उत्तर प्रदेश की सरकारों में इटावा सदर के विधायकों की मंत्री पद से दूरी ही बनी रही, वह भी तब जबकि इटावा से ज्यादातर विधायक सत्तापक्ष के ही रहे। इटावा के राजनीतिक आंकड़ों के मुताबिक एक समय तक सवर्ण बाहुल्य मिजाज वाली रही इटावा सदर सीट से अधिकाधिक उम्मीदवार तो सवर्ण जाति वाले ही जीतने मे कामयाब रहे हैं।
आजादी के 70 साल के अंतराल में इटावा के सिर्फ दो विधायकों को ही उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री का पद मिला है। 1989 तक ज्यादातर चुनाव में इटावा सदर सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को ही विधायक चुना गया। बीच में दो बार जरूर भारतीय जनसंघ के भुवनेश भूषण शर्मा चुनाव जीते। इस दौरान अधिकांश समय प्रदेश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकारें ही बनीं, इसके बावजूद इटावा से चुने गए विधायकों को मंत्रीपद नहीं मिल पाया। इटावा सदर के विधायक को पहली बार प्रदेश सरकार में मंत्री बनने का मौका 1977 में मिला। उस समय जनता पार्टी की सरकार बनी और तब इटावा सदर से विधायक सत्यदेव त्रिपाठी को सूचना राज्य मंत्री बनाया गया। दोबारा लालबत्ती के लिए इटावा को करीब एक दशक तक इंतजार करना पड़ा। 1985 के बाद प्रदेश में नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व वाली सरकार में इटावा की विधायक सुखदा मिश्र को ऊर्जा राज्य मंत्री बनाया गया लेकिन इटावा के विधायक को कैबिनेट मंत्री का पद पहली बार 1989 में तब मिला जब मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी। इस सरकार में इटावा की विधायक सुखदा मिश्र को नगर विकास विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
1991 में पहली बार भाजपा की सरकार बनीं तो अशोक दुबे इटावा से विधायक थे लेकिन मंत्री पद नहीं मिला। 1996 में भाजपा की सरकार में इटावा में जयवीर सिंह भदौरिया विधायक रहे और 2002 में सपा से महेंद्र सिंह राजपूत विधायक बने लेकिन उन्हे मंत्री नहीं बनाया गया। 2009 में महेंद्र सिंह राजपूत उपचुनाव में बसपा से विधायक बने लेकिन उन्हें लालबत्ती नसीब नहीं हुई।2012 में चुनाव प्रचार के दरम्यान सपा का प्रचार चरम पर था उसी समय इटावा सदर के सपा के उम्मीदवार रघुराज सिंह शाक्य के समर्थन मे कई सभाओं को करने के दौरान पार्टी के महासचिव और राज्यसभा सदस्य प्रो. रामगोपाल यादव ने रघुराज के जीतने और उत्तर प्रदेश के सरकार बनने की दशा मे मंत्री बनाने का एलान किया। लेकिन अखिलेश सरकार काबिज होने के बाद ऐसा नहीं हो पाया।
वंचित