मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण 11 महीने पहले अपना घर गंवाने के बाद एक राहत शिविर में रह रही नोबी का कहना है कि मैं उस जगह के प्रतिनिधि को चुनने के लिए वोट क्यों दूं, जो जगह अब मेरी नहीं है… चुनाव का हमारे लिए कोई मतलब नहीं है। नोबी (42) ऐसा सोचने वाली एकमात्र व्यक्ति नहीं हैं। पूर्वोत्तर राज्य में जातीय समूहों के बीच शत्रुता और झड़पों के कारण अपने घर लौट नहीं पा रहे कई लोगों की यही धारणा है कि मतदान के अधिकार से पहले जीने का अधिकार है और मतदान से अधिक शांति मायने रखती है।

मणिपुर में मतदान फीसद पारंपरिक रूप से बहुत अधिक रहता है। पिछली बार 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान राज्य में 82 फीसद से अधिक मतदान हुआ था, लेकिन इस बार जातीय हिंसा का असर चुनावों पर पड़ रहा है तथा कई नागरिक समाज समूह और प्रभावित लोग मौजूदा परिस्थितियों में चुनाव कराने की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं।

नोबी ने कहा कि सरकार सम्मान के साथ जीने के मेरे अधिकार को सुनिश्चित नहीं कर पाई है और अब वे वोट देने के मेरे अधिकार को सुनिश्चित कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि मेरा घर मेरी आंखों के सामने जला दिया गया। मुझे और मेरे परिवार को वहां से रातों-रात जाना पड़ा। हमें यह भी नहीं पता कि वहां क्या बचा है। नोबी ने कहा कि मैं उस जगह के प्रतिनिधि को वोट क्यों दूं जो अब मेरी नहीं है ? यह सब नौटंकी है… चुनाव हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता।

मणिपुर में दो लोकसभा सीट के लिए चुनाव 19 और 26 अप्रैल को दो चरण में होंगे। आंतरिक मणिपुर और बाहरी मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होगा, जबकि बाहरी मणिपुर के शेष क्षेत्रों में 26 अप्रैल को दूसरे चरण में मतदान होगा। अधिकारियों ने बताया कि अशांति के बाद पचास हजार से अधिक लोग शिविरों में रह रहे हैं।

राहत शिविर में रह रही दीमा (18) ने बताया कि उसने संघर्ष के साये में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। उसने कहा कि उसे नहीं पता कि वह आगे क्या करेगी। ऐसी स्थिति में मैं आगे पढ़ाई करने की योजना कैसे बना सकती हूं ? मैं ऐसे समय में अपना पहला वोट क्यों बर्बाद करूं, जब मुझे लगता है कि चुनाव नहीं कराए जाने चाहिए… मैं वोट नहीं दूंगी।

निर्वाचन आयोग ने घोषणा की है कि विस्थापित आबादी को राहत शिविरों से वोट डालने का अवसर मिलेगा। केएच खंबा (45) अपने राहत शिविर से 120 किलोमीटर दूर भारतीय-म्यांमा सीमा के पास मोरेह शहर के कुकी-बहुल क्षेत्र में अपना परिवहन व्यवसाय करते थे। उन्होंने कहा कि चुनाव कराने से पहले मौजूदा स्थिति का कुछ समाधान निकाला जाना चाहिए था। यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपना वोट डालेंगे, खंबा ने कहा कि हम इस बारे में अभी आपस में सलाह कर रहे हैं लेकिन एक बात तय है कि हम राज्य में चुनाव के समय को लेकर खुश नहीं हैं।