मोदी सरकार तीसरी बार फिर केंद्र में आने के लिए जोरदार अंदाज में प्रचार कर रही है। उसके अपने दावे जनता के बीच में चल रहे हैं, कुछ नेरेटिव आधारित हैं तो कुछ आंकड़ों के जरिए भी पेश किए जा रहे हैं। किसी भी लोकतंत्र में अगर सरकार का हिसाब जनता को पता हो तो वहां वोटर की ताकत भी कई गुना बढ़ जाती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हिसाब जरूरी है की छठी किश्त आपके सामने रख रहे हैं। आज बात की जाएगी उस उड़ान योजना की जिसके जरिए सरकार ने दावा किया कि हवाई चप्पल पहनने वाला भी हवाई जहाज का सफर कर पाया।
केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2016 में उड़ान योजना की शुरुआत की थी। UDAN का मतलब था उड़े देश का आम नागरिक। अब जैसा नाम, इस योजना के जरिए टाइर 2 और टाइर 3 शहरों में फ्लाइट उड़ाने की बात हुई थी। सरकार ये मान रही थी कि हर छोटे-बड़े आदमी को हवाई जहाज से सफर करने का मौका मिलना चाहिए। अब ऐसा संभव तभी था जब कनेक्टिविटी बेहतर हो सके। अब उसी चीज को करने के लिए उड़ान योजना शुरू की गई।
इस योजना के तहत दो बातों पर ध्यान दिया गया- पहला ये कि लोगों को किराया कम देना पड़ा, दूसरा ये कि छोटे शहरों से भी फ्लाइट उड़ें। अब कुछ हद तक पहले काम में तो सरकार को सफलता मिली है। उड़ान के तहत जो फ्लाइट बुक हुईं, उसमें यात्रियों को कम रुपये देने पड़े हैं। लेकिन यहां भी धांधली के आरोप भी लगे हैं। अब ये आरोप ना विपक्ष ने लगाए हैं, ना ही कोई आरोप हम अपनी तरफ से लगा रहे हैं। लेकिन CAG की ही जांच है जिससे पता चलता है कि कई एयरलाइन्स ने रियायती सीटों की उपलब्धता ही दिखाना बंद कर दिया था। उस वजह से लोगों को पता ही नहीं चला कि कम दामों में भी उन्हें टिकट मिल सकता है।
अब समझने वाली बात ये है कि उड़ान योजना के तहत कहा गया था कि जितने भी ऑपरेटर हैं, पहले वे रियायती किराए वाली टिकटें बेचेंगे। उसके बाद गैर रियायती टिकट बेची जाएंगी। अब कई एयरलाइन्स ने खेल ये किया कि एक समय बाद रियायती किराए वाली विंडो दिखाना ही बंद कर दिया, यानी कि जिसे भी टिकट बुक करना है तो उसे ज्यादा दाम देना ही पड़ेगा। अब ये धांधली तो हुई है, इसका असर उड़ान योजना के तहत हवाई जहाज से सफर करने वाले यात्रियों पर भी पड़ा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआत में उड़ान योजना के तहत सफर करने वाले यात्रियों की संख्या में 10 गुना तक की वृद्धि देखने को मिली थी, तब सभी को लगा कि केंद्र सरकार की ये योजना रंग लाई है, लेकिन बाद में तमाम ऐसी चुनौतियां सामने आईं कि वो बड़ा हुआ आंकड़ा ही घट गया।
साल | यात्री |
2017-18 | 2.63 लाख |
2018-19 | 12.40 लाख |
2019-20 | 29.91 लाख |
2020-21 | 14.98 लाख |
2021-22 | 32.99 लाख |
2022-23 | 24.97 लाख |
अब CAG का आंकड़ा सरकार की इस योजना पर कई तरह के सवाल उठाता है। इतने सालों बाद अगर यात्रियों की संख्या में कमी आने लगी है, कहीं तो चूक हो रही है। चूक तो यहां भी है कि शुरुआत में कहा गया था कि 774 रूट्स पर फ्लाइट रन की जाएंगी। लेकिन वर्तमान में 403 ऐसे रूट्स हैं जहां पर अभी तक उड़ाई शुरू ही नहीं हो पाई है। वहां भी जिन 371 रूट्स पर उड़ान शुरू भी हुई, सिर्फ 112 रूट ही 3 साल तक लगातार ऑपरेशन जारी रख पाए। बाद में यहां भी कई रूट्स पर लंबे समय से कोई फ्लाइट उड़ान नहीं भरी है। हैरानी की बात ये है कि 2023 तक तो 371 में से सिर्फ 54 ऐसे रूट बचे हैं जहां पर सक्रिय रूप से संचालन चल रहा है।
अब अगर कहां जाए कि पूरी तरह एयरलाइन इस विफलता के लिए जिम्मेदार हैं, तो ये बेइमानी होगा। इस योजना की जिस तरह से प्लानिंग की गई है, वहां भी कई चूक हुई हैं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जिन रूट्स का चयन किया गया है, कई ऐसे हैं जहां पर फ्लाइट चलाकार थोड़ा भी मुनाफा नहीं कमाया जा सकता है। ये सच है कि सरकार सब्सिडी दे रही है, लेकिन वो भी नाकाफी साबित हो रही है। इसी वजह से कई रूट्स पर उड़ान बंद हो चुकी हैं।
इसके ऊपर जो पहाड़ी इलाके हैं, वहां पर अभी भी उतना इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप नहीं हो पाया है। ऐसे में कई ऐसे एयरपोर्ट हैं जिन्हें अब चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को अपग्रेड करना पड़ेगा, लेकिन उतने संसाधन उन्हें मिल ही नहीं पा रहे हैं।