पंजाब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार में तेजी देखी जा रही है। बता दें कि आगामी 20 फरवरी को पंजाब में वोटिंग होगी। ऐसे में सियासी दल वोटरों को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोक रहे हैं। वहीं इस बीच पंजाब में एक समुदाय ऐसा भी है जो दलित और ईसाई होने की पहचान के बीच फंसा हुआ है। बता दें कि गुरदासपुर में इनकी संख्या अधिक है। यहां चुनावी अभियान के दौरान यहां “हालेलुजाह!”, “बोले सो निहाल” दोनों नारे एक साथ लगते रहे हैं।
इस समुदाय में राज्य की स्थिति: बता दें कि पंजाब में महत्वपूर्ण उपस्थिति रखने वाला यह समुदाय इस बार भी मुख्यधारा के राजनीतिक दल से टिकट पाने में विफल रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब की आबादी में 1.26% ईसाई हैं। लेकिन हाल के दिनों में पंजाब विधानसभा में इस समुदाय से कोई विधायक नहीं रहा है।
तीन श्रेणियों में मौजूद यह समुदाय: यहां ईसाई तीन अलग-अलग श्रेणियों में आते हैं। पहले जिनके पूर्वजों ने अंग्रेजों के समय ईसाई धर्म अपनाया था। दूसरे आम तौर पर सबसे गरीब और अनपढ़, जो उनके द्वारा अनुसरण किए जाने वाले डेरों और उनके गुरुओं से अधिक प्रभावित होते हैं। तीसरा, और सबसे बड़ा समूह, वो दलित जो ईसाई धर्म का पालन करते हैं लेकिन आधिकारिक रूप से परिवर्तित नहीं हुए हैं।
ऐसे में दलित और ईसाई की दो पहचानों में फंसे इस समुदाय के लोगों से पंजाब विधानसभा चुनाव में कोई भी उम्मीदवार नहीं देखा गया। बता दें कि इस समुदाय पर किसी एक बड़े नेता या चर्च का प्रभाव भी नहीं है।
बसपा के पूर्व महासचिव और अब आम आदमी पार्टी में शामिल हुए ईसाई नेता रोहित खोखर का कहना है कि समुदाय में लगभग 98 प्रतिशत दलित पृष्ठभूमि के हैं। उन्होंने कहा कि भले ही उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया हो, लेकिन कई लोग आज भी जाति से मुक्त नहीं हैं।
खोखर का मानना है कि मतदान के समय वे जो फैसला लेते हैं वह साधारण होता है। जैसे अगर धार्मिक उत्पीड़न का कोई मुद्दा होता है, तो यह समुदाय ईसाई के रूप में मतदान करेगा। वहीं अगर मुद्दा दलित अधिकारों से जुड़ा होगा तो वे दलित के रूप में वोट कर सकते हैं।
वहीं दो महीने पहले तक गुरदासपुर जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे और अब अकाली दल में शामिल होने वाले रोशन जोसेफ ने कहा कि इस समुदाय की कांग्रेस से दूरी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। जोसेफ ने कहा कि “मुख्यमंत्री के रूप में प्रकाश सिंह बादल ने 1997 में क्रिसमस को राज्य स्तरीय समारोह के रूप में मनाना शुरू किया।”
सीएम चन्नी के चलते कांग्रेस को फायदा मिल सकता है: उन्होंने कहा कि कांग्रेस द्वारा दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री और अब उन्हें सीएम चेहरा घोषित करने के बाद माना जा रहा है कि इस समुदाय में सेंधमारी हो सकती। उनका मानना है कि “यह संभव है कि दलित वोट का एक हिस्सा, जो पहले आप को जाने के लिए तैयार था, अब कांग्रेस को जा सकता है।”
निर्दलीय तैयारी: हालांकि इस समुदाय से कई ईसाई नेता प्रमुख दलों से टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय तौर पर चुनावी मैदान में हैं। इनमें डोमनिक मट्टू का नाम भी हैं जोकि डेरा बाबा नानक से चुनाव लड़ रहे हैं। मट्टू का कहना है कि उन्होंने टिकट के लिए आप और अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस दोनों से संपर्क किया था। लेकिन उन्हें दोनों की तरफ से मना कर दिया गया।
उनका कहना है कि “माझा में पार्टी की खराब हालत के दौरान AAP ने 2019 में गुरदासपुर संसदीय क्षेत्र से ईसाई समुदाय के नेता पीटर मसीह को टिकट दिया था। लेकिन इस चुनाव में अपनी बेहतर स्थिति देखते हुए आप ने किसी को टिकट नहीं दिया है।” बता दें कि राज्य में प्रभावी संख्या में होने के बाद भी इस समुदाय के लोगों ने उपेक्षित होने का आरोप लगाया है।