देश की राजनीति समय के साथ कितनी भी आधुनिक क्यों ना हो जाए, कहने को विकास को ज्यादा तवज्जो दी जाने लगे, स्थानीय मुद्दों का बोलबाला भी दिखाई दे जाए, लेकिन फिर भी जातियों से पीछा नहीं छूटता है। कोई भी दल सिर्फ विकास या चेहरे के दम पर चुनाव नहीं जीतता है। हर पार्टी के समीकरण के हिसाब से जातिगत सोशल इंजीनियरिंग करनी ही पड़ती है। राजस्थान तो एक ऐसा राज्य है जहां पर शुरुआत से ही जातियों का असर तगड़ा रहा है। चाहे कांग्रेस या बात हो बीजेपी की, जातियों ने ही कई सीटों पर हार-जीत तय की है।
इस बार जब फिर राजस्थान में चुनाव नजदीक हैं, हर किसी की दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। कोई पॉलिटिकल पंडित हो या ना हो, लेकिन इस चुनाव पर सभी की नजर है। अब हर चुनाव के अपने समीकरण होते हैं, अपनी जातियां होती हैं, अगर स्थिति को सही तरह से समझना हो तो इस सब की जानकारी होना जरूरी रहता है। राजस्थान का चुनाव भी बहुत दिलचस्प है, जातियों ने ही इसे ज्यादा रुचि वाला बना दिया है। इस हिंदी पट्टी राज्य में गुर्जर, जाट, राजपूत और मीणा सबसे बड़ी जातियां हैं, इन्हीं की इर्द-गिर्द यहां की राजनीति रहती है। एक-एक कर इन जातियों के बारे में अगर सबकुछ पता चल गया, कहना गलत नहीं होगा कि आपको राजस्थान चुनाव की सारी जानकारी हो गई।
राजस्थान का जाट वोटर
राजस्थान में सबसे प्रभावशाली जाट वोटर माना जाता है। इस राज्य की राजनीति ही इस वोटबैंक के इर्द-गिर्द काफी हद तक रहती है। राज्य में जाट वोटर 10 फीसदी के करीब हैं और 35 से 40 सीटों पर उन्हीं के दम पर हार-जीत तय हो जाती है। ये एक ऐसा वोटबैंक है जो समान रूप से बीजेपी और कांग्रेस में बंटा हुआ है। यहां भी जो शेखावटी इलाका है, वहां तो सबसे ज्यादा सक्रिय ये जाट वोटर रहता है। इसके अलावा जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर में भी जाट वोटर ही निर्णायक माना जाता है। हनुमानगढ़, गंगानगर, चित्तौड़गढ़, अजमेर जैसे इलाकों में इस जाति का पूरा बोलबाला है।
पिछले चुनाव में 38 जाट प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। इसमें बीजेपी के 18 रहे तो कांग्रेस के भी 12 जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। अब सीटों के लिहाज से तो जाट वोटर की अहमियत को समझ लिया गया है, लेकिन दोनों कांग्रेस और बीजेपी के पास कई ऐसे बड़े नेता भी मौजूद हैं जिसकी वजह से जाट वोट शिफ्ट होता रहता है। जब भी जाटों की बात की जाती है, राजस्थान में हनुमान बेनिवाल का नाम लेना लाजिमी रहता है। उन्हें जाट का सबसे प्रभावशाली नेता माना जा सकता है। पिछला विधानसभा चुनाव तो उन्होंने बतौर निर्दलीय लड़ा, लेकिन बाद बीजेपी से हाथ मिला लिया। अब कुछ समय पहले कृषि कानूनों की वजह से बीजेपी से भी उन्होंने दूरी बना ली, लेकिन सचिन पायलट के वे करीब आ चुके हैं।
कांग्रेस की बात करें तो उसके पास गोविंद सिंह डोटसारा जैसे बड़े जाट नेता मौजूद हैं जो वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष के पद पर भी आसीन हैं। बीजेपी के पास भी सतीश पूनिया जैसे मजबूत जाट नेता हैं जो अपने दम पर कुछ सीटें तो पार्टी के खाते में डाल सकते हैं। वर्तमान में पूनिया नेता प्रतिपक्ष की भूमिका अदा कर रहे हैं, ये अलग बात है कि पार्टी ने उनसे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छीन ली थी।
राजस्थान का गुर्जर वोटर
अब राजस्थान में अगर जाट वोटरों का बोलबाला रहता है तो दूसरी गुर्जर भी बड़ी संख्या अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। इस राज्य की सियासत की ये खूबसूरती है कि यहां पर कई जातियां निर्णायक भूमिका निभाती हैं, ऐसे में किसी एक को खुश कर सत्ता वापसी की उम्मीद नहीं लगाई जा सकती। पूर्वी राजस्थान का जो इलाका है वहां पर 30 से 35 सीटों पर गुर्जर वोटर किसी भी प्रत्याशी की जीत तय कर सकता है। पारंपरिक रूप से गुर्जर समाज ने बीजेपी के प्रति अपनी वफादारी दिखाई है, लेकिन कुछ समय में सचिन पायलट की वजह से उस वोटबैंक का कुछ हिस्सा कांग्रेस को भी मिलने लगा है।
राजस्थान की दौसा, करौली, हिंदौन और टोंक सीट पर सबसे ज्यादा गुर्जर वोटर प्रभावशाली माना जाता है। भरतपुर, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूंदी भी ऐसे इलाके हैं जहां पर गुर्जर समाज ही निर्णायक माना जाता है। बड़ी बात ये है कि जो वोटर बीजेपी का वफादार माना जाता है, पिछले चुनाव में सारे समीकरण धरे के धरे रह गए थे। उम्मीद जगी थी कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा, ऐसे में गुर्जरों ने एकमुश्त होकर कांग्रेस को अपना वोट दिया और बीजेपी के साथ बड़ा सियासी खेला हो गया। हैरानी की बात ये रही कि उस चुनाव में बीजेपी का एक भी गुर्जर प्रत्याशी नहीं जीत पाया था।
वहीं कांग्रेस की बात करें तो पार्टी के सात विधायक विधानसभा तक पहुंचे थे। बसपा के जोगिन्दर सिंह अवाना भी जाट बाहुल सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे।
राजस्थान का राजपूत वोटर
अब राजस्थान में जो राजपूत वोटर है, वो 8 से 10 फीसदी के करीब है। कई ऐसी सीटें भी रहती हैं जहां पर इनकी जनसंख्या कम हो सकती है, लेकिन प्रत्याशी राजपूत ही जीतकर विधानसभा पहुंचता है। ये ट्रेंड ही बताने के लिए काफी है कि गुर्जर, जाट से कम होने के बावजूद भी राजस्थान की राजनीति में राजपूतों को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। राज्य में इनकी आबादी 8 से 10 फीसदी के करीब मानी जाती है, लेकिन इससे ज्यादा सीटों पर इनकी निर्णायक भूमिका है। एक आंकड़ा बताता है कि राज्य की 120 सीटों पर कभी ना कभी कोई राजपूत प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुका है।
वैसे 30 के करीब सीटों पर राजपूत निर्णायक भूमिका रखते हैं, इस समाज ने पिछले चुनाव में बीजेपी को जोरदार झटका दिया था। कह सकते हैं कि पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजह भी राजपूत वोटर ही रहा था।
राजस्थान का मीणा वोटर
राजस्थान का जो पूर्वी क्षेत्र है, वहां सिर्फ गुर्जर नहीं, बल्कि मीणा समाज का भी अच्छा दबदबा रहता है। कांग्रेस का इसे पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस की टिकट पर 9 मीणा प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। बीजेपी की तरफ से पांच विधायक जीते थे, वहीं तीन निर्दलीय भी जीत का परचम लहराने में कामयाब रहे। हैरानी की बात ये जरूर रही थी कि पिछले चुनाव में मीणा समाज के सबसे बड़े नेता किरोणिलाल मीणा को हार का सामना करना पड़ा था। राज्य में अगर मीणा और गुर्जर समाज के वोटों को मिला दिया जाए तो ये आंकड़ा 13 फीसदी तक पहुंचता है।