देश की जैसी राजनीति है, यहां पर हर मुद्दे के साथ जाति और धर्म का तड़का देखने को मिल जाता है। विकास की बातें भी होती हैं, लेकिन वहां भी जातियों का सहारा दिख जाता है। अब 2024 के रण में मटन, मछली और मुगल का जिक्र हो गया है। मटन का विवाद राहुल गांधी के साथ जुड़ा है, मछली का विवाद तेजस्वी के साथ जोड़ा गया है और मुगल अटैक का क्रेडिट पीएम मोदी को जाता है। अब चुनाव के मौसम में अचानक से लोगों का खाना कैसे इतना बड़ा मुद्दा बन गया, ये समझना जरूरी है।
तेजस्वी का मछली विवाद
हाल ही में पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था। उस वीडियो में तेजस्वी यादव में मछली खा रहे थे, उनके साथ वीआईपी नेता मुकेश सहनी भी बैठे रहे। दोनों ने हेलीकॉप्टर में रहकर ही मछली का स्वाद चखा और उसका एक वीडियो भी बना डाला। अब वो वीडियो 8 अप्रैल को बनाया गया था, लेकिन उसको पोस्ट अगले दिन 9 अप्रैल को किया गया। अब विवाद इस बात को लेकर छिड़ा कि 9 अप्रैल से ही नवरात्रि की शुरुआत हुई थी, ऐसे में तेजस्वी ने उसी दिन आखिर मांसाहारी खाने का वीडियो क्यों शेयर किया। बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाकर आरजेडी और पूरे इंडिया गठबंधन को सनातन विरोधी बताने का काम किया।
राहुल का मटन विवाद
बाद में जब विवाद बढ़ गया, तेजस्वी ने सामने से आकर कह दिया कि मैं तो बीजेपी वालों का IQ टेस्ट ले रहा था, ये वीडियो नवरात्रि का है ही नहीं, ये तो एक दिन पुराना है। अब बात दूसरे वीडियो की करते हैं जो कुछ महीने पुराना है। उस वीडियो में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव से चंपारन मटन बनाना सीख रहे हैं। उस मटन बनाने का वीडियो भी कांग्रेस ने शेयर किया था, हैरानी की बात ये है कि तब सावन का महीना चल रहा था। यानी कि इस बार का वीडियो नवरात्रि के समय, तब का वीडियो सावन के समय। अब इन वीडियो को आधार बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरे इंडिया गठबंधन को अपने निशाने पर ले रहे हैं।
पीएम मोदी का मुगल अटैक
पीएम मोदी ने जम्मू के उधमपुर से एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि इन लोगों को भावनाओं के साथ खेलने में मजा आता है। कोर्ट जिसको सजा दे चुका है, जो जमानत पर चल रहा है, ऐसे आरोपी के घर पर सवान के महीने में मटन बनाने की मौज ली जा रही है। वीडियो बनाकर पूरे देश को चिढ़ाने का काम हो रहा है। मैं साफ कर दूं कि कानून किसी को खाने से नहीं रोक रहा, मोदी भी नहीं रोक सकता, जिसको नॉनवेज खाना है वो खा ले। अब अपने बयान में आगे पीएम मोदी ने मुगलों का जिक्र करते हुए बोल दिया कि मुगलों को सिर्फ राजाओं को हराकर मजा नहीं आता था, जब तक वो मंदिर ना तोड़ लें, उनकी इच्छा पूरी नहीं होती थी। अब सावन के महीने में ऐसा वीडियो बनाकर मुगलों की मानसिकता नहीं दिखाई जा रही?
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कौन क्या खाए, ये भी पूछने की जरूरत?
अब इस बयान के पीछे की राजनीति को समझेंगे, लेकिन सबसे एक सवाल का जवाब जानना जरूरी है- क्या देश में किसी को कुछ भी खाने से रोका जा सकता है? इसका सीधा जवाब है नहीं। संविधान का 21वां अनुच्छेद लोगों को जीवन का अधिकार तो देता ही है, इसके साथ-साथ खाने-पीने की स्वतंत्रता भी रहती है। यानी कि अगर तेजस्वी यादव ने नवरात्रि के समय में मछली खाई भी है, आप उन्हें ऐसा करने से रोक नहीं सकते हैं, अगर सावन के महीने में मटन का सेवन हुआ है, आप इसे गलत नहीं ठहरा सकते हैं। समझने वाली बात ये भी है कि किसी के खाने को एक विशेष धर्म से जोड़कर देखना कहां तक जायज है?
नॉनवेज खाने वालों का आंकड़ा
अगर बात सिर्फ तथ्यों पर ही की जाए तो देश में वेज से ज्यादा नॉन वेज खाने वालों की संख्या है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-21) ने इस साल एक डेटा जारी किया है। उस डेटा में बताया गया है कि देश के 57.3 प्रतिशत पुरुष और 45.1 प्रतिशत महिलाएं हफ्ते में एक बार चिकन, मछली खाते हैं। यहां भी अगर धर्म के लिहाज से बात करें तो ईसाई सबसे ज्यादा मांसाहारी भोजन का सेवन करते हैं, दूसरे नंबर पर मुस्लिम आते हैं और तीसरे पायदान पर हिंदू खड़े हैं। वहीं अगर राज्य दर राज्य की बात करें तो सबसे ज्यादा मांसाहारी पूर्वी, दक्षिण और पश्चिमी भारत में है। अकेले गोवा, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में हफ्ते में एक बार जरूर पुरुष मछली का सेवन कर रहे हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और ओडिशा में भी 50 फीसदी से ज्यादा पुरुष सात दिनों में एक बार नॉनवेज खाते हैं।
खाने की जाति नहीं, राजनीति की है
अब ये आंकड़े इसलिए बताना जरूरी था क्योंकि जब खाने की चीज को किसी एक धर्म से जोड़ने की कोशिश होती है तो सच कही दब जाता है। लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि धर्म कोई भी हो, जाति कोई भी हो, नॉन वेज खाने वालों की बड़ी संख्या है और उन्हें गलत नहीं कहा जा सकता। यानी कि खाना किसी धर्म से नहीं जुड़ा है, तो फिर पीएम नरेंद्र मोदी ने आखिर क्यों जम्मू में मछली वीडियो का जिक्र करते हुए मुगलों की बात की? इसका सीधा जवाब है- विशुद्ध राजनीति।
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बीजेपी को मटन-मछली से क्या हासिल हुआ?
ये नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी इस समय 2024 के रण में हिंदुत्व की पिच पर भी आगे बढ़ रही है। अब इस दांव में बीजेपी तभी सफल होती है जब उस वर्ग का वोटर एकमुश्त होकर पार्टी को वोट करे। अब ये ध्रुवीकरण दो ही तरह से होता है, या तो हिंदू धर्म से जुड़ा कोई बड़ा विकास कार्य हो जाए या फिर दूसरे धर्म को लेकर कुछ ऐसा कह दिया जाए कि हिंदू खुद और बड़ी संख्या में एक पार्टी के प्रति अपना समर्थन दिखा दें। अब इस समय जो मटन-मछली को लेकर हो रहा है, जिस तरह से इसे सीधे मुगलों के रवैये से जोड़ दिया गया है, साफ संदेश दिया जा रहा है कि इंडिया गठबंधन सनातन विरोधी है। बीजेपी इसी नेरेटिव पर आगे बढ़कर हिंदुओं को और बड़ी संख्या में अपने पाले में करना चाहती है।
मछली खाकर तेजस्वी ने क्या संदेश दिया?
अब तेजस्वी की वीडियो की बात करें, तो वहां भी किसी को चिढ़ाने से ज्यादा एक राजनीतिक उदेश्य ज्यादा दिखाई देता है। असल में जिस मछली वाली वीडियो की इतनी चर्चा हो रही है, उसमें तेजस्वी के साथ मुकेश सहनी भी दिखाई दे रहे हैं। बड़ी बात ये है कि वे खुद ही तेजस्वी के लिए मछली लाए थे। अब मुकेश आते हैं मल्लाह जाति, बिहार में तो उन्हें सन ऑफ मल्लाह भी कहा जाता है। ये मल्लाह जाति है ये उत्तर बिहार में ज्यादा तादाद में है, इनकी संख्या 7 से 10 फीसदी के करीब है, नदी के पास वाले इलाकों में तो सहनी के चेहरे के सहारे हार जीत तय हो जाती है। अब मल्लाह समुदाय के ज्यादातर लोग मछली पकड़ने का काम करते हैं, ऐसे में तेजस्वी के उस वीडियो को भी एक कवायद के रूप में देखा गया जहां पर उस वोटर को अपने साथ जोड़ने की कोशिश दिखी।
मटन बनाकर राहुल ने क्या संदेश दिया?
वहीं यहां पर अगर बीजेपी की बात भी मान ली जाए कि नवरात्रि के समय तेजस्वी इस वीडियो को शेयर किया, उसके मायने भी अलग हैं। ये बात सच है कि अगर बीजेपी को हिंदू वोट चाहिए तो इंडिया गठबंधन को एकमुश्त अंदाज में मुसलमानों का वोट भी चाहिए। अयोध्या के राम मंदिर कार्यक्रम में ना जाने का कारण सिर्फ ये नहीं था कि वो मोदी का प्रोग्राम है, एक कारण मुस्लिमों का वोट भी रहा था। उस प्रोग्राम से दूरी बनाकर आश्वस्त किया गया कि मुस्लिमों की राजनीति करने वाले भी मौजूद हैं।