हिंदी पट्टी राज्य मध्य प्रदेश में एक बार फिर मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस का दिखाई दे रहा है। पिछले कई सालों से ये दो पार्टियां ही इस राज्य पर राज कर रही हैं, कहने को कई छोटे दल भी समय के साथ इस राज्य में दस्तक दे चुके हैं, लेकिन ज्यादातर यह चुनाव बाइपोलर ही रहा है ,यानी की मुकाबला हर बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच में ही देखने को मिला है।

1998 से एमपी में नहीं बदला ये ट्रेंड

1998 के बाद से एक समीकरण मध्य प्रदेश के चुनाव में साफ दिखाई देता है। एक बार के लिए कांग्रेस की सीटें कभी कभार बीजेपी की तुलना में ज्यादा रह सकती हैं, लेकिन वोट शेयर के मामले में भाजपा ने हर बार बाजी मारी है। बड़ी बात ये है कि पिछले चुनाव में यानी कि 2018 में भी कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा सीटें जरूर मिली लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी आगे रही।

कितनी सीटें किस पार्टी को?

2018 के मध्य प्रदेश चुनाव की बात करें तो बीजेपी के लिए वो बड़ी चुनौती थी। 15 साल तक लगातार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद शिवराज सिंह चौहान के सामने सत्ता विरोधी लहर थी। उस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच में कांटे का मुकाबला दिखा और सिर्फ कुछ ही सीटों के अंतर से कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हो गई। उस चुनाव में एक तरफ बीजेपी के खाते में 109 सीटें गईं तो वहीं कांग्रेस अपने दम पर 114 सीटें जीत पाई। बड़ी बात ये रही कि सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर पाई थी। ऐसे में सपा और दूसरे निर्दलीय उम्मीदवारों के दम पर ही कांग्रेस 16 महीना के लिए मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो पाई थी।

उस चुनाव में भी एक खास समीकरण ये देखने को मिला कि कांग्रेस ने ज्यादा सीटें जरूर जीती लेकिन वोट शेयर के मामले में बीजेपी आगे रही। पिछले चुनाव में बीजेपी को 41.01% वोट शेयर मिला था, वहीं कांग्रेस के खाते में 40.89% वोट शेयर रहा।

दूसरे दलों पर यहां नहीं भरोसा

बड़ी बात ये भी रही कि 2018 के चुनाव में भी एमपी ने अपने पुराने ट्रेंड को बरकरार रखा और किसी भी छोटे या दूसरे दल को ज्यादा आगे बढ़ने का मौका नहीं मिला। इसी वजह से समाजवादी पार्टी और बसपा जैसी पार्टियों को ज्यादा सीटें नहीं मिली। एक तरफ उस चुनाव में बसपा के खाते में दो सीटें गईं तो वहीं सपा एक सीट जीतने में कामयाब रही।

सिंधिया का खेल और बीजेपी की वापसी

15 साल बाद कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश में अपनी सरकार तो बनाई, लेकिन 16 महीने के अंदर में वो गिर भी गई। असल में कांग्रेस के ही उस समय के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कम से कम 22 विधायकों को साथ लेकर बीजेपी में एंट्री कर ली जिस वजह से कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ गईष यानी की 16 महीने बाद एक बार फिर मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार भी बनी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए।

अब इस बार के चुनाव में दोनों भाजपा और कांग्रेस अलग ही रणनीति पर काम कर रहे हैं। एक तरफ भाजपा की तरफ से किसी को भी मुख्यमंत्री घोषित नहीं किया गया है तो वहीं कांग्रेस कर्नाटक फार्मूले के जरिए फिर सत्ता वापसी की कोशिश कर रही है।