लोकसभा चुनाव में बीजेपी या कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने वाले 82 दलबदलुओं में से बमुश्किल एक तिहाई ही देश भर के विभिन्न राज्यों में अपनी सीटें जीतने में कामयाब रहे। बीजेपी की ओर से मैदान में उतारे गए दलबदलुओं की सफलता दर में 2014 और 2019 के चुनावों की तुलना में काफी गिरावट देखी गई। दूसरे दलों से आकर बीजेपी का टिकट पाने वाले 52 में से 35 नेता चुनाव हार गए।

बीजेपी और कांग्रेस के लगभग 33 फीसदी लोगों ने जीत हासिल की

अशोका विश्वविद्यालय के त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा के एक शोध पत्र के अनुसार बीजेपी की ओर से मैदान में उतारे गए दलबदलुओं की सफलता दर 2014 और 2019 में क्रमशः 66.7% और 56.5% थी, जो इस बार घटकर 32.7% रह गई। दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से मैदान में उतारे गए 30 में से 20 दलबदलू मौजूदा चुनावों में धूल चटा बैठे, लेकिन उनमें से 33.3% ने जीत हासिल की। यह 2014 और 2019 में उनके 5% स्ट्राइक रेट से उल्लेखनीय वृद्धि है।

कांग्रेस से बीजेपी में आए 52 दलबदलुओं में से 25 चुनाव हार गये

बीजेपी के 52 दलबदलू उम्मीदवारों में से 25 कांग्रेस से आए थे, जिनमें से 13 चुनाव हार गए। इसके विपरीत कांग्रेस में शामिल हुए 11 बीजेपी नेताओं में से सात को हार का सामना करना पड़ा। उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड और राजस्थान में इन चुनावों में कुछ महत्वपूर्ण उलटफेर देखने को मिले। यूपी में समाजवादी पार्टी (एसपी) से बीजेपी में शामिल हुए पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर बलिया में एसपी के सनातन पांडे से 40,000 से अधिक वोटों से हार गए।

मुंबई कांग्रेस के पूर्व प्रमुख कृपाशंकर सिंहचुनाव नहीं जीत सके

बीजेपी की ओर से मैदान में उतारे गए अन्य दलबदलू, मुंबई कांग्रेस के पूर्व प्रमुख कृपाशंकर सिंह और पूर्व बसपा सांसद रितेश पांडे क्रमशः जौनपुर और अंबेडकर नगर से हार गए। एक अन्य पूर्व बसपा सांसद दानिश अली, जिन्हें मायावती ने निष्कासित कर दिया था और जो कांग्रेस में शामिल हो गए थे, अमरोहा सीट से कांग्रेस के टिकट पर हार गए। हालांकि राहुल गांधी के करीबी पूर्व कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद, जो 2019 के चुनावों के बाद बीजेपी में चले गए थे, पीलीभीत से 1 लाख से अधिक वोटों से जीते। यह वह सीट है जहां बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद वरुण गांधी की जगह उनको मैदान में उतारा था।

कांग्रेस के दिग्गज नेता ए के एंटनी के बेटे अनिल एंटनी भी हारे

केरल में कांग्रेस के दिग्गज नेता ए के एंटनी के बेटे अनिल एंटनी चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हो गए थे। उन्हें पार्टी ने पथानामथिट्टा से टिकट दिया था। वे दूसरे स्थान पर रहे सीपीआई (एम) के थॉमस इस्साक और विजेता कांग्रेस के एंटो एंटनी के पीछे तीसरे स्थान पर रहे थे। कांग्रेस से बीजेपी में आए सी रघुनाथ का भी यही हाल रहा और कन्नूर में माकपा के एम वी जयराजन और कांग्रेस के के सुधाकरन के बाद तीसरे स्थान पर रहे। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) से बीजेपी में शामिल हुए पांच नेताओं में से केवल एक दलबदलू सौमेंदु अधिकारी ही जीत पाए। हार का स्वाद चखने वालों में कोलकाता उत्तर से तपस रॉय भी शामिल हैं। चुनाव से पहले उनके आवास पर ईडी की छापेमारी के बाद रॉय बीजेपी में शामिल हो गए थे। झारखंड में बीजेपी से मैदान में उतरे दो दलबदलू चुनाव हार गए।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संरक्षक शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को दुमका में हार का सामना करना पड़ा, जबकि सिंहभूम से पूर्व कांग्रेस सांसद और पूर्व सीएम मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी अपनी सीट हार गईं। पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की ईडी द्वारा गिरफ्तारी और जेएमएम के भीतर सत्ता संघर्ष के बीच सीता के इस कदम ने राज्य में चुनावों को हिलाकर रख दिया था। हरियाणा में बीजेपी द्वारा उतारे गए दलबदलुओं के लिए मिश्रित परिणाम सामने आए। कांग्रेस से आए नवीन जिंदल कुरुक्षेत्र से जीते, जबकि आईएनएलडी के संरक्षक ओम प्रकाश चौटाला के भाई रंजीत चौटाला और पूर्व राज्य कांग्रेस प्रमुख अशोक तंवर को क्रमशः हिसार और सिरसा सीटों से हार का सामना करना पड़ा।

दूसरी ओर, दिल्ली में कांग्रेस को झटका लगा, क्योंकि उत्तर पूर्व दिल्ली से उसके उम्मीदवार कन्हैया कुमार, जो सीपीआई से दलबदलू हैं, बीजेपी के मनोज तिवारी से 1.5 लाख से अधिक मतों से हार गए। 13 लोकसभा सीटों वाले पंजाब में 20 दलबदलू मैदान में थे, जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ा। पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह के पोते और पूर्व कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू लुधियाना से हार गए, जबकि पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी और पूर्व कांग्रेस सांसद परनीत कौर को पटियाला में हार का सामना करना पड़ा।

चुनाव से ठीक पहले बिट्टू के दलबदल ने कई लोगों को चौंका दिया, क्योंकि वह तीन बार सांसद रह चुके थे और कांग्रेस में उनका खासा दबदबा था। उन्होंने उस समय पार्टी छोड़ी, जब किसानों के विरोध प्रदर्शन के कारण राज्य में बीजेपी की स्थिति खराब चल रही थी। कांग्रेस के धर्मवीर गांधी, जो आप से दलबदलू थे, ने परनीत को हराया।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कुल मिलाकर 33 दलबदलू उम्मीदवार मैदान में थे। तेलंगाना में, जहां पिछले साल विधानसभा चुनाव में भारत राष्ट्र समिति (BRS) को करारी हार का सामना करना पड़ा था, 20 दलबदलुओं में से 11 बीजेपी में शामिल हो गए, जिनमें से पांच हार गए। कांग्रेस के टिकट पाने वाले पांच दलबदलुओं में से केवल एक ने जीत दर्ज की। बीआरएस ने तीन मौजूदा सांसदों को खो दिया, जिनमें से दो बीजेपी में चले गए, जबकि एक कांग्रेस में चला गया।

तेलंगाना के चेवेल्ला निर्वाचन क्षेत्र में तीनों प्रमुख पार्टियों – कांग्रेस, बीजेपी और बीआरएस – के उम्मीदवार दलबदलू थे। बीजेपी ने कांग्रेस से दलबदलू कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी को मैदान में उतारा, जबकि कांग्रेस ने जी रंजीत रेड्डी को मैदान में उतारा, जो पहले बीआरएस में थे। इसने बदले में टीडीपी से दलबदलू कसानी ज्ञानेश्वर को मैदान में उतारा। आखिरकार कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी ने चुनाव जीत लिया।