उत्तराखंड में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों और एक मौजूदा मुख्यमंत्री की राजनीति साख दांव पर लगी है। उत्तराखंड में हो रहा विधानसभा चुनाव इन तीनों नेताओं के राजनीतिक भविष्य की दिशा और दशा तय करेगा। इन तीनों नेताओं ने अपने राजनीतिक भविष्य के लिए इस वक्त एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी, उनके ममेरे भाई विजय बहुगुणा और कांग्रेस के दिग्गज और मौजूदा मुख्यमंत्री हरीश रावत 2017 के विधानसभा चुनाव में अपने राजनीतिक जीवन की सबसे महत्त्वपूर्ण पारी खेल रहे हैं। हरीश रावत उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के मैदानी जिले उधमसिंह नगर की किच्छा विधानसभा सीट और गढ़वाल मंडल के मैदानी जिले हरिद्वार की हरिद्वार ग्रामीण विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं बहुगुणा और खंडूड़ी ने अपने बेटे और बेटी पर दांव खेला है।  बहुगुणा ने उधमसिंहनगर की सितारगंज विधानसभा सीट से अपने छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा और खंडूड़ी ने अपनी बेटी ऋतु खंडूड़ी को गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले की यमकेश्वर विधानसभा से भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा है। विजय बहुगुणा अपने पिता और भुवन चंद्र खंडूड़ी अपने मामा हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक विरासत के बूते उत्तराखंड की राजनीति में उतरे हैं। यही विरासत दोनों नेता अपनी संतानों को सौंपना चाहते हैं।

वहीं हरीश रावत ने अपनी राजनीतिक विरासत खुद तैयार की है। वे दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक पारी सुरक्षित बनाने में लगे हैं। रावत पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट यह आरोप लगाते हैं कि हरीश रावत बात तो पहाड़ी युवकों का पलायन रोकने की बात करते हैं। लेकिन खुद ही पहाड़ से पलायन कर मैदानी इलाकों से चुनाव लड़ रहे हैं। वो कहते हैं कि रावत को पहाड़ी युवकों के पलायन की बात करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। रावत हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा विधानसभा सीट से मुसलमान, ठाकुर और पहाड़ी वोटरों के भरोसे लड़ रहे हैं। इन दोनों विधानसभा सीटों में इन तीनों की तादात निर्णायक है। ये दोनों सीटें 2012 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई हैं। किच्छा विधानसभा सीट पहले रुद्रपुर विधानसभा सीट में समाहित थी। रुद्रपुर से 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के तिलक राज बेहड़ जीते थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में किच्छा सीट पर पहली बार चुनाव हुआ। 2011 में रुद्रपुर में हुए सांप्रदायिक दंगे की आग की वजह से उधमसिंहनगर जिले में वोटों का ध्रुवीकरण की वजह से भाजपा के राजेश शुक्ल ने मुसलिम उम्मीदवार सरबरयार खान को आठ हजार वोटों से हराया था। इस बार किच्छा में रावत के खिलाफ भाजपा ने मौजूदा विधायक राजेश शुक्ल, बसपा ने ठाकुर राजेश प्रताप सिंह को टिकट दिया है।
किच्छा में कुल एक लाख 19 हजार तीन सौ ग्यारह मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाता 63 हजार 904 तथा महिला मतदाता 55 हजार 407 हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीवन चंद्र पंत कहते हैं कि हरीश रावत के इस सीट पर चुनाव लड़ने से कांग्रेस की गुटबाजी खत्म हो गई है। कांग्रेस के सभी स्थानीय नेता और कार्यकर्ता रावत के पक्ष में चुनाव प्रचार में जुटे हैं। समाजसेवी कैलाश चंद्र कांडपाल का कहना है कि रावत ने किच्छा के विकास के लिए आठ हजार एकड़ जमीन औद्योगिक क्षेत्र बनाने के लिए सिडकुल को दी है। उन्होंने डिग्री कॉलेज और आइटीआइ खोलने की घोषणा की है।
यमकेश्वर विधानसभा सीट से भुवन चंद्र खंडूड़ी की बेटी ऋतु खंडूड़ी भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। उन्हें भाजपा का पैरासूट उम्मीदवार माना जा रहा है। यह सीट पौड़ी गढ़वाल की जिले के तहत आती है। यहां भाजपा के टिकट पर लगातार दो विधानसभा चुनाव जीतने वाली मौजूदा विधायक विजया बड़थ्वाल का टिकट काटकर ऋतु खंडूड़ी को टिकट दिया गया। इसका दोष विजया बड़थ्वाल खंडूड़ी को देती हैं। ॉविजय बहुगुणा के मनाने पर विजया बड़थ्वाल ने ऋतु खंडूड़ी को समर्थन देने का एलान किया। उनके समर्थक ऋतु खंडूड़ी के पक्ष में नहीं हैं।
कांग्रेस ने भाजपा के बागी नेता शैलेंद्र सिंह रावत को टिकट दिया है। इससे यहां भाजपा और कांग्रेस में सीधी लड़ाई है। शैलेंद्र को टिकट मिलने के बाद कांग्रेस की नेता रेणु बिष्ट निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रही हैं। बसपा ने जगपाल सिंह सैनी और उत्तराखंड क्रांति दल ने शांति प्रसाद भट्ट को चुनाव मैदान में उतारा है। इस सीट पर आठ उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। यहां 83 हजार 484 मतदाता है। जिनमें 43 हजार 919 पुरुष और 39 हजार 565 मतदाता महिलाएं हैं।
सितारगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस बागियों के नेता पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा है। इस सीट पर विजय बहुगुणा के छोटे बेटे सौरभ बहुगुणा भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। 2012 में भाजपा के किरण मंडल ने बसपा के नारायण पाल को इस सीट से हराया था। 2012 में बहुगुणा ने मुख्यमंत्री बनने पर किरण मंडल को इस्तीफा दिलवाकर कांग्रेस में शामिल करवाया था। अगस्त 2012 में हुए उपचुनाव में विजय बहुगुणा कांग्रेस के टिकट पर भाजपा के प्रकाश पंत को हराया। अब विजय बहुगुणा इस सीट पर अपने बेटे के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी हार या जीत विजय बहुगुणा के राजनीतिक भविष्य तय करेगा। जीत के लिए विजय बहुगुणा सितारगंज में रात-दिन एक किए हुए हैं।
वहीं मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सौरभ को हारने के लिए अपने सारे दांव इस सीट पर लगा दिए हैं। कांग्रेस ने बंगाली समुदाय की मालती विश्वास को चुनाव मैदान में उतारा है।