भाजपा के दिग्गज नेता धर्मपाल सिंह इस बार आंवला विधानसभा क्षेत्र में कड़े मुकाबले में फंसे हैं। सपा के उम्मीदवार सिद्धराज सिंह और बसपा के अगम मौर्य उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। हालांकि इस चुनाव क्षेत्र में कुल सात उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें चार उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में नहीं हैं। आंवला विधानसभा क्षेत्र की भाजपा के गढ़ के रूप में पहचान रही है। जनसंघ के समय से ही पार्टी की स्थिति यहां मजबूत रही है। जनसंघ से चुनाव लड़कर 1967 मे डी प्रकाश विधायक बने थे। राज्य में मंडल-कमंडल की राजनीति का दौर शुरू होने के बाद 1991 में यहां से भाजपा के श्याम बिहारी सिंह जीते। इससे पहले वे इस सीट पर 1974, 1977, 1985 और 1989 में भी जीते थे। इसके बाद भाजपा के धर्मपाल सिंह 1996, 2002 और 2012 में चुनाव जीते। वे राज्य सरकार में मंत्री रहने के अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में भी शामिल रहे हैं।
सपा ने इस बार आंवला लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद कुंवर सर्वराज सिंह के बेटे सिद्धराज सिंह को उतारा है। उन्हें टिकट बेशक चुनाव की घोषणा के बाद मिला है, लेकिन वे इस क्षेत्र काफी समय से तैयारी में जुटे थे। युवा और शिक्षित होने के कारण क्षेत्र के युवा मतदाताओं का उनकी ओर काफी रूझान है। वे क्षेत्र की सड़क, बिजली और दूसरी समस्याओं को भी दमदारी से उठा रहे हैं। बसपा ने यहां राजनीति के नए खिलाड़ी अगम मौर्य पर दांव लगाया है। बसपा ने उनका टिकट काफी पहले तय कर दिया था। वे भी क्षेत्र के अधिकांश गांवों का दौरा कर भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं। विकास के अभाव से जूझ रही आंवला तहसील को अलग जिला बनाने की मांग भी उठती रही है। यहां के लोग काफी समय से चीनी मिल की मांग भी करते रहे हैं। चुनाव प्रचार में मुद्दों की बात तो की जा रही है, लेकिन सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार धर्म और जाति के आधार पर अपने समर्थन में मतदाताओं को लामबंद करने की कोशिश में भी दिख रहे हैं। इस क्षेत्र के कुल 296837 मतदाताओं में लगभग 65 हजार मुसलिम मतदाता हैं। सपा और बसपा दोनों के बीच मुसलिम मतों को अपनी ओर खींचने की होड़ लगी है। सपा को इस सीट पर गठबंधन का लाभ मिलने की उम्मीद है। पिछला 2012 का चुनाव भाजपा के धर्मपाल सिंह ने सपा से महज 4408 मतों के अंतर से जीता था। कांग्रेस को यहां 15716 मत मिले थे।