क्या सबसे लंबे समय तक मणिपुर के मुख्यमंत्री रहने वाले ओकरम इबोबी सिंह अबकी अपना राजपाट बचा पाएंगे? राज्य में विधानसभा चुनावों के दूसरे और आखिरी चरण के मतदान के मौके पर यही सबसे अहम सवाल बन कर उभरा है। इस चरण में जिन 22 सीटों पर मतदान होना है उनमें इबोबी की पारंपरिक थाउबल सीट भी है। कई चुनौतियों से जूझते हुए वे लगातार तीन बार यहां कांग्रेस को सत्ता दिला चुके हैं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और इस कारनामे को ध्यान में रखते हुए ही पार्टी आलाकमान ने उनके खिलाफ उठने वाले तमाम आरोपों के बावजूद इबोबी पर भरोसा बनाए रखा। लेकिन इस बार के चुनाव इस कांग्रेसी नेता के लिए अग्निपरीक्षा बन कर आए हैं। उनको भाजपा की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
1984 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना राजनातिक करियर शुरू करने वाले इबोबी ने जल्द ही कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2002 में मुख्यमंत्री बनने के दो साल बाद ही इबोबी को अपने करियर की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था। वह था सुरक्षा बल के जवानों की ओर से मनोरमा देवी नामक एक युवती का सामूहिक बलात्कार और हत्या। उस घटना में भारत ही नहीं पूरी दुनिया में सुर्खियां बटोरी थीं। इसके खिलाफ मणिपुरी महिलाओं ने बिना कपड़ों के असम राइफल्स के मुख्यालय के सामने प्रदर्शन भी किया था। उस तस्वीर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था। इस घटना के बाद इंफल नगरपालिका इलाके से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटाना पड़ा था। बावजूद इसके राज्य के लोगों ने तीन साल बाद होने वाले चुनावों में एक बार फिर इबोबी और कांग्रेस पर ही भरोसा जताया था।
अपने कार्यकाल के दौरान इबोबी को राज्य में लगातार बढ़ते उग्रवाद, सुरक्षा बलों की ज्यादातियों, घाटी और पर्वतीय इलाकों में रहने वाली मैतेयी और नगा जनजातियों के बीच लगातार बढ़ती खाई जैसी कई समस्याओं से जूझना पड़ा है। राज्य में इस दौरान विकास ठप होने के भी आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा मणिपुर को समय-समय पर आर्थिक नाकेबंदी से जूझना पड़ा है। इस समय भी कोई चार महीने से आर्थिक नाकेबंदी लागू है। राज्य में सात नए जिलों के गठन के विरोध में नगा संगठनों ने इस नाकेबंदी की अपील की है।उग्रवादी संगठनों की धमकियों की वजह से बीते कुछ महीनों के दौरान कांग्रेस के कम कम छह वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी का दामन छोड़ कर विरोधी दलों का हाथ थाम लिया है। इसके साथ ही बीते साल असम की सत्ता पर कब्जे के बाद भारतीय जनता पार्टी राज्य में सत्ता की प्रबल दावेदार के तौर पर सामने आई है। राज्य की इस मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में इबोबी एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। उनकी पारंपरिक थाउबल सीट पर मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला उनके खिलाफ मैदान में हैं।
इबोबी पर वंशवाद के आरोप भी लगते रहे हैं। उनकी पत्नी लांधोनी देवी दो बार विधायक रह चुकी हैं। अब उसी सीट से इबोबी के बेटे सूरज कुमार सिंह मैदान में हैं। अब इस चुनाव में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राज्य के लोग अबकी भी इबोबी पर ही भरोसा जताएंगे या फिर अबकी किसी दूसरे दल को सरकार बनाने का मौका देंगे। वैसे, तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद इबोबी के हौसले बुलंद हैं। वे दावा करते हैं कि राज्य में फिर कांग्रेस की ही सरकार बनेगी। राजनीतिक पयर्वेक्षकों का कहना है कि इबोबी एक अनुभवी राजनेता के साथ कुशल रणनीतिकार भी हैं। वोटरों की नब्ज समझने में उनका कोई सानी नहीं है। ऐसे में तमाम प्रतिकूल हालातों और इरोम शर्मिला व भाजपा की चुनौतियों के बावजूद वे एक बार फिर राज्य में कांग्रेस के खेवनहार के तौर पर उभर सकते हैं।

