प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के लिए एक नारा दिया है- अबकी बार 400 पार। बीजेपी को लेकर कह दिया है- अबकी बार 370 पार। अब पहली नजर में ये लक्ष्य ही काफी महत्वकांक्षी लग सकता है, लेकिन अगर जमीनी हालात के लिहाज से देखें तो बीजेपी को इसका नुकसान भी हो सकता है। पहले चरण की वोटिंग संपन्न हो चुकी है, 102 सीटों पर मतदान हुआ है।
अब लोकतंत्र के सबसे बड़ पर्व की धीमी शुरुआत देखने को मिली है। पहले चरण में सिर्फ 63 फीसदी के करीब मतदान हुआ है। यूपी में इस बार सात फीसदी कम वोट पड़े हैं, बिहार और मध्य प्रदेश में भी 6 फीसदी कम वोटिंग हुई है, इस बार पश्चिम बंगाल में भी 4 प्रतिशत वोट कम पड़ते देखे गए हैं। अब इस कम वोटिंग का किसे फायदा, किसे नुकसान, ये अलग बहस है। लेकिन इस पूरे विषय का एक मनोवैज्ञानिक एंगल भी है। ये एंगल ही बीजेपी की नींद उड़ाने के लिए काफी है।
इस समय मीडिया के सामने जरूर दम भरा जा रहा है कि पहले चरण के बाद से ही एनडीए के पास जबरदस्त लीड है। दूर-दूर तक कोई विपक्ष नहीं है। लेकिन अब जब वोटिंग उम्मीद से काफी कम हुई है, एक सवाल सभी के मन में चल रहा है- ये कम वोटिंग किसे नुकसान पहुंचाने वाली है? बिना आंकड़ों में जाए भी ये कहा जा सकता है कि एक्स्ट्रीम वोटिंग के समय परिवर्तन का संकेत साफ देखने को मिलता है। एक्स्ट्रीम वोटिंग का मतलब होता है जब मतदान या तो काफी ज्यादा हो जाए या फिर जरूरत से काफी कम रहे।
अब इस बार उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर 10 फीसदी तक मतदान कम हुआ है, ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या इसे एक्स्ट्रीम वोटिंग की श्रेणी में रखा जाए। अगर ऐसा हो जाता है तो ये बीजेपी के लिए गुड न्यूज नहीं है। इस बात को कहने का कारण भी ये है कि जब मोदी लहर प्रचंड रूप से चलती है तब जनता में भी वोटिंग का एक अलग उत्साह दिखाई देता है। वो उत्साह ही वोटिंग नंबर में भी झलकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान यूपीए सरकार के खिलाफ गुस्सा था, उस वजह से तब 66.40% मतदान हुआ था, वो आजाद भारत के बाद हुई सबसे ज्यादा वोटिंग थी। सभी ने अनुमान लगा लिया था कि वोट इस बार परिवर्तन का पड़ा है।
इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में 67.40 फीसदी मतदान हुआ था, यानी कि फिर रिकॉर्ड वोटिंग। उस चुनाव से ठीक पहले बालाकोट में भारतीय वायुसेना ने एयरस्ट्राइक की थी, वो मुद्दा हर किसी के दिमाग में था, बीजेपी ने भी राष्ट्रवाद की पिच पर जबरदस्त खेला और एनडीए 352 सीटें जीत लीं। अब इस बार अभी तक पहले चरण में 63 फीसदी मतदान हुआ है, यानी कि पिछली बार की तुलना में कम वोटिंग। जानकार मानते हैं कि इस बार देश में कोई ऐसी बड़ी घटना नहीं हुई है जिसके दम पर जनता का ध्यान उस ओर आकर्षित किया जा सके।
अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर जरूर बना दिया गया है, लेकिन वो कार्यक्रम भी साल के शुरुआत में ही संपन्न हो गया और अब हर बीतते दिन के साथ उस मुद्दे की चमक कुछ फीकी होती दिख रही है। ऐसे में जनता क्या सोचकर, किस आधार पर वोट कर रही है, ये बड़ा सवाल है। अब यही पर सवाल ये आता है कि क्या 400 प्लास का नारा देना बीजेपी को भारी पड़ गया है?
कुछ जानकारों का मानना है कि जब कोई पार्टी जरूरत से ज्यादा बड़ा लक्ष्य तय कर देती है, वातावरण इतना ज्यादा सकरात्मक कर देती है, तब कई बार उस पार्टी का वोटर भी आराम वाली मुद्रा में आ जाता है, वो आश्वस्त हो जाता है कि जीत तो हमारी होने ही वाली है। वो आश्वासन ही उसे बूथ तक जाने नहीं देता और वो लापरवाही ही सत्ता में परिवर्तन का आधार बन जाती है। देश ये ट्रेंड 2004 के लोकसभा चुनाव में काफी करीब से देख चुका है। अटल बिहारी वाजपेयी के काम की तारीफ हर जगह थी, बीजेपी का शाइनिंग इंडिया नेरेटिव चल रहा था, लेकिन फिर भी यूपीए की जीत और एनडीए की विदाई देखने को मिल गई।
इस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर रैली में 400 पार का नारा दे रहे हैं। उनकी तरफ से यहां तक कहा जा रहा है कि मैंने तीसरे कार्यकाल के लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है, पहले 100 दिनों में क्या काम होने वाला है, उसका रोडमैप तैयार हो चुका है। अब विश्वास अच्छी बात है, लेकिन कहीं पीएम मोदी का अंदाज उन्हें अति विश्वास की ओर तो नहीं ढकेल रहा? कहीं उनके 400 पार वाले नारे ने बीजेपी के वोटर्स को ही बूथ से दूर करने का काम तो नहीं कर दिया? कहीं हर कोई यही तो नहीं सोचने लगा कि ‘आना तो मोदी को ही है तो वोट करके क्या फायदा’?
विपक्ष तो इस समय नेरेटिव भी ये सेट करने में लगा है कि पीएम मोदी को जनता का वोट नहीं चाहिए, वो तो ऐसे ही जीत जाएंगे, वे ऐसे ही 400 पार चले जाएंगे। अब विपक्ष का ये आरोप लगाना पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता। जानकार मानते हैं कि विश्वास होने में और घमंड रखने में बारीक अंतर होता है। जिस तरह से लगातार पीएम द्वारा ‘मोदी की गारंटी’ वाला कैंपेन चलाया जा रहा है, एक वर्ग जरूर मानता है कि राजनीति जरूरत से ज्यादा व्यक्ति केंद्रित हो चुकी है। वो धारणा बनना ही मोदी के खिलाफ माहौल बनने की एक शुरुआत है।
अरविंद केजरीवाल तो एक रैली में कह चुके हैं कि मोदी को आपका वोट नहीं चाहिए, वो तो 400 प्लस लाने की बात कर रहे हैं, मुझे आपका वोट चाहिए, मुझे आपके वोट की कद्र है। अगर पूरा विपक्ष ये नेरेटिव सेट करने में सफल हो जाता है कि बीजेपी को जनता के वोट की अहमियत नहीं, आने वाले चरणों में नुकसान भी हो सकता है। अभी तक कम मत प्रतिशत भी सरकार के लिए चिंता का एक बड़ा सबब बना हुआ है।
