोत्र के दलित नेता यशपाल आर्य को उत्तराखंड के भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया है जबकि कांग्रेस आलाकमान ने उत्तराखंड में अभी तक मुख्यमंत्री का कोई चेहरा घोषित नहीं किया है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी उत्तराखंड का दौरा कर चुके हैं परंतु उन्होंने मुख्यमंत्री के चेहरे के बारे में कोई घोषणा नहीं की है।
राहुल गांधी ने सिर्फ इतना कहा कि वे उत्तराखंड को ऐसा मुख्यमंत्री देंगे, जिनके दरवाजे जनता के लिए हमेशा खुले रहें। कांग्रेस आलाकमान ने शुरू से ही इस बात को स्पष्ट कर रखा है कि कांग्रेस उत्तराखंड में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस आलाकमान की रीति नीति के खिलाफ हरीश रावत अलग चाल चल रहे हैं। दरअसल हरीश रावत दलित मुख्यमंत्री बनाने का खेल इसलिए खेल रहे हैं ताकि उनके कट्टर राजनीतिक विरोधी और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह मुख्यमंत्री न बन सकें। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि उत्तराखंड में पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा सामने रखकर चुनाव नहीं लड़ रही है। सामूहिक रूप से राज्य में कांग्रेस चुनाव लड़ रही है और पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी जो फैसला करेंगी, वह उत्तराखंड कांग्रेस को मंजूर होगा।
उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में 19 से 22 सीटें ऐसी हैं, जहां दलित वोट मायने रखता है। कांग्रेस के पास अब तक दलित चेहरे के नाम पर प्रदीप टम्टा ही थे। यशपाल आर्य के भाजपा छोड़कर कांग्रेस आने से दलित वोटों का रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ है। आर्य के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा की मुश्किल कुमाऊं में बढ़ गई है। 2016 में हरीश रावत के मंत्रिमंडल में यशपाल आर्य कैबिनेट मंत्री थे परंतु उन्होंने हमेशा आर्य की उपेक्षा की और वे भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बाजपुर और उनके बेटे को नैनीताल विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया और दोनों पिता-पुत्र चुनाव जीत गए। भाजपा सरकार में यशपाल आर्य कैबिनेट मंत्री बनाए गए और भाजपा में मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत, तीरथ सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी ने उपेक्षा ही की।
यशपाल आर्य राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री नेता नारायण दत्त तिवारी के शिष्य रहे हैं और उन्हें तिवारी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की राजनीति में हमेशा आगे बढ़ाया। 2002 में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने दलित चेहरे के रूप में उत्तराखंड की राजनीति में आर्य को आगे बढ़ाया और उन्हें विधानसभा का अध्यक्ष बनाया। विधानसभा का अध्यक्ष बनने के बाद आर्य का उत्तराखंड की राजनीति में कद और अधिक बढ़ गया। तिवारी के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद यशपाल आर्य को सोनिया गांधी ने उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनाया। भाजपा के पास आर्य के मुकाबले कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है जिससे वह बेहद परेशान है।
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से हुए चुनाव नतीजों के मुताबिक बहुजन समाज पार्टी 2002, 2007, 2012 चुनाव में लगातार 11 से 12 फीसद वोट पाती रही है। बसपा अब तक हुए तीन विधानसभा चुनाव में तीन से लेकर आठ सीटें तक ही जीतती रही है। 2014 लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड का दलित मतदाता बसपा और कांग्रेस से खिसक कर भाजपा की तरफ मुड़ा और 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में पहली बार बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। उत्तराखंड में बसपा का वोट फीसद गिरकर सिर्फ सात फीसद ही रह गया। लिहाजा इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की नजर दलित मतदाताओं पर है।
