उत्तर प्रदेश की सियासी फिजा अलग है। सियासत करने की ख्वाहिश यहां हाकिम भी पाले हैं और माफिया की पत्नी भी। इस बार के चुनाव में कई हाकिम राजनेता हो गए। कई पहले से हैं। जबकि जेलों में बंद अपने माफिया पति की दुहाई देकर उनकी पत्नी भी इस बार राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने उतरी हैं।
पहले बात हाकिमों की। इन हाकिमों में अधिकांश ऐसे हैं जिन्हें कभी बहुजन समाज पार्टी की राष्टीय अध्यक्ष मायावती का बेहद करीबी माना जाता था। आप कुंवर फतेह बहादुर को ही ले लें। कभी इनका शुमार मायावती के बेहद करीबी अधिकारियों में होता था। इनकी वजह से बहनजी को कई बार आलोचनाओं का शिकार भी होना पड़ा। 2007 से 2012 तक बहनजी की पूर्ण बहुमत की सरकार में फतेह बहादुर कई अहम पदों पर काबिज हुए।
सेवानिवृत्त हुए तो इन्होंने बसपा का दामन थामा। लेकिन वहां इनका मन लगा नहीं। इस वजह से इन्होंने बहनजी का दामन छोड़ा और समाजवादी पार्टी के पाले में जा खड़े हुए। ऐसे ही एक अन्य सेवानिवृत्त अधिकारी हैं पीएल पुनिया। मायावती की सरकार में पुनिया का अलग रसूख था। मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव रहे पुनिया ने सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस का दामन थामा। 2009 में ये बाराबंकी से कांग्रेस के टिकट पर सांसद हुए। अब इनका शुमार कांग्रेस के गंभीर नेताओं में होता है।
एक अन्य आइपीएस अधिकारी हैं बृजलाल। मायावती सरकार में इन्हें उत्तर प्रदेश का पुलिस महानिदेशक बनाया गया। सेवानिवृत्ति के बाद बृजलाल भाजपाई हो गए। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजा। इस वक्त वे दलित चिंतक के तौर पर भाजपा के मुखर वक्ताओं में शुमार हैं। वहीं मायावती की सैंडिल साफ करने के बाद सुर्खियों में आए मायावती के सर्वाधिक विश्वासपात्र अधिकारियों में शुमार पदम सिंह अब भाजपाई हैं। बसपा के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव मोहनलालगंज से लड़ने वाले राम बहादुर भी अब भाजपाई हो चुके हैं। जबकि एक अन्य नौकरशाह त्रिभुवन राम भी बसपा का साथ छोड़ चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के टिकट पर मछलीशहर से चुनाव लड़ चुके त्रिभुवन सिंह को भाजपा ने इस बार अपना उम्मीदवार बनाया है।
इस विधानसभा चुनाव में कई माफिया की पत्नियां भी मैदान में हैं। मसलन, अयोध्या की गोसाईगंज सीट से भाजपा प्रत्याशी आरती तिवारी मैदान में हैं। वे इसी सीट से भाजपा के टिकट पर 2017 के विधानसभा चुनाव में जीते इंद्रदेव तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की पत्नी हैं। खब्बू को अदालत ने अंकपत्र में गड़बड़ी का दोषी करार देते हुए पांच साल की सजा सुनाई।
प्रयागराज में माफिया अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन चुनाव मैदान में उतरने की कवायद में हैं। 1989 से 1993 तक इलाहाबाद शहर पश्चिमी से निर्दलीय विधायक रहे और 1996 में सपा के टिकट पर विधायक और सपा के ही टिकट पर 2004 में फूलपुर से सांसद रहे अतीक इस वक्त अहमदाबाद की साबरमती जेल में बंद हैं। उनके नाम पर सहानुभूति बटोरने की उनकी पत्नी पुरजोर कोशिश में हैं।
वहीं गैंगेस्टर एक्ट में जेल में बंद नाहिद हसन सपा के टिकट पर 2017 का चुनाव जीते। इस बार भी उन्होंने जेल से नामांकन किया है। उनकी बहन इकरा हसन ने पहले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कैराना से नामांकन किया। लेकिन भाई के नामांकन के बाद उन्होंने नाम तो वापस ले लिया। वहीं अलीगढ़ की सीट को 25 साल बाद भाजपा के पाले में लाने वाले संजीव राजा पुलिस कर्मियों से मार-पीट के मसले पर चर्चा में आए। उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई। हालांकि वे अभी बाहर हैं लेकिन उनकी पत्नी मुक्ता राजा को भाजपा ने इस बार अलीगढ़ से टिकट दिया है।