तेलंगाना चुनाव में इस बार मुकाबला बीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी के बीच में बताया जा रहा है। बीजेपी तो इस समय विस्तार करने पर ज्यादा फोकस रही है, ऐसे में निर्णायक लड़ाई तो केसीआर की पार्टी और कांग्रेस के बीच देखी जा रही है। यहां भी तमाम एग्जिट पोल्स के जो अनुमान सामने आए हैं, वहां पर एक बात स्पष्ट दिख रही है- कांग्रेस शानदार वापसी कर सकती है। कांग्रेस को टुडेज चाणक्य एग्जिट पोल ने प्रचंड बहुमत दे दी है। इतनी सीटें झोली में डाली गई हैं कि शायद कई सालों का सियासी वनवास भी पार्टी को ना चुभे।
क्या बताते हैं एग्जिट पोल के अनुमान?
न्यूज-24 टुडेज चाणक्या के एग्जिट पोल के अनुसार, तेलंगाना में कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाती नजर आ रही है। यहां कांग्रेस को 71, बीआरएस को 33, बीजेपी को 7, अन्य के खाते में 8 सीटें, जबकि AIMIM को एक भी सीट नहीं मिल रही है। इसी तरह रिपब्लिक टीवी- मैट्राइज (Matrize) के एग्जिट पोल के मुताबिक, दक्षिण राज्य तेलंगाना में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 58-68 सीटें मिलने की संभावना है। वहीं बीआरएस को 46-56, बीजेपी को 4-9, AIMIM को 5-7 से सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि अन्य के खाते में 0-1 सीट जाने की उम्मीद है।
अब अगर इन दो एग्जिट पोल्स को ही एग्जैक्ट पोल मान लिया जाए, ये कहना गलत नहीं होगा कि तेलंगाना में कांग्रेस की प्रचंड वापसी होने जा रही है। एक ऐसे राज्य में पार्टी शानदार प्रदर्शन करती दिख रही है जहां पिछले चुनाव तक वो बीजेपी से भी पिछड़ गई थी। उसे तो इस बात का डर सता रहा था कि कहीं मुख्य विपक्षी पार्टी का तमगा भी उसके हाथ से ना छिटक जाए।
कांग्रेस क्यों कर रही इतना अच्छा?
लेकिन कांग्रेस पार्टी ने कुछ ऐसे कमद उठाए कि तेलंगाना चुनाव की हवा ही बदल गई। अगर बहुत ध्यान से कांग्रेस की चुनावी रणनीति को समझा जाए तो साफ पता चलता है कि इस बार काफी संतुलित तरीके से पूरा प्रचार भी किया गया और कैल्कुलेटिव अंदाज में कई फैसले होते देखे गए। इसी वजह से अगर तेलंगाना चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिलता है तो उसके दो सबसे बड़े कारण रहने वाले हैं- पहला कर्नाटक फॉर्मूला और दूसरा ए रेवंत रेड्डी।
कर्नाटक के तीन चेहरों ने बदल दिया सबकुछ!
अब बात अगर सबसे पहले कर्नाटक फॉर्मूले की करें तो ये नहीं भूलना चाहिए कुछ महीने पहले ही दक्षिण के इस राज् में कांग्रेस ने अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी। उस जीत में सबसे बड़ा योगदान तीन चेहरों का रहा- मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे। अब इन तीनों ही चेहरों ने कर्नाटक अंदाज में ही तेलंगाना में जोर-शोर से प्रचार करने का काम किया है। बड़ी बात ये है कि तेलंगाना के जो भी जिले कर्नाटक से सटे हुए हैं, वहां पर कांग्रेस ने अलग रणनीति पर काम करते हुए उन्हीं नेताओं को वहां की जिम्मेदारी सौंपी गई जिन्होंने पार्टी को कर्नाटक में भी जीत दिलाने का काम किया।
पार्टी ने कर्नाटक में जिन गारंटियों के दम पर सरकार बनाई, उन्हीं गारंटियों को तेलंगाना चुनाव में भी अपने घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया। इसके ऊपर कर्नाटक सरकार के ही जो मंत्री रहे, उनसे ही तेलंगाना में उन गारंटियों को लेकर वादे करवाए। दिखाने का प्रयास हुआ कि जो वादे कर्नाटक में पूरे हुए हैं, उन्हें तेलंगाना में भी जरूर पूरा किया जाएगा। जानकार मानते हैं कि जमीन पर इसका असर हुआ है।
जातीय समीकरण कैसे साधे गए?
वैसे तेलंगाना में कांग्रेस ने कास्ट पॉलिटिक्स पर भी पूरा ध्यान दिया है। ओबीसी को साधने के लिए सिद्धारमैया को आगे किया गया तो मल्लिकार्जुन खड़गे के जरिए आदिवासी और दलित वोटों को प्रभावित करने की कवायद दिखी। इसके ऊपर कांग्रेस के सबसे बड़ी रणनीतिकार माने जाने वाले डीके शिवकुमार को तेलंगाना में भी चुनावी मैनेजमेंट का जिम्मा सौंपा गया था। अब अगर एग्जिट पोल ही सही निकलते हैं तो कांग्रेस की रणनीति जमीन पर रंग लाई है।
कांग्रेस को तेलंगाना में उठाने वाला ‘हीरो’
अब रंग तो कांग्रेस की एक और रणनीति जमीन पर लाती दिख रही है। असल में साल 2021 में कांग्रेस ने बड़ा दांव चलते हुए ए रेवंत रेड्डी को अपना प्रदेश अध्यक्ष बना दिया था। टीडीपी छोड़कर कांग्रेस में आए रेड्डी को हाई कमान का पूरा समर्थन शुरुआत से ही मिला। माना जाता है कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम भी रेड्डी का ही रहा क्योंकि लगातार मिल रही हार ने तेलंगाना में भी कांग्रेस को अर्श से फर्श पर लाने का काम कर दिया था। इसी वजह से रेड्डी को आगे कर कांग्रेस ने ना सिर्फ सवर्ण जाति पर फोकस किया बल्कि कहना चाहिए कि पार्टी को भी अलग दिशा दिखाने का काम किया।