भारत में लोकसभा या विधानसभा चुनावों में जहां दागी उम्मीदवारों के अलावा बाहुबल और धनबल का इस्तेमाल अब आम है वहीं मणिपुर ने इस मामले में एक मिसाल पेश की है। फिलहाल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो चुके या हो रहे हैं उनमें यह राज्य बागी, दागी, धनबल और बाहुबल के मामले में बाकी चार सूबों से अलग नजर आता है। यानी मणिपुर की चुनावी कमीज दूसरे राज्यों के मुकाबले सफेद है। राज्य की 60 सीटों के लिए उतरे 265 उम्मीदवारों से महज चार के खिलाफ ही आपराधिक मामले दर्ज हैं। चुनावों पर निगाह रखने वाल निजी संगठन एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) के विश्लेषण और उम्मीदवारों की ओर से दायर हलफनामे के आधार पर सामने आने वाले आंकड़े इस उग्रवादग्रस्त सूबे को दूसरों से अलग करते हैं।
सरकारी आंकड़े भी मणिपुर के पाक-साफ होने की गवाही देते हैं। इसके मुताबिक यहां अपराध का औसत 149.5 प्रति हजार है जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 234.2 का है। आपराधिक औसत के मामले में 156.4 के औसत के साथ पंजाब पहल नंबर पर है जबकि 97.2 के साथ उत्तराखंड पांचवें पर। करोड़पति उम्मीदवारों के मामले में भी मणिपुर बाकी राज्यों के मुकाबल पिछड़ा है। यहां उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 1.14 करोड़ है जबकि गोवा में यह आंकड़ा 4.75 करोड़ का है। पंजाब और उत्तराखंड में यह औसत क्रमश: 3.49 करोड़ और 1.57 करोड़ है। उत्तर प्रदेश के उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 1.56 से 2.81 करोड़ के बीच है। ऐसे उम्मीदवारों की तादाद के मामले में भी मणिपुर पांचों राज्यों में सबसे निचल पायदान पर है। यहां महज 83 करोड़पति उम्मीदवार मैदान में है जबकि पहले नंबर पर रहने वाले उत्तर प्रदेश में इनकी तादाद 1,325 है। पंजाब, गोवा और उत्तराखंड चुनावों में क्रमश: 428, 156 और दो सौ उम्मीदवारों की किस्मत इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में कैद हो चुकी है।राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मणिपुर में भले ही उग्रवाद के अलावा तमाम दिक्कतें हों, कम से कम चुनावी प्रक्रिया को साफ-सुथरा रखने में बाकी राज्य उससे सबक ले ही सकते हैं।
एक मामले में मणिपुर का प्रदर्शन बेहतर नहीं कहा जा सकता है। वह है महिलाओं की उम्मीदवारी। यहां दो चरणों में होने वाल चुनावों में महज 10 महिला उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रही हैं। इसके मुकाबले उत्तर प्रदेश में 344, पंजाब में 81, उत्तराखंड में 56 और 40 सीटों वाले गोवा में 18 महिलाएं मैदान में हैं।
राजनीति में महिलाएं रहीं हैं हाशिए पर
राजनीतिक विश्लेषक के. खगेंद्र सिंह कहते हैं कि मणिपुर की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी शुरू से ही नगण्य रही है। समाज के दूसरे क्षेत्रों में तो महिलाएं पुरुषों के मुकाबल ज्यादा सक्रिय हैं, लेकिन जब राजनीति में भागीदारी की बात आती है तो वे पिछड़ जाती हैं। वे कहते हैं कि पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से कोई भी राजनीतिक पार्टी महिलाओं को राजनीति की मुख्यधारा में शामिल करने को बढ़ावा नहीं देती। अब तक जो महिलाएं चुनाव जीती हैं वे भी राजनीतिक रसूख वाले अपने पतियों की वजह से ही।
