उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव पर पूरे देश कि निगाहें हैं। देश के सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में मुख्य मुकाबला सत्ताधारी समाजवादी पार्टी (सपा), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच है। सपा ने कांग्रेस से चुनाव पूर्व गठबंधन किया है। लेकिन कई प्रमुख राजनीतिक दल ऐसे भी हैं जिनकी यूपी की सियासत में कोई जमीन नहीं फिर भी वो विधान सभा चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े करते हैं। ऐसे दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद), नीतीश कुमार की जनता दल (एकीकृत) (जदयू) और राम विलास पासवान की लोजपा शामिल हैं। वहीं कई दलों की एक सीट को छोड़कर बाकी सीटों पर जमानत जब्त हो गयी। ऐसे दलों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीएम), ममता बनर्जी की टीएमसी और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शामिल हैं। 2012 में यूपी की कुल 403 सीटों में से सपा को 224, बसपा को 80, भाजपा को 47 और कांग्रेस को 28 सीटों पर जीत मिली थी।

2012 के विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार की जदयू ने उत्तर प्रदेश में 219 प्रत्याशी उतारे थे। हालांकि जदयू के सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। राजद ने 2012 विधान सभा में यूपी में चार उम्मीदवार उतारे थे और सभी की जमानत जब्त हो गयी थी। रामबिलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोकपा) ने 2012 में यूपी में 212 उम्मीदवार उतारे थे और उसके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी। चुनाव आयोग की रिपोर्ट के अनुसार प्रमुख दलों के अलावा यूपी में 200 से ज्यादा ऐसी पार्टियों ने उम्मीदवार उतारे थे जिनके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गयी थी। पिछले साल दिसंबर में चुनाव आयोग ने 255 राजनीतिक पार्टियों की फर्जी दलों के तौर पर पहचान की थी।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार की एनसीपी ने 127 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से उसे एक सीट पर जीत मिली और 126 की जमानत जब्त हो गयी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (एआईटीएमसी) ने भी यूपी में 145 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 144 की जमानत जब्त हो गयी थी। वहीं सीपीएम ने 2012 में यूपी में 17 उम्मीदवार उतारे थे जिनमें से 16 की जमानत जब्त हो गयी थी।

हालांकि जमानत जब्त होने के मामले में यूपी की सियासत में दखल रखने वालों दलों के भी हालत भी बहुत अच्छी नहीं रही थी। 2012 में 67 प्रतिशत कांग्रेसी उम्मीदवारों और 57 प्रतिशत भाजपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी। 2012 में यूपी में बहुमत पाकर सरकार बनाने वाली सपा के भी 53 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी थी। वहीं 2012 में दूसरे नंबर पर रही बसपा के 51 प्रत्याशियों को उनकी जमानत राशि खोनी पड़ी थी।

भारतीय निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर दी गयी सूचना के अनुसार किसी भी राज्य के विधान सभा चुनाव में हर उम्मीदवार को पांच हजार रुपये जमानत के तौर पर जमा करने होते हैं। जिस उम्मीदवार को विधान सभा में पड़े कुल वोटों का 1/6 पाने में विफल रहता है तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है। वहीं विजयी प्रत्याशी समेत कुल मतदान के 1/6 से ज्यादा वोट पाने वाले प्रत्याशियों की जमानत वापस कर दी जाती है। अगर किसी प्रत्याशी को कुल मतदान के 1/6 से कम वोट मिला है फिर वो विजयी रहा है तो उसकी जमानत लौटा दी जाती है।

देखिए 2002 से 2014 के बीच यूपी में हुए चुनावों में प्रमुख पार्टियों का प्रदर्शन कैसा रहा-

2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में अपनी प्रदर्शन से सभी राजनीतिक पंडितों को चकित कर दिया।
2012 के विधान सभा चुनाव में राज्य के मतदाताओं ने सपा को बहुमत दिया औऱ अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने।
2009 के लोक सभा चुनाव में राज्य में सबसे शानदार प्रदर्शन बसपा का रहा था।
2007 के विधान सभा चुनाव में वोट पाने के मामले में बसपा सबसे आगे रही। पार्टी को 30.43 प्रतिशत वोटों के साथ 206 सीटों पर जीत मिली और मायावती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं।
2004 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा। यूपी में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा।
2002 के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में इस चुनाव में राज्य में वोट प्रतिशत और सीटों दोनों लिहाज से सपा पहले स्थान पर रही थी।