पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में इस बार सत्ताधारी भाजपा गठबंधन के सामने सत्ता में टिके रहने की चुनौती है। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को हटाने की मांग यहां बड़ा चुनावी मुद्दा है। इस मुद्दे के कारण भाजपा को स्थानीय दलों का साथ नहीं मिल पाया है। वह चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं कर पाई है।
दरअसल, कुछ अरसा पहले नगालैंड में सेना की टुकड़ी के द्वारा 14 स्थानीय लोगों को मार दिए जाने के बाद से ही अफस्पा का मुद्दा मणिपुर ही नहीं, पूरे पूर्वोत्तर में गरमाया हुआ है। इस मुद्दे पर भाजपा बैकफुट पर है। मणिपुर में शिक्षा और बेरोजगारी भी प्रमुख मुद्दों में से एक है। इन हालात में कांग्रेस के नेता उम्मीद कर रहे हैं कि भाजपा सरकार के खिलाफ नाराजगी को भुना लेंगे। लेकिन इस विपक्षी दल में नेताओं का अंतर्कलह सड़क पर आ गया है। कांग्रेस ने 40 सीटों के लिए टिकट का एलान किया है।
इसके बाद उम्मीदवारों को लेकर कई जगह विरोध-प्रदर्शन में पार्टी कार्यकर्ता सड़क पर उतर रहे हैं। नाराजगी थामने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओकरम इबोबी सिंह बैठकें कर रहे हैं। वे 15 साल तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस बार भी मैदान में हैं। भाजपा, कांग्रेस, मणिपुर नेशनल पीपुल्स पार्टी, नगा पीपुल्स फ्रंट, लोक जनशक्ति पार्टी, और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख राजनीतिक दल मैदान में हैं।
इस प्रदेश की कुल 60 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में चुनाव कराए जाएंगे। पहला चरण 27 फरवरी और दूसरा चरण तीन मार्च को होगा। यह राज्य 2017 के चुनाव में बड़े राजनीतिक बदलाव का साक्षी बना, जब विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने वाली कांग्रेस सत्ता हासिल नहीं कर पाई। तब भाजपा ने प्रदेश में नगालैंड पीपुल्स पार्टी, नगा डेमोक्रेटिक फ्रंट और कई निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल कर एन बिरेन सिंह के नेतृत्व में सरकार बना ली थी। उस वक्त सरकार बनाने में असम के मौजूदा मुख्यमंत्री और ‘नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस’ (नेडा, जिसे राजग का पूर्वोत्तर संस्करण माना जाता है) के संयोजक हिमंता बिस्व सरमा ने अहम भूमिका निभाई थी।
वर्ष 2017 में नेडा के 36 विधायक थे, जिनमें 24 भाजपा के, चार-चार एनपीपी-एनडीएफ के, एक लोजपा और तीन निर्दलीय। जून 2020 में कई मंत्रियों समेत नौ विधायकों ने समर्थन वापसी का एलान किया था, जिससे बिरेन सिंह सरकार के गिरने का खतरा हो गया था। केंद्र की मध्यस्थता के बाद एनपीपी के चार विधायक लौटे थे। इस बार भाजपा पर वे सहयोगी तो दबाव बना ही रहे हैं, प्रतिष्ठान विरोधी लहर भी है। बिरेन सिंह 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। इस बार भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री चेहरा घोषित नहीं किया है, लेकिन अहम जिम्मेदारियां उनके पास हैं। उन्हें प्रदेश भाजपा की प्रमुख ए शारदा देवी से चुनौती मिल रही है। शारदा देवी ने मुख्यमंत्री का चेहरा बनने का दावा पेश किया है।