Lok Sabha Election 2019: विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का महापर्व शुरू हो चुका है। भारत में हो रहे इस चुनावी पर्व में करीब 90 करोड़ मतदाता देश की 17वीं लोकसभा के गठन के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। पूरे देश में 11 अप्रैल से लेकर 19 मई तक सात चरणों में यह चुनाव संपन्न होगा और 23 मई को नतीजे घोषित होंगे। इस चुनाव को निष्पक्ष और शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न करवाने के लिए भारी संख्या में सुरक्षाकर्मियों और कर्मचारियों की सहायता ली जा रही है। भारत की भौगौलिक स्थिति ऐसी है कि मतदान केंद्रों तक पहुंचने के लिए कहीं पहाड़ चढ़ने की जरूरत पड़ रही है तो कहीं नदी पार करने की। देश के सबसे मुश्किल बूथ तक पहुंचने के लिए जवान और कर्मचारी नदी पार कर, पहाड़ चढ़ और चार दिन का सफर तय कर चुनावी ड्यूटी पर पहुंच रहे हैं।
असम स्थित लुइट खबालू बूथ तक मतदानकर्मियों को पहुंचने के लए सुबानसिरी नदी पार करना पड़ता है। अंडमान के पिलोपाटिया बूथ तक पहुंचने में पोर्ट ब्लेयर से 24 घंटे का समय लगता है। यहां मात्र 9 वोटर हैं। अरुणाचल प्रदेश के दिबांग वैली में एक बूथ है ‘छेप्पे’, जहां सिर्फ 24 वोटर हैं। ये 24 वोटर भी लोकतंत्र के महापर्व का हिस्सा बन सकें, इसके लिए कर्मचारी 4 दिन 7 घंटे का सफर तय करते हैं।
जम्मू-कश्मीर के कारगिल में समुद्र तल से 3657 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ‘शुन चुमिक गिलसा’ और छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाके में 4 किलोमीटर जंगल में स्थित ‘अबुजमाड़’ बूथ पर भी मतदान करवाने कर्मचारी पहुंचते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में समुद्र तल से 1457 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति ‘बड़ा बंघाल’ बूथ तक पहुंचने के लिए कर्मचारियों को हेलीकॉप्टर से जाना होता है।
चुनाव पूरी तरह शांतिपूर्ण और निष्पक्ष हो, इसके लिए प्रत्येक चरण में 2.5 लाख केंद्रीय जवानों की जरूरत पड़ रही है। इन्हें एक बूथ से दूसरे बूथ तक पहुंचाने के लिए 25 हेलीकॉप्टर, 500 ट्रेन 17,500 गाड़ियों, नाव, घोड़े, ऊंट इत्यादि की मदद ली जा रही है। इस पर करीब 200 करोड़ रुपये का खर्च होने की संभावना है। हालांकि, देश में कई ऐसे बूथ भी हैं, जहां पैदल पहुंचने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।