दूसरी बार सत्ता में वापसी की कोशिश में जुटी प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी सरकार को एक सर्वे से झटका झटका लग सकता है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2011-12 और 2017-18 के बीच ग्रामीण भारत में करीब 3.2 करोड़ कैजुअल मजदूरों ने अपनी नौकरी खो दी, जो पिछले सर्वेक्षण में 29.2 प्रतिशत थी। नौकरी गंवाने में लोगों में लगभग तीन करोड़ खेती करने वाले थे। NSSO द्वारा जारी पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) 2017-18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 के बाद से खेत में काम करने वाले लोगों की संख्या में 40 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है, जिसे सरकार ने जारी करने से मना कर दिया। कैजुअल लेबर से मतलब ऐसे लोगों से है जिन्हें अस्थाई रूप से काम रखा जाता है।

बता दें कि कृषि क्षेत्र में कैजुअल लेबर से आय में ग्रामीण परिवारों का बड़ा हिस्सा है, जिसमें साल 2011-12 के बाद से 10 फीसदी की कमी आई हुई। NSSO के डेटा के मुताबिक ग्रामीण कैजुअल मजदूर खंड (खेती गैर खेती) में 7.3 फीसदी पुरुष और 3.3 फीसदी महिला रोजगार में कमी आई। यह कमी 2011-12 के बाद से आई है। इन आंकड़ों के हिसाब से कुल 3.2 करोड़ रोजगार का नुकसान हुआ है। हालांकि एनएसएसओ की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग द्वारा अनुमोदित है, मगर अभी तक सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है। एनएससी के दो सदस्यों, जिसमें इसके कार्यवाहक अध्यक्ष पीएन मोहनन भी शामिल थे, ने रिपोर्ट को वापस लेने का विरोध करते हुए जनवरी के अंत में इस्तीफा दे दिया था।

गौरतलब है कि पीएलएफएस 2017-18 की रिपोर्ट में स्व-नियोजित कृषि श्रम में चार फीसदी की बढ़ोतरी की भी पहचान की गई थी। चूंकि यह संभावना नहीं है कि कैजुअल मजदूर रातोंरात लैंडहोल्डर बन गए, इसलिए इसे आंशिक रूप से कृषि में ठहराव द्वारा समझाया जा सकता है, जिससे भूस्वामी की हायरिंग क्षमता कम हो सकती है।