यूपी चुनाव में राजनीतिक दलों से इतर यदि किसी एक शख़्स की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी तो वे थे कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर। इस चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के ‘चुनावी चाणक्य’ प्रशांत किशोर की हैसियत में बड़ा बदलाव होने वाला है। यूपी में हार के आसार के बाद कांग्रेस नेतृत्व निश्चित रुप से प्रशांत किशोर से पीछा छुड़ाना चाहेगी, इससे पहले प्रशांत किशोर की प्लानिंग में ही कांग्रेस को असम में शिकस्त मिली थी। ( चुनावी नतीजों का LIVE UPDATE पढ़ें)

प्रशांति किशोर ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खोयी ज़मीन को वापस पाने के लिए व्यापक प्लान तैयार किया था। लखनऊ में वॉर रुम बनाया गया। टीम पीके के कार्यकर्ताओं ने हर बूथ का डीएनए खंगाला, वहां का जातिगत और धार्मिक आंकड़ा तैयार किया गया और टिकट को देने में इन आंकड़ों का पूरा ख्याल रखा गया। चर्चा थी कि पीके की टीम में 500 लोग काम कर रहे हैं। लेकिन असम की तरह यहां भी पीके की रणनीति फेल रही । कहा जाता है कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस और सपा का गठबंधन करवाने में अहम भूमिका निभायी थी। और अखिलेश-राहुल की हर साझा रैली की स्क्रिप्ट भी पीके की टीम भी तैयार करती थी।

प्रशांत किशोर 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए लकी साबित हुए, इसके बाद प्रशांत किशोर की बीजेपी नेतृत्व के साथ नहीं बनी और प्रशांत किशोर को ‘कमल’ का साथ छोड़ना पड़ा। इसके बाद प्रशांत किशोर ने तुरंत पीएम मोदी के धुर विरोधी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अपनी दूसरी पारी शुरू कर दी । प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के साथ बिहार में व्यापक प्रचार अभियान चलाया और नीतीश कुमार को विजय श्री दिलवाने में अहम भूमिका दिलवाई। लेकिन प्रशांत किशोर ने जब असम में कांग्रेस को जीत दिलवाने का जिम्मा लिया तो वहां आरएसएस की महीन रणनीति और राजनीति के सामने प्रशांत के दांव धराशायी हो गये और वहां से कांग्रेस की 15 साल पुरानी सरकार धराशायी हो गयी।