कलकत्ता हाई कोर्ट ने बुधवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए 2010 से 77 समुदायों को जो ओबीसी के सर्टिफिकेट बांटे गए थे, उन्हें रद्द कर दिया है। बड़ी बात ये है कि जिन 77 समुदायों को ममता सरकार ने ये सर्टिफिकेट बांटे थे, उनमें से ज्यादातर मुस्लिम धर्म से जुड़े हुए थे। इसी वजह से चुनावी मौसम में अब ये एक बड़ा और अहम मुद्दा बन गया है। बीजेपी ने सीधे-सीधे इसे ममता बनर्जी की तुष्टीकरण वाली राजनीति करार दिया है, वही टीएमसी ने इस आदेश को मानने से ही मना कर दिया है।

आसान भाषा में पूरा विवाद समझिए

अब बिल्कुल आसान भाषा में आपको समझा देते हैं कि आखिर ये पूरा विवाद है क्या और इस विवाद का चुनाव पर क्या असर पड़ने वाला है। अब पश्चिम बंगाल में 17 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए रखा गया है। ममता सरकार ने ओबीसी को दो वर्गों में बांट रखा है- OBC A और OBC B। ओबीसी A का मतलब होता है अति पिछड़ा और ओबीसी B का मतलब होता है सिर्फ पिछड़ा। अब यहां पर सारा विवाद इस बात को लेकर है कि ममता सरकार ने पिछले 10 सालों में जिन समुदायों को इस ओबीसी वाली लिस्ट में शामिल किया है, उनमें सबसे ज्यादा तवज्जो मुस्लिम समुदाय को दी गई है। आरोप तो यहां तक लगे हैं कि रोहिंग्या और बांग्लादेश से आए दूसरे लोगों को भी इस लिस्ट में शामिल किया गया है।

मुस्लिमों का फायदा देने वाली बात कितनी सच?

ममता सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि ओबीसी A में कुल 81 समुदायों को आरक्षण देने की बात कही गई है, लेकिन यहां 56 तो मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इसी तरह जो ओबीसी B लिस्ट है, वहां कुल 99 समुदायों को जगह दी गई, लेकिन 41 अकेले मुस्लिम धर्म से जुड़ी थीं। अगर ओबीसी A और ओबीसी B के आंकड़ों का टोटल किया जाए तो पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में 179 समुदायों को इस समय ओबीसी आरक्षण दिया जा रहा है, लेकिन वहां पर अकेले मुस्लिमों के 118 समुदायों को इसका सीधा लाभ हो रहा है।

ममता पर क्या नियम तोड़ने का आरोप लगा?

अब समझने वाली बात ये है कि पश्चिम बंगाल में जब लेफ्ट का शासन था, तब एक अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर राज्य ओबीसी की एक लिस्ट तैयार की गई थी, उस आधार पर आरक्षण देने की बात थी। लेकिन ममता बनर्जी 2011 में एक अलग वादे के साथ सत्ता में आईं और उन्होंने पहली बार सरकार बनते ही बिना किसी अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर अपनी एक अलग सूची जारी कर दी, उस सूची के तहत कई समुदायों को ओबीसी आरक्षण के लिए सही बता दिया गया। इसमें ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से जुड़ी जातियों को शामिल किया गया। अब आरोप ये है कि पश्चिम बंगाल में जो पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 चल रहा है, उससे अलग जाकर टीएमसी सरकार ने अपनी सूची तैयार की जो पूरी तरह गैरकानूनी है। इसी आधार पर एक याचिका दायर हुई और इस तरह के आरक्षण को चुनौती दी गई।

बंगाल के ओबीसी मुस्लिम कितने निर्णायक?

वैसे ममता बनर्जी ने अगर आरक्षण के समय मुस्लिम समुदाय पर ज्यादा फोकस किया भी, उसके अपने कारण हैं। असल में पश्चिम बंगाल में 17 लोकसभा सीटों पर ओबीसी निर्णायक है, वहां भी मुस्लिम समुदाय तो 42 में से 13 सीटों पर हार-जीत तय करता है। यहां भी ओूबीसी की कुल आबादी में 11.95% तो ओबीसी मुस्लिम आते हैं, ऐसे में कोई भी पार्टी इस वोटबैंक को नजरअंदाज नहीं कर सकती है। अगर पूरे देश की बात करें तो मंडल कमिशन ने मुस्लिम समुदाय की कुल 82 जातियों को पिछड़ा माना है, लेकिन सभी को समान रूप से आरक्षण मिल रहा हो, तो ऐसा नहीं है। इसी वजह से सारा विवाद है कि कुछ पार्टियों ने सिर्फ वोटबैंक के लिए इस समुदाय का इस्तेमाल किया है, लेकिन जमीन पर उनकी हालात सुधारने को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए।

हाई कोर्ट के आदेश का असल सार

अब कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी इसी बात को समझते हुए ममता सरकार को जोरदार फटकार लगाई है। कोर्ट ने अपने बुधवार वाले आदेश में कहा है कि मुस्लिम समाज की 77 जातियों को पिछड़ा बता देना उस समाज के साथ भी एक मजाक है। इस कोर्ट को पूरा शक है कि इस समुदाय को सियासी फायदों के लिए एक वस्तु की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर उनका इस्तेमाल सिर्फ चुनावी फायदे के लिए किया जाएगा तो उस स्थिति में वो समाज ही अपने अधिकारों से वंचित रह जाएगा। इस प्रकार का आरक्षण लोकतंत्र और संविधान के लिए भी एक बड़ा मजाक है।

बीजेपी को कैसे फायदा पहुंचने वाला है?

अब इस पूरे आदेश में गौर करने वाला शब्द मुस्लिम है। अगर अदालत की तरफ से सामने से कहा जाए कि किसी सरकार ने सिर्फ वोटबैंक के लिए एक विशेष समुदाय को फायदा देने की कोशिश की है, इसका व्यापक असर चुनाव के दौरान देखने को मिल सकता है। ये नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का जो उत्थान हुआ है, जिस तरह से उसने जमीन पर अपनी पैठ जमाई है, उसमें एक बड़ा योगदान ममता की मुस्लिम पॉलिटिक्स का भी रहा है। बीजेपी ने ऐसा नेरेटिव सेट कर रखा है कि ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टीकरण करती हैं, उनकी तरफ से बांग्लादेश से आने वाले मुसलमानों को खास सुविधाएं दी जाती हैं। अब आंकड़े हो सकता है कि इस बात की पूरी तरह तस्दीक ना करते हों, लेकिन अब जब कोर्ट ने ही सामने से कह दिया कि ममता ने मु्स्लिमों को रिझाने की कोशिश की है, बीजेपी को एक बड़ा सियासी हथियार मिल गया है।

पूरे इंडिया गठबंधन पर क्या असर?

समझने वाली बात ये भी है कि इस चुनाव में अगर इंडिया गठबंधन ने आरोप लगाया है कि मोदी अगर फिर प्रधानमंत्री बने तो वें आरक्षण को खत्म कर देंगे, संविधान में बदलाव करेंगे, उसके काउंटर में बीजेपी कह रही है कि अगर इंडिया वालों की सरकार आई तो धर्म के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा, मुस्लिमों को आरक्षण मिलेगा। अब जब कलकत्ता हाई कोर्ट ने भी उसी दिशा में आदेश सुनाया है तो पीएम मोदी ने भी पूरे इंडिया गठबंधन को निशाने पर लिया है। दो टूक कह दिया है कि तुष्टीकरण की राजनीति करने के लिए सारी हदें पार की जा रही हैं। अब पीएम मोदी के लिए तो ये कोर्ट का ये आदेश किसी संजीवनी से कम नहीं है, अभी तक तो उन पर आरोप लग रहा था कि चुनाव के आते ही वे ‘हिंदू-मुस्लिम’ कर रहे हैं, लेकिन अब तो अदालत से ही ममत को फटकार पड़ी है, यानी कि ये नहीं कहा जा सकता कि राजनीति से प्रेरित होकर कोई हमला किया जा रहा हो।

मोदी को कैसे मिली संजीवनी?

बड़ी बात ये है कि पीएम मोदी ने काफी चालाकी से इस मुद्दे को सिर्फ पश्चिम बंगाल तक सीमित नहीं रखा है। उन्होंने तो पूरे इंडिया गठबंधन को अपने लेपेटे में लिया है, ये बताने के लिए काफी है कि चुनाव में अब आखिर के दो चरणों में इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर भुनाया जाएगा। बीजेपी वैसे भी शुरुआत से ही इस पिच पर खेल रही है कि कांग्रेस का घोषणा पत्र मुस्लिम लीग जैसा दिखाई पड़ता है। कांग्रेस लोगों की संपत्ति को ज्यादा बच्चे वालों को बांटना चाहती है। अब उस नेरेटिव में इस ओबीसी सर्टिफिकिटेट वाले मुद्दे को भी जोड़ दिया जाएगा। आसान शब्दों में बीजेपी और पीएम मोदी को चुनाव के ऐन वक्त पर ध्रुवीकरण करने का एक और मौका मिल गया है। अगर ये संदेश सेट हो जाए कि ‘आपका हक किसी और को दिया जा रहा है’, उस स्थिति में ध्रुवीकरण भी होता है और किसी एक पार्टी किसी एक विशेष समुदाय का एकमुश्त वोट भी मिल सकता है।

ममता बनर्जी के लिए क्यों बड़ा झटका?

वही अगर इसे ममता बनर्जी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है तो इसका भी कारण है। मुस्लिम वोट बंगाल में टीएमसी को बड़ी तादाद में मिलता है। उस समर्थन का एक बड़ा कारण ये है कि ममता बनर्जी ने समय-समय पर इस समुदाय को अपनी योजनाओं से खुश किया है, इसी कड़ी में ओबीसी सर्टिफिकेट देना भी शामिल था। लेकिन अब उसी समुदाय को बड़ा नुकसान हुआ है, जो लिस्ट ममता सरकार ने ओबीसी सर्टिफिकेट की बनाई थी, उसे ही गलत मान लिया गया है, ऐसे में फिर से पूरी प्रक्रिया की जाएगी। उस वजह से कई मुस्लिम समुदाय के कई लोग आरक्षण का लाभ लेने से चूक जाएंगे और फिर वो नाराजगी आखिर में सीएम ममता के लिए ही भारी पड़ेगी।

बंगाल की किन सीटों पर असर?

अगर इस विवाद के शॉर्ट टम इफेक्ट की बात करें तो पश्चिम बंगाल में अभी छठे और सातवें चरण की वोटिंग बची है, कुल 17 सीटों पर वोटिंग होनी है। इनमें तामलुक, कांठी, घातल, झारग्राम, मेदिनीपुर, पुरुलिया, बांकुरा, बिष्णुपुर, दमदम, बारासात, बशीरहाट, जयानगर, मथुरापुर, डायमंड हार्बर, जाधवपुर, काेलकाता दक्षिण, कोलकात उत्तर सीट शामिल है।

अब इन 17 सीटों में से पिछली बार टीएमसी ने 12 अपने नाम की थी, बीजेपी को सिर्फ 5 मिल पाई थीं। बड़ी बात ये भी है कि इन सीटों पर मुस्लिम आबादी ज्यादा है, ऐसे में अब इस एक आदेश की वजह से जमीन पर कुछ समीकरण बदल सकते हैं, ये भी हो सकता है कि टीएमसी से कुछ सीटें अतिरिक्त बीजेपी छीन ले।