पूर्वोत्तर के उग्रवादग्रस्त राज्य मणिपुर में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले यहां बीते सौ दिनों से जारी आर्थिक नाकेबंदी के मुद्दे पर सत्तारूढ़ कांग्रेस और अबकी सत्ता की दावेदार भाजपा में घमासान शुरू हो गया है। इस नाकेबंदी को खत्म करने के लिए नगा संगठन, केंद्र व राज्य के बीच दूसरे दौर की तितरफा बैठक के नाकाम रहने के बाद अब इन दोनों दलों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज होता जा रहा है। राज्य में सात नए जिलों के गठन के मुद्दे पर बीते साल पहली नवंबर से जारी इस नाकेबंदी ने राज्य के आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। यहां जरूरी वस्तुओं की भारी किल्लत पैदा हो गई है और रसोई गैस का सिलेंडर दो हजार रुपए तक बिक रहा है। दूसरे दौर की बातचीत के विफल रहने के लिए सत्तारुढ़ कांग्रेस ने भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि वह नाकेबंदी खत्म करने के मुद्दे पर गंभीर नहीं है। लेकिन भाजपा ने इसके लिए कांग्रेस और उसके मुख्यमंत्री इबोबी सिंह को जिम्मेदार ठहराया है।

दूसरी ओर,कांग्रेस ने मौजूदा हालात के लिए उग्रवादी संगठन एनएससीएन के इसाक-मुइवा गुट के प्रति केंद्र को नरम रवैए को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी की दलील है कि नाकेबंदी की अपील करने वाले नगा संगठन यूनाइटेड नगा कौंसिल (यूएनसी) को इस उग्रवादी संगठन का समर्थन हासिल है। मणिपुर कांग्रेस के प्रवक्ता एन बिजोय सिंह कहते हैं कि सात नए जिलों के गठन के बाद आंदोलनकारियों ने पुलिसवालों पर फायरिंग की थी। उनका सवाल है कि जब यूएनसी का एनएससीएन से कोई संबंध नहीं है तो आखिर आंदोलनकारियों के पास हथियार कहां से आए ? ऐसे में केंद्र को यूएनसी पर पाबंदी लगानी चाहिए।

उपमुख्यमंत्री जी गाइखांगम का आरोप है कि एनएससीएन के साथ शांति वार्ता करने वाली केंद्र सरकार इस मामले में इस उग्रवादी संगठन की भूमिका को लेकर चुप है। उनका कहना है कि केंद्र चाहे तो एनएससीए पर दबाव डाल कर मिनटों में नाकेबंदी खत्म करा सकती है। इसकी वजह यह है कि इसकी शह पर ही नगा संगठन ने नाकेबंदी को जारी रखा है।
लेकिन भाजपा ने इन आरोपों का खंडन किया है। प्रदेश कांग्रेस के पूर्व नेता, जो अब भाजपा में शामिल हो गए हैं, एन बीरेन सिंह सवाल करते हैं कि आखिर सरकार किस आधार पर एनएससीएन और यूएनसी में सांठगांठ होने का दावा कर रही है। अगर ऐसा है तो उसे यूएनसी पर पाबंदी लगा देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मौजूदा परिस्थिति के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। वह अपने सियासी फायदे के लिए न तो सात नए जिलों के गठन का फैसला करती और न ही यह नौबत आती।