सोमवार (27 फरवरी) को उत्तर प्रदेश में पांचवे चरण का मतदान हो रहा है। भले ही आम मतदाताओं को याद न हो प्रदेश ही नहीं देश की राजनीति में 15 साल पहले एक भूचाल आया था। आज ही के दिन गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की बोगी संख्या एस-6 पर हमला हुआ था जिसमें 59 यात्री मारे गए थे। इंडियन एक्सप्रेस ने रविवार (26 फरवरी) इस ट्रेन में अयोध्या में सवार होकर गोधरा तक की यात्रा की। हमने जानने की कोशिश की इन 15 सालों में क्या बदलाव आएगा।

जिस एस-6 कोच पर 27 फरवरी, 2002 को हमला हुआ था वो आज भी गोधरा के रेलवे यार्ड में खड़ा है। जंग खा रहे इस कोच की रेलवे के दौ चौकीदार रखवाली करते हैं। इसके चारों तरफ तार की बाड़ लगी हुई है। चौकीदारों के अनुसार जांच अधिकारियों के अलावा 27 फरवरी 2002 के बाद इस कोच के अंदर कोई नहीं गया। उस दिन इस डब्बे में आग लगा दी गयी थी जिसमें अयोध्या से लौट रहे 59 कारसेवकों की मौत हो गयी थी।

इंडियन एक्सप्रेस संवाददाता ने साबरमती एक्सप्रेस के नए एस-6 कोच में यात्रा की। डब्बे में सवार यात्रियों को 15 साल पहले हुई घटना की कुछ खास याद नहीं। ज्यादातर यात्री यूपी चुनाव को लेकर चर्चा में व्यस्त थे। लेकिन 52 वर्षीय डॉक्टर उमेश चंद्र दीक्षित इनसे अलग हैं। वो अयोध्या के करीब दरियाबाद से ट्रेन में चढ़े थे। दीक्षित पिछले दो दशकों से हर रोज साबरमती एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे हैं। लखनऊ के रहने वाले डॉक्टर दीक्षित हर रोज लखनऊ पहुंचने के लिए यही ट्रेन पकड़ते हैं। दीक्षित याद करते हैं, “26 फरवरी 2002 को मुझे और मेरे चार साथियों को डब्बे से बाहर धकेल दिया गया था। डब्बा गुजरात से आए कारसेवकों से भरा हुआ था। वो लोग बहुत बदतमीज थे…।” दीक्षित कहते हैं जब उन्हें डब्बे से बाहर धकेला गया था तो उन्होंने कहा था, “सत्यानाश हो तुम सब का।” दीक्षित कहते हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि कुछ ही घंटों बाद ये सच हो जाएगा। दीक्षित को अगली सुबह बहुत दुख पहुंचा। वो कहते हैं, “किसी की मृत्यु ऐसे नहीं होनी चाहिए, इसकी वजह चाहे जो भी हो।”

दीक्षित योगी आदित्यनाथ और उनकी आक्रामक राजनीति की कड़ी आलोचना करते हैं। वो कहते हैं, “जो दोषी हैं उन्हें सजा देनी चाहिए। मासूमों की हत्या क्यों? योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक सभा में कहा था कि अगर यूपी में बीजेपी सत्ता में आयी तो सभी मस्जिदों को मंदिर में बदल दिया जाएगा। ये किस तरह की राजनीति है?” पिछले 15 सालों में देश की राजनीति भले ही बदल गयी हो लेकिन साबरमती एक्सप्रेस में काफी कुछ बदल चुका है। ट्रेन में सवार श्याम कुमार कहते हैं, “हम इसे गधा गाड़ी कहते थे। ये बहुत सुस्त रफ्तार थी और इतने स्टेशन पर रुकती थी कि समय से देर हो जाती थी।” कुमार फैजाबाद जिले के एक कॉलेज में लेक्चरर हैं और साल 2002 अब तक कई बार इस ट्रेन से यात्रा कर चुके हैं।

हादसे के दिन साबरमती ट्रेन अपने समय से चार घंटे देरी से सुबह 7.45 पर गोधरा पहुंची थी। अब इसका समय बदल गया है और ये सुबह 11.58 पर गोधरा पहुंचती है। श्याम कुमार कहते हैं, “बस एक अच्छी चीज ये हुई है कि अब ये ट्रेन समय से चलती है और इसमें तीन एसी कोच जोड़े गए हैं।” साबरमती ट्रेन के 13 स्लीपर डब्बों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर होते हैं जो बिहार, जौनपुर-फैजाबाद इत्यादि से वडोदरा, सूरत और अहमदाबाद में काम करने आते-जाते हैं। साल 2002 में एस-6 कोच में निर्धारित 72 सीटों से कहीं दोगुने लोग थे। साल 2017 में भी इस कोच में यात्रियों की संख्या 100 से ऊपर है। जिनके पास कन्फर्म टिकट नहीं है वो फर्श और गेट पर बैठे और सोए हैं।

ट्रेन भले ही समय से चलने लगी हो लेकिन इतने सालों में इस कोच की अंदरूनी हालत नहीं बदली है। कोच में तेज दुर्गंध, टॉयलेट की टूटी सीट, गंदे फर्श, सुबह बुंदेलखंड आने से पहले ही पानी खत्म हो गया। यात्रियों को इन चीजों से शिकायत नहीं है। ज्यादातर यात्री यूपी चुनाव से जुड़ी चर्चाओं में व्यस्त हैं।

32 वर्षीय प्रवीण पाण्डेय अयोध्या के रहने वाले हैं और उन्हें गोधरा हादसे का बहुत गहरा दुख है। पाण्डेय कहते हैं, “ये वही कोच है…लेकिन ऐसी हिंसा से नेताओं के अलावा किसे फायदा होता है? अयोध्या को देखिए बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से आज तक ये उसी हालत में है।” पनवेल में ठेकेदारी करने वाले पाण्डेय चाहते हैं कि सरकार बेरोजगारी की समस्या पर विशेष ध्यान दे। जौनपुर के रहने वाले महेंद्र विश्वकर्मा गुजरात केमिकल फैक्ट्री में मजदूर के तौर पर काम करते हैं। वो भी मानते हैं कि बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। विश्वकर्मा को लगता है कि “नरेंद्र मोदी ही बदलाव ला सकते हैं।” वो कहते हैं, “मोदीजी को तो ऐसे ही वोट पड़ता, उन्हें श्मशान-कब्रिस्तान करने की जरूरत नहीं थी।” कोच में बेरोगजारी को बड़ी समस्या मानने की वालों की संख्या काफी अधिक है।

नोटबंदी के मुद्दे पर कोच के लोग बंटे हुए थे। लोगों ने नोटबंदी से जुड़ी दिक्कतों का जिक्र करने के बावजूद इस कदम का समर्थन करते दिख रहे थे। एक सवार ने कहा, “मोदीजी ने जो किया ठीक किया।” जब ट्रेन गोधरा स्टेशन पर निर्धारित समय से पहुंची तो वहां पूरी तरह शांति थी। 15 सालों में ये स्टेशन भी थोड़ा बदल चुका है। स्टेशन पर डिजिटल डिसप्ले लग चुका है। फर्श पर टाइल बिछाया जा चुका है। रेलवे के एक स्टाफ कहते हैं कि उन्हें याद ही नहीं था कि आज ही के दिन ट्रेन हादसा हुआ था। वो कहते हैं उन्हें वीएचपी की रैली के बारे में आई पुलिस नोटिस से हादसे की याद आयी। स्वच्छ भारत अभियान का एक पर्चा दिखाते हुए वो कहते हैं, “हम लोग तो इसमें व्यस्त हैं।”