राहुल गांधी 18वीं लोकसभा के चुनाव को बगैर सिपाहियों के संख्या बल के ही फतह करने का सपना पाले हुए हैं। जबकि आलम यह है कि उनकी एक्स पोस्ट को आगे बढ़ाने की जहमत तक उठाना उत्तर प्रदेश के अधिसंख्य कांग्रेसी जरूरी नहीं समझते। 17वीं लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश के एक लाख 61 हजार मतदान केंद्रों में से अधिकांश ऐसे थे जहां कांग्रेस का बस्ता लगाने के लिए कार्यकर्ता ढ़ूंढ़े नहीं मिले थे। वैसा ही कुछ हाल इस बार भी है।

कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में कितने जोश-ओ-खरोश के साथ 18वींं लोकसभा में उतरने जा रही है, इसकी एक बानगी देखिए। कांग्रेस के लखनऊ स्थित प्रदेश मुख्यालय पर ऐसा कोई भी आंकड़ा नहीं है, जिससे इस बात की जानकारी की जा सके कि उसके पास प्रदेश भर में इस वक्त कितने कार्यकर्ता हैं।

इससे सहज ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि बूथ स्तर पर कमेटियों को गठित करने और उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ और ख्यातिलब्ध नेताओं ने कितनी मेहतन की है? उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर के कांग्रेस को रायबरेली, अमेठी, कानपुर नगर, फतेहपुर सीकरी, बांसगांव, सहारनपुर, प्रयागराज, महराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी, देवरिया लोकसभा सीटें मिली हैं। इन 17 लोकसभा सीटों को जीतने को लेकर कांग्रेस कितनी संजीदा है, इसकी भी एक बानगी देखिए। सात मार्च को राहुल गांधी ने युवाओं के मन में जगह बनाने के लिए एक घोषणा की।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस युवाओं को पांच ऐतिहासिक गारंटियां दे रही है। इनमें 30 लाख केंद्रीय सरकारी पदों पर तत्काल स्थायी नियुक्ति की गारंटी, हर स्रातक और डिप्लोमाधारी को एक लाख रुपए प्रतिवर्ष स्टाइपेंड के अप्रेंटिसशिप की गारंटी, पेपर लीक रोकने के लिए नया कानून बना कर विश्वसनीय ढंग से परीक्षा के आयोजन की गारंटी, गिग इकानोमी के कामगार बल के लिए काम की बेहतर परिस्थितियों, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी और 5000 करोड़ के राष्ट्रीय कोष से जिला स्तर पर युवाओं को स्टार्ट-अप फंड देकर उन्हें उद्यमी बनाने की गारंटी शामिल है। लेकिन मजे की बात यह है कि उत्तर प्रदेश की जिन 17 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस मैदान में वहां के मतदाताओं के बीच इस घोषणा को पहुंचाने के लिए पार्टी के पास कार्यकर्ताओं की पर्याप्त संख्या ही नहीं है।

उत्तर प्रदेश में चाहे विधानसभा चुनाव हों या लोकसभा चुनाव। चुनाव पूर्व तक ठंडे कमरे में आराम फरमाने के आदी हो चुके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ऐन चुनाव के पहले सक्रिय होते हैं और चुनाव खत्म होने के बाद फिर शीत निद्रा में वापस पहुंच जाते हैं। इसका बहुत बड़ा खामियाजा पार्टी को लगातार मिल रही हार की शक्ल में चुकाना पड़ रहा है। यही वजह है कि लगभग तीन दशक से कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से तो बाहर है ही, 17वीं लोकसभा चुनाव में भी वह इकाई के आंकड़े पर आ कर खड़ी हो गई है।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के बाद प्रदेश के कार्यकर्ताओं को प्रियंका गांधी से बहुत उम्मीदें थीं। उन्हें लगा था कि शायद अब पार्टी के दिन बहुरेंगे। लेकिन खुद प्रियंका गांधी चुनाव के खत्म होने के बाद उत्तर प्रदेश के कार्यकर्ताओं से न ही प्रदेश मुख्यालय पर आ कर मिलीं और न ही ऐसा राहुल गांधी ने ही किया।

इसका खामियाजा पार्टी को लगातार करारी पराजय की शक्ल में चुकाना पड़ रहा है। वे कहते हैं कि प्रदेश का कांग्रेस कार्यकर्ता खुद हताश है। उसे लोकसभा चुनाव के पहले ही चुनाव परिणाम का इल्म है। वह जानता है कि प्रदेश में कांग्रेस कुछ खास हासिल कर पाने की हालत में नहीं है। ऐसे में किसी अचम्भे की आस लगाना दिवा स्वप्न देखने से अधिक कुछ भी नहीं।