मणिपुर में सत्ता की चाबी छोटे क्षेत्रीय दलों के पास है। विधानसभा में किसी भी राजनीतिक पार्टी को साफ बहुमत नहीं मिलने की वजह से अब दोनों प्रमुख दावेदारों कांग्रेस और भाजपा की निगाहें छोटे दलों पर टिक गई हैं। हालांकि 31 का जादुई आंकड़ा नहीं होने के बावजूद इन दोनों दलों ने राज्य में अगली सरकार के गठन का दावा किया है। अपने स्तर पर दोनों दलों ने छोटे दलों को पटाने की जोड़-तोड़ शुरू कर दी है। इसबीच, इबोबी सिंह को रविवार को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुन लिया गया। एनपीपी भाजपा की अगुवाई में बीते साल बने नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का हिस्सा है, लेकिन उसने फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं। भाजपा को उम्मीद है कि एनपीपी का समर्थन उसे ही मिलेगा। इसके अलावा लोजपा के एक विधायक का समर्थन मिलना तय है। इस स्थिति में भाजपा 30 तक पहुंच जाएगी। उसके बाद सरकार का भविष्य तृणमूल कांग्रेस के एक और एक निर्दलीय विधायक पर टिक जाएगा। पार्टी को अबकी राज्य में 36.3 फीसद वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस को 35.1 फीसद।

इस बीच, दोनों दलों ने भरोसा जताया है कि राज्य में अगली सरकार उनकी ही बनेगी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष टीएन हाओकिप ने कहा कि इस बार भी राज्य में कांग्रेस ही सरकार बनाएगी। इसके लिए समान विचारधारा वाले धर्मनिरपेक्ष व क्षेत्रीय दलों के साथ बातचीत चल रही है। दूसरी ओर, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के. भवनानंद सिंह ने भी रविवार को यहां पत्रकारों से बातचीत में भाजपा सरकार के गठन का भरोसा जताया। भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में उसके प्रवक्ता बीरेन सिंह और वरिष्ठ नेता विश्वजीत सिंह मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं। ऐसे में भाजपा अगर सरकार के गठन के लिए जरूरी संख्या जुटा ले और दूसरी ओर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने के बाद इबोबी सिंह सरकार बनाने का दावा पेश करें तो गेंद राज्यपाल नजमा हेपतुल्लाह के कोर्ट में चली जाएगी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि कल तक स्थिति काफी हद तक साफ हो जाएगी। कांग्रेस ने अगर एनपीपी का समर्थन जुटा लिया तो फिर राज्य में कांग्रेस सरकार के गठन की राह साफ हो जाएगी। ऐसा नहीं हुआ तो भाजपा भी सरकार बना सकती है। अब पर्यवेक्षकों की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है।