समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मिलकर लड़ने की घोषणा तो कर दी है लेकिन सूबे में गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ माने जाने वाले जिलों अमेठी और रायबरेली में आने वाली 10 विधान सभा सीटों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद हैं और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी से। अभी इन 10 में से सात सीटों पर सपा विधायक हैं।

गठबंधन के तहत कांग्रेस यूपी की कुल 403 विधान सभा सीटों में से 105 पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन अमेठी और रायबरेली की 10 सीटों में से पांच पर सपा ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। अब कांग्रेस के स्थानीय नेता इन सीटों को सपा को देने का विरोध कर रहे हैं। अमेठी से कांग्रेस के एमएलसी दीपक सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हम पिछले पांच सालों से इन सीटों को वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता इन सीटों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। हमने कार्यकर्ताओं को कहा कि हम इन दसों सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।” दीपक को गांधी परिवार का करीबी माना जाता है।

2014 के लोक सभा चुनाव में प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से कांग्रेस को केवल इन्हीं दो सीटों पर जीत मिली थी। वहीं सपा को भी केवल पांच संसदीय सीटों पर जीत मिली थी और सभी विजयी उम्मीदवार मुलायम सिंह यादव परिवार के सदस्य थे। अमेठी में कांग्रेस प्रवक्ता अनिल सिंह भी सपा के साथ सीटों के बंटवारे पर नाखुश हैं। अनिल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “कार्यकर्ताओं की भावनाएं यहां पंजे के निशान के साथ जुड़ी हैं। हमने यह पार्टी हाई कमान को भी बताया और कार्यकर्ताओं को बोल दिया कि हम यहां और रायबरेली में सारी सीटों पर लडेंगे।”

लेकिन स्थानीय कांग्रेस नेताओं की मांग पूरी होगी इस पर संशय है क्योंकि सपा ने इन सीटों पर जिन उम्मीदवारों को उतारा है उनमें कई अहम नाम हैं। अखिलेश सरकार में मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति अमेठी विधान सभा से प्रत्याशी हैं। वहीं राकेश प्रताप सिंह जिले की गौरीगंज विधान सभा से सपा उम्मीदवार हैं। रायबरेली में आशा किशोर (सालोन), देवेंद्र प्रताप सिंह (सारेनी) और मनोज कुमार पाण्डेय (ऊंचाहार) को टिकट दिया है। ये सभी सपा के वर्तमान विधायक हैं ऐसे में सपा के लिए इनका टिकट काटने पर भीतरघात का खतरा रहेगा।

2012 में रायबरेली की पांच विधान सीटों (बछरावन, हरचंदपुर, रायबरेली, सारेनी और ऊंचाहार) में से कांग्रेस सभी पर हार गयी थी, वहीं सपा चार पर जीती थी ऐसे में इन सभी सीटों को दोबारा पाने का कांग्रेसी दावा कागज पर कमजोर है। वहीं 2012 में अमेठी की पांच विधान सभा सीटों (तिलोई, सालोन, जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी) में कांग्रेस को केवल दो पर जीत मिली थी, बाकी तीन सीटें सपा की झोली में गई थीं। चूंकि अमेठी और रायबरेली की विधान सभाओं में चुनाव चौथे और पांचवे चरण में होना है। इन विधान सभाओं के लिए नामांकन 30 जनवरी और दो फरवरी से शुरू होगा इसलिए अगले एक हफ्ते गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले इन दोनों जिलों के लिए काफी अहम होगा।

देखें 2002 से 2014 के बीच यूपी में विभिन्न पार्टियों का प्रदर्शन- 

2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में अपनी प्रदर्शन से सभी राजनीतिक पंडितों को चकित कर दिया।
2012 के विधान सभा चुनाव में राज्य के मतदाताओं ने सपा को बहुमत दिया औऱ अखिलेश यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने।
2009 के लोक सभा चुनाव में राज्य में सबसे शानदार प्रदर्शन बसपा का रहा था।
2007 के विधान सभा चुनाव में वोट पाने के मामले में बसपा सबसे आगे रही। पार्टी को 30.43 प्रतिशत वोटों के साथ 206 सीटों पर जीत मिली और मायावती राज्य की मुख्यमंत्री बनीं।
2004 के लोक सभा चुनाव में भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को करारी हार का सामना करना पड़ा। यूपी में भी पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा।
2002 के विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में इस चुनाव में राज्य में वोट प्रतिशत और सीटों दोनों लिहाज से सपा पहले स्थान पर रही थी।