उत्तराखंड में टिकटों के बंटवारे के साथ ही गढ़वाल से लेकर कुमाऊं तक कई विधानसभा सीटों पर बागियों ने ताल ठोक दी है। भाजपा और कांग्रेस बगावत से परेशान दिखाई दे रहे हैं। साथ ही दोनों दलों के बागियों को मनाने के लिए इनके बड़े नेता रात दिन एक किए हुए हैं। परंतु बागी मानने को तैयार नहीं है। कुछ बागियों को भाजपा और कुछ बागियों को कांग्रेस अपने-अपने दलों से टिकट देकर सत्ता पाने के जुगाड़ में लग गए हैं।
भाजपा और कांग्रेस में रानीपुर लक्सर रायपुर रुद्रपुर किच्छा बाजपुर नैनीताल समेत कई सीटों पर बागियों ने बवाल काट रखा है। भाजपा के टिकट वितरण के बाद अब विपक्षी कांग्रेस में भी टिकट बंटवारे के बाद बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं। कांग्रेस ने राज्य की 70 विधानसभा सीटो में से 53 पर उम्मीदवारों का ऐलान किया है। अभी पार्टी को 17 सीटों पर टिकट बांटने हैं। इन 17 सीटोंं पर पार्टी का विवाद सुलझा ही नहीं है कि 53 विधानसभा सीटों वैसे आधे से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस में बवाल शुरू हो गया है।
घनसाली से पिछली बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े भीमलाल आर्य को टिकट नहीं दिया गया। इसके बाद आर्य ने पार्टी पर धोखा देने का आरोप लगाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है। वहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता धनौल्टी में वीरेन्द्र सिंह रावत को टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। यमुनोत्री में पिछली बार कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े संजय डोभाल की बजाय इस बार दीपक बिजल्वाण को मौका दिया गया है जिसके बाद डोभाल ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है।
कर्णप्रयाग में टिकट न मिलने से सुरेश बिष्ट ने कांग्रेस पार्टी छोड़ने की बात कही है। पौड़ी विधानसभा सीट से टिकट न मिलने पर पूर्व जिला पंचायत सदस्य तामेश्वर आर्य ने भी निर्दलीय खड़े होने का ऐलान किया है और कांग्रेस में टिकट बंटवारे को लेकर पार्टी कार्यकतार्ओं में नाराजगी देहरादून की सहसपुर सीट से लेकर राजपुर रोड और पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, टिहरी, रुद्रपुर, हरिद्वार समेत कई जिलों में कई विधानसभा सीटों पर दिखाई दे रही है।
कुमाऊं के पर्वतीय और तराई क्षेत्र में भी कई सीटों पर कांग्रेस नेताओं के बगावत के सुर तेज दिखाई दे रहे हैं। कुमांऊ के सबसे बड़े दलित नेता गोलीहाट से पूर्व विधायक नारायण राम आर्य ने हरीश रावत को धोखेबाज बताया है और टिकट बंटवारे में लेनदेन का आरोप लगाया है। कांग्रेस ने कुमांऊ की 29 विधानसभा सीटों में से 25 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए है।
इनमें कई सीटों पर पर बगावत हो गई है। कुमांऊ में बागेश्वर, गंगोलीहाट, किच्छा, गदरपुर, बाजपुर, सितारगंज, नैनीताल, बागेश्वर समेत कई सीटों पर बगावत होती दिख रही है। किच्छा सीट पर तिलकराज बेहड़ को टिकट देने का स्थानीय कांग्रेसी कार्यकर्ता जबरदस्त विरोध कर रहे हैं और उन्होंने बेहड़ को बाहरी उम्मीदवार घोषित कर दिया है। बाजपुर में यशपाल आर्य का विरोध करते हुए सुनीता टम्टा बाजवा ने चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। सितारगंज और गदरपुर में पिछली बार कांग्रेस के उम्मीदवार रहे मालती बिस्वास और राजेन्द्र पाल सिंह के बागी हो गए हैं।
परिवारवाद की काली छाया के कारण भाजपा और कांग्रेस बची हुई सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान नहीं कर पा रही हैं। परिवारवाद के कारण हरीश रावत और हरक सिंह रावत के टिकट कांग्रेस में अभी तक तय नहीं हो पाए हैं। हरीश रावत रामनगर से चुनाव लड़ना चाहते हैं जबकि एक जमाने में हरीश रावत के दाहिने हाथ रंजीत रावत इस सीट पर अपना दावा ठोक रहे हैं। वे यह सीट हरीश रावत के लिए छोड़ने को तैयार नहीं है। उधर, हरीश रावत बेटी अनुपमा रावत को भी चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं। वे उन्हें हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़ाने की कोशिश में हैं।
हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत हरिद्वार जिले की खानपुर विधानसभा सीट से अपनी ताल ठोक रहे हैं। इस तरह हरीश रावत खुद अपने परिवार की राजनीति में उलझे हुए हैं। यदि वे बेटी अनुपमा को टिकट देते हैं तो उनके दोनों बेटे वीरेंद्र और आनंद बगावत पर उतर आएंगे, इसलिए रावत खुद चुनाव लड़कर अपने परिवार की लड़ाई को समाप्त करना चाहते हैं। उधर हरक सिंह रावत अपने और अपनी पुत्रवधु अनुकृति के लिए टिकट मांग रहे हैं।
कांग्रेस में नरेंद्र नगर ,देहरादून कैंट, डोईवाला, ऋषिकेश, रामनगर, ज्वालापुर, झबरेड़ा, रुड़की, लक्सर, खानपुर, हरिद्वार ग्रामीण,चौबट्टा खाल, लैंसडाउन, लाल कुआं, सल्ट और कालाढूंगी समेत 17 विधानसभा सीटों पर पेच फंसा हुआ है जबकि भाजपा में डोईवाला, कोटद्वार, झबरेड़ा, रुद्रपुर, लाल कुआं, केदारनाथ, रानीखेत, पिरान, कलियर, हल्द्वानी, टिहरी और जागेश्वर सीटों समेत 11 सीटों पर टिकटों का बंटवारा अटका हुआ है। इस तरह कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल बागियों से जूझ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक और चमन लाल डिग्री कालेज लंढोरा के राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमार का कहना है कि चुनाव के समय टिकट बंटवारे को लेकर हर दल में विद्रोह के स्वर सुनाई देते हैं। यह बात अब आम हो गई है। बागियों का असर कुछ सीटों पर ही पड़ता है और उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के लिए बागियों की बगावत अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि हार-जीत का फैसला छोटे राज्यों में बहुत कम अंतर से होता है, इसलिए बागी हर चुनाव में पार्टी उम्मीदवारों के लिए सिरदर्द साबित होते हैं।