सत्ता में जब बात बदलाव की होती है तो आमतौर पर लोग प्रत्याशियों की अच्छाई-बुराई, उनकी उपलब्धियां-गलतियां सब भूल जाते हैं। तब सिर्फ और सिर्फ एक लहर चलती है और किसी एक दल या गठबंधन की तूती बोलती है। कुछ ऐसा ही नजारा 2017 में देखने को मिला था जब नारा दिया गया था, ‘कैप्टन दी सरकार’ और इस बार पंजाब विधानसभा चुनाव:2022 के समय जो नारा चुनावी फिजां में गूंजता सुनाई दे रहा है वह है ‘इक मौका . . . नूं’। यह नारा वोट में कितना बदलता है यह तो 10 मार्च को चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद ही पता चल पाएगा।

इस विस चुनाव में भी कुछ ऐसे ही बदलाव की फिजां के बीच वोटर की नब्ज टटोलने जनसत्ता जब बठिंडा के गांव कलझरणी की दाना मंडी में बैठे ताश खेल रहे ग्रामीणों के बीच पहुंचा, तो वहां सेवक सिंह भी अपने दोस्तों के साथ ताश खेलने में मशगूल नजर आए। जब उनसे उनकी उम्र के बारे में पूछा गया तो उन्हें अपनी सही उम्र का पता नहीं था लेकिन इतना कहा कि ‘50-55 दा ला लवो। उवें वी पिंडा च उम्र कौन यादा रक्खदा ऐ जी।’

उनसे जब पूछा गया कि गांव में मतदान का माहौल कैसा रहा तो कहा, ‘इस वारी तां असीं चाहंदे आं कि तीसरा मोर्चा आवे। आ वेक्खो, असीं ऐत्थे दाना मंडी दे इक कोने च बैठे हां जो हमेशा ही गांव विच पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल दे हेलिकाप्टर दे वास्ते हेलिपैड दे तौर ते इस्तेमाल होंदा रिहा ए।’
इसी गांव के ही हरविंदर सिंह वाटर वर्क्स में अनुबंधित कर्मचारी हैं। मतदान के रुझान पर उनका कहना है, ‘नहीं पता कि लोग किस सरकार को लाएंगे क्योंकि वोट तो पड़ गए लेकिन इस बार मुझे लगता है कि इस बार हमें नेताओं के आगे हाथ नहीं जोड़ने पड़ेंगे क्योंकि उन्हें अपने काम के बदले अच्छी पगार मिलती है। वह लोग सरकारी आवासों में रहते हैं और यहां तक कि उनका आयकर भी सरकार ही भरती है।’

एक अन्य मझोले किसान बलजिंदर सिंह का कहना है, ‘अनुबंधित नौकरी में यदि कोई काम नहीं करता तो उसे निकाल बाहर किया जाता है। ऐसे ही यदि कोई सरकार काम न करे तो उसे भी बदल दिया जाना चाहिए। यह लोग भी 5-5 साल के लिए अनुबंध पर काम करने ही आते हैं। इन लोगों के साथ भी वही करो जो वह अनुबंधित कर्मचारियों के साथ करते हैं। और एक बार बदली सरकार यदि काम न करे तो अगली बार उसे भी बदल दो।’

लेकिन 23 साल के स्वर्ण सिंह का कहना है, ‘अनुबंधित कर्मचारी को तो उसी दिन ही निकाल बाहर किया जाता है लेकिन हमें तो 5 साल तक इनकी करनियां भुगतनी पड़ती हैं। इसका भी कोई समाधान होना चाहिए। हम मालवा क्षेत्र में आते हैं जहां पंजाब भर के कुल 117 विधानसभा हलकों में से 69 हलके आते हैं। इसलिए मालवा सरकार बनाता भी है और गिराता भी है लेकिन पंजाब का यह इलाका सबसे पिछड़ा हुआ है, वह भी तब पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और कैप्टन अमरिंदर सिंह यहीं से हैं। और यह दोनों इस बार भी चुनाव लड़ रहे हैं।’

इस गांव से कुछ किलोमीटर दूर बसा है गांव नरुआणा, जहां 83 साल की दलीप कौर लकड़ी के सहारे चल रही हैं। उनके चेहरे पर तनाव साफ दिखता है और यही सूरत-ए-हाल उनकी 50 साल की पुत्रवधू गुरमिंदर कौर का भी है। दलीप कौर कहती हैं, ‘कुछ साल पहले मेरे पति की मौत हो गई थी। मेरे चार बेटे थे और उन सबकी भी मौत हो चुकी है। अब मैं अपनी पुत्रवधू और पोते-पोतियों के साथ रहती हूं। मैं चूंकि गांव में रहती हूं, इसलिए मेरी जरूरतें सीमित हैं। राशन-कार्ड पर मुझे आटा-दाल मिल जाता था, लेकिन कांग्रेस सरकार ने वह भी बंद कर दिया। मैं नहीं जानती कि पंजाब के बड़े मसले क्या हैं। सरकार में चाहे जो आए, मैं चाहती हूं कि मेरा राशन-कार्ड बहाल कर दिया जाए।