जिले की शहर विधानसभा सीट पर भाजपा का पिछले 32 साल से कब्जा रहा है, लेकिन इस बार भाजपा को अपनी साख बनाए रखने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। अपने इस किले को बचाने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है। केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री संतोष कुमार गंगवार यहां चुनाव अभियान को धार देने की कोशिश में जुटे हैं। मुसलिम दलित गठजोड़ की रणनीति के दम पर बसपा कड़ी चुनौती दे रही है। सपा गठबंधन की ओर से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेमप्रकाश अग्रवाल ने भी भाजपा के सवर्ण जनाधार में सेंधमारी कर उसकी मुश्किलें बढ़ाई हैं।
नोटबंदी से नाराज भाजपा के परंपरागत वैश्य और दूसरे सवर्ण मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए सपा गठबंधन की ओर से कांग्रेस के उम्मीदवार प्रेमप्रकाश अग्रवाल ने पूरी ताकत झोंक दी है। नोटबंदी के बाद अब आयकर विभाग के नोटिस मिलने से छोटे व्यापारी बेहद नाराज हैं। उनका कहना है कि सरकार ने चालू खातों में 12 लाख 50 हजार रुपये पुराने नोट जमा करने पर किसी तरह की जांच पड़ताल न करने का भरोसा दिया था, लेकिन अब इससे कम रकम जमा करने वालों को भी नोटिस देकर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। व्यापारियों के इस गुस्से को भुनाकर कांग्रेस उम्मीदवार भाजपा समर्थक मतदाताओं में अपनी पैठ बनाने की कोशिश जुटे हैं। बसपा उम्मीदवार इंजीनियर अनीस अहमद प्रमुख दलों में अकेले मुसलिम उम्मीदवार हैं। इसलिए इस समुदाय के मतदाताओं का उनकी ओर रुझान ज्यादा दिखाई दे रहा है। आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर उछलने से यहां की दलित जातियां बसपा की ओर मजबूती से लामबंद होती नजर आ रही हैं। इस क्षेत्र के उम्मीदवार नोटबंदी कानून व्यवस्था और विकास के मुद्दे उठा रहे हैं, लेकिन फिलहाल चुनाव जातीय समीकरणों में ही उलझा नजर आ रहा है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने वोट बैंकों को बरकरार रखने की है। सपा गठबंधन के कांग्रेसी उम्मीदवार की उम्मीदें तो सिर्फ सपा समर्थक वोट बैंकों पर टिकी हुई है। बसपा भी जातीय गणित को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी है।