राजस्थान में आमतौर पर मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल राजधानी जयपुर में देखने को मिलती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 80 फीसदी प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाते हैं। बात अगर जयपुर की करें तो यह आंकड़ा 86 फीसदी के पार जाता है। जयपुर की अधिकांश सीटों पर तो सिर्फ भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी ही जमानत बचा पाते हैं। बड़ी बात यह है कि पिछले दो चुनावों में यह आंकड़ा बढ़ता रहा है। इस बार यहां कई छोटी पार्टियां भी चुनाव लड़ रही हैं ऐसे में उनकी उपस्थिति से हालात बदल सकते हैं।
ऐसा था पिछले चुनावों का हाल…
2013 में राज्य में कुल 2296 प्रत्याशी मैदान में थे जिनमें से 1843 यानी करीब 80 फीसदी की जमानत जब्त हो गई थी। वहीं 2008 में लड़ने वाले 2194 प्रत्याशियों में से 1730 यानी करीब 79 फीसदी की जमानत जब्त हो गई थी। राजधानी जयपुर में जमानत जब्त होने वाले प्रत्याशियों का आंकड़ा 86 फीसदी के करीब है। यहां की 19 में से पिछली बार सिर्फ तीन सीटों पर तीन ही उम्मीदवार ऐसे थे जो भाजपा-कांग्रेस से न होने के बावजूद अपनी जमानत बचा पाए थे।
भाजपा-कांग्रेस भी अछूती नहीं
जमानत जब्ती की जद में भले ही निर्दलीय और छोटे दल ज्यादा हों। लेकिन भाजपा और कांग्रेस भी इससे बच नहीं पाई है। पिछले चुनाव में भाजपा के पांच और कांग्रेस के 18 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी। इस बार 200 सीटों पर 2294 उम्मीदवार मैदान में हैं, हालांकि फिलहाल चुनाव सिर्फ 199 सीटों पर ही होने हैं।
क्या है जमानत जब्त होने का मतलब
चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी को आयोग के पास एक निश्चित राशि जमा करनी पड़ती है। यदि प्रत्याशी को निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल मान्य मतों का 16.66 फीसदी हिस्सा भी न मिल पाए तो उसकी जमानत राशि उसे वापस नहीं मिलती। उदाहरण के तौर पर यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में एक लाख मान्य मत डाले गए तो जमानत बचाने के लिए कम से कम 16,666 से ज्यादा वोट हासिल करने होंगे।