Manipur Lok Sabha Polls 2024: लोकसभा चुनाव को लेकर देश के सभी राज्यों में चुनाव प्रचार अपने चरम पर है। वहीं एक साल से जातीय हिंसक संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर में हालात कुछ अलग ही है। यहां न किसी तरह की रैली हो रही है और ही जनसभाएं। हालात यहां तक हैं कि शायद ही आपको कहीं पोस्टर-बैनर भी लगा हुआ मिल जाए। सभी मतदाता शांत हैं। यहां के लोग इस जातीय संघर्ष से उभर नहीं पा रहे हैं। ऐसे में ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्टर सुकृता बरुआ ने चुनावी वक्त में मणिपुर के हालात जानने की कोशिश की है। आइए पढ़ते हैं मणिपुर से ग्राउंड रिपोर्ट-
इम्फाल के चिंगमखा क्षेत्र की मीरा पैबीस रात 9 बजे एक छोटी सी “गार्ड-पोस्ट” पर अपनी रात्रिकालीन निगरानी शुरू करती हैं। शनिवार को रात करीब 9.40 बजे आंतरिक मणिपुर लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के लिए काम करने वाली दो महिला कार्यकर्ता 10 मिनट के लिए उनके साथ शामिल हुईं।
उनमें से एक महिला ने कहा कि हम आज रात अलग-अलग जगहों पर जा रहे हैं, ताकि कुछ ऐसे लोगों से मिल सकें, जिनके पड़ोस में अच्छे संबंध हैं, खासकर महिलाओं से, ताकि वे हमारे उम्मीदवार को बेहतर तरीके से जान सकें, और इलाके के अन्य लोगों से भी उम्मीदवार को लेकर बात कर सकें।
मणिपुर की शक्तिशाली मैतेई महिला कार्यकर्ताओं मीरा पैबिस के साथ एक छोटी, शांत बातचीत के बाद वे अपने अगले पड़ाव की ओर बढ़ती हैं।
मणिपुर की असहज हवा में जहां लगातार तनाव के कारण चुनावी प्रक्रिया को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, चुनाव अभियान पूरी तरह से शांत अपने निम्नतर स्तर पर है। आंतरिक मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र (Inner Manipur constituency) में राज्य की दो सीटों में से एक और जो मैतेई-बहुल घाटी क्षेत्र के अधिकांश हिस्से को कवर करती है, वहां छह उम्मीदवार मैदान में हैं।
यहां उम्मीदवारों में प्रमुख चेहरे राज्य के कैबिनेट मंत्री और भाजपा के पूर्व आईपीएस अधिकारी थौनाओजम बसंत सिंह हैं। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अकादमिक और एसोसिएट प्रोफेसर बिमोल अकोइजम है, जो कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में अपनी राजनीतिक शुरुआत कर रहे हैं। वहीं रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) के महेश्वर थौनाओजम और मणिपुर पीपुल्स पार्टी के आर के सोमेंद्र (कैकू) दोनों राजनेता बनने से पहले लोकप्रिय अभिनेता थे। इन सब उम्मीदवारों को लेकर यहां कोई रैलियां और जनसभा नहीं हो रही है। साथ ही उम्मीदवार को लेकर कोई पोस्टर भी नहीं लगा है।
राज्य में लगभग एक साल के हिंसक संघर्ष के बाद घाटी में खुले चुनाव प्रचार के खिलाफ जनता की अस्वीकृति स्पष्ट है। सशस्त्र कट्टरपंथी समूह अरामबाई तेंगगोल द्वारा जारी एक फरमान के माध्यम से इसे ठोस रूप दिया गया। जिसमें चुनाव अभियानों, दावतों, लाउडस्पीकरों का उपयोग करने वाली बैठकों और ध्वज फहराने को लेकर हतोत्साहित किया गया है। उन्होंने एक बयान में घोषणा की, “ये स्थिति को खराब कर सकते हैं और हमारे समुदाय के भीतर और अधिक विभाजन पैदा कर सकते हैं जो स्थिति के लिए हानिकारक हो सकते हैं।”
यही वजह है कि उम्मीदवार मुख्य रूप से कैमरा के माध्यम से मतदाताओं के साथ बैठक कर रहे हैं। जिसमें स्थानीय नेताओं के घरों या निजी कार्यालों में 20-50 लोग शामिल होते हैं। उसके बाद प्रत्याशी वीडियो कैमरा के माध्यम से अपनी बात रखते हैं। कुछ जगहों पर प्रत्याशी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।
भाजपा ने घर-घर जाकर बैठकें करने के लिए पार्टी के बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को तैनात किया है। राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने चल रहे अभियान की तुलना उस तरीके से की जिस तरह से पार्टी पहले अभियान चलाती थी।
भाजपा नेता ने कहा कि आमतौर पर, प्रधा मंत्री, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री सभी हजारों लोगों के साथ बड़ी रैलियां करते हैं। अब, बंद कमरे में बैठकों के साथ-साथ, हम बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा घर-घर जाकर अभियान चला रहे हैं… हमारे यहां कोई राष्ट्रीय नेता नहीं हैं…” उन्होंने कहा, अगर राष्ट्रीय नेता राज्य में प्रचार के लिए आते हैं, तो “इससे लोगों को यह कहने का मौका मिल सकता है कि वे संघर्ष के समाधाना के लिए नहीं, बल्कि वोट के लिए आए हैं।”
इनमें से कुछ उम्मीदवार, विशेष रूप से बिमोल अकोइजाम और महेश्वर चल रहे संघर्ष पर अपनी राय के बारे में बहुत मुखर रहे हैं। मीडिया, विशेष रूप से सोशल मीडिया कई मतदाताओं के लिए अपने उम्मीदवारों के विचारों के बारे में जानने का एकमात्र साधन है।
यहां एक मतदाता पटसोई ने कहा कि आमतौर पर मैंने कभी भी लोकसभा चुनाव की परवाह नहीं की है। विधानसभा चुनाव को लेकर हमेशा से ही ज्यादा दिलचस्पी रहती है, लेकिन इस बार दबी जुबान से ही सही, हर कोई इसकी चर्चा कर रहा है। कोई भी उम्मीदवार हमारे इलाके में नहीं आया है, लेकिन इस संघर्ष के शुरू होने के बाद लोग न केवल स्थानीय मीडिया, बल्कि राष्ट्रीय मीडिया और विशेष रूप से सोशल मीडिया पर भी बहुत बारीकी से नज़र रख रहे हैं। इसलिए कई महीनों से मैं सुन रही हूं कि बिमोल और महेशवे क्या कह रहे हैं। अब मुझे कुछ अंदाज़ा हो गया है कि वे क्या दर्शाते हैं।
यहां ऐसे भी उदाहरण हैं जब बहुत कम प्रचार नहीं किया गया। चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री सचिवालय में बड़ी संख्या में महिलाएं एकत्र हुई हैं। शनिवार दोपहर को द इंडियन एक्सप्रेस ने सचिवालय में प्रवेश करने वाली महिलाओं की एक कतार देखी, जिनमें से एक ग्रुप तो खुली वैन में आ रहा था। मुख्यमंत्री आवास पर हुई इन बैठकों से विवाद खड़ा हो गया है और कांग्रेस ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए मुख्य चुनाव अधिकारी से शिकायत दर्ज कराई है।
राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने आरोपों को खारिज करते हुए दावा किया कि “मुख्यमंत्री केवल मौजूदा स्थिति और सरकार के प्रयासों के बारे में किसी भी संदेह को स्पष्ट कर रहे हैं। साथ ही बाद में उनको जलपान के लिए कह रहे हैं।
पिछले वर्ष के अनुभवों के बाद वोट की अपील करने के जो लोग कोशिश कर रहे हैं। उनमें इबेयिमा युमनाम (57) भी शामिल हैं, जिनकी इंफाल के प्रसिद्ध इमा कीथेल (महिला बाजार) में हथकरघा स्टॉल है। उन्होंने भावुक होते हुए कहा, “वे राहत शिविर में रह रहे लोगो को खाना खिलाते हैं। यह उनका कर्तव्य है, लेकिन मतदाव खत्म होने के बाद हमें कोई याद नहीं रखेगा।’
उन्होंने कहा, उनका निर्णय वोट न देने का है, जो बाजार में विभिन्न यूनियनों के आह्वान के अनुरूप है, जिन्होंने लोगों से चुनाव में भाग न लेने का आग्रह किया है। यूनियनों में से एक की नेता मेमा लैशराम (74) ने कहा, “यह एक भावनात्मक अपील है। जब कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है तो चुनाव कराने पर जोर देना यहां के लोगों की कठिनाइयों को कम कर रहा है। जब लोग ‘डबल इंजन’ जैसी बातें कहते हैं तो यह लोगों का अपमान है। इसी तरह की बातें घाटी में विस्थापित लोगों के राहत शिविरों से भी आई हैं।