First Lok Sabha Election Campaign: देश में लोकसभा चुनाव की हलचल काफी तेज है। सोशल मीडिया से लेकर न्यूज चैनल और अखबारों तक चुनावों की खबरें छाई हुई हैं। राजनीतिक दल पूरे जोश के साथ चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। चुनाव आयोग ने 18वीं लोकसभा चुनावों को 19 अप्रैल से एक जून तक सात चरणों में कराने और 4 जून को वोटों की गिनती का ऐलान किया है। इलेक्शन के समय में चुनाव प्रचार बहुत अहम भूमिका निभाता है। अब सभी के जहन में एक सवाल यह उठता है कि देश में पहली बार चुनाव प्रचार किस तरह से हुआ होगा।
आजाद भारत में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था। इस समय भी खूब जमकर प्रचार हुआ था। उस समय आज की तरह सुविधाएं और संसाधन मौजूद नहीं थे। पार्टियों और उसके उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार करने के लिए कई माध्यम अपनाने पड़ते थे। वे चुनावी जनसभा और नुक्कड़ सभाओं की मदद लेते थे। नुक्कड़ सभाओं के लिए बाजार के आसपास के इलाकों को देखा जाता था। यहां पर लोग आसानी से मिल जाते थे और नेताओं की बात को भी गौर से सुनते थे।
पहले आम चुनाव में भी चुनावी गाड़ियों का हुआ इस्तेमाल
वर्तमान समय के चुनावों में इलेक्शन कमीशन ने खर्च की सीमा पर कुछ हद तक लगाम लगा दी है। उम्मीदवार तय सीमा से ज्यादा पैसे खर्च नहीं कर सकता है। तय सीमा के अंदर ही उम्मीदवार को अपना प्रचार प्रसार करना होता है और चुनावी गाड़ियों के लिए भी कुछ नियम बनाए गए हैं। साथ ही, अब सब यह सवाल आता है कि क्या पहले आम चुनाव के दौरान आज ही की तरह चुनावी गाड़ियों से प्रचार होता था? तो बता दें कि पहले आम चुनाव के दौरान भी प्रचार गाड़ियों का इस्तेमाल हुआ था। उस समय कांग्रेस और जनसंघ ने गाड़ियों से जमकर प्रचार किया था। कांग्रेस का चुनावी चिन्ह दो बैलों का जोड़ा था। कांग्रेस पार्टी और अन्य पार्टी के उम्मीदवार लोगों से वोट देने की अपील करते थे।
पोस्टर, पैम्पलेट और होर्डिंग का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया जाता था क्योंकि उस समय इनकी छपाई में काफी लागत आती थी और यह शहरी इलाकों में ही ज्यादा मौजूद होते थे। साथ ही, प्रचार के लिए पार्टियां और उनके उम्मीदवार भीड़ वालें इलाकों को ही ज्यादा तवज्जों देते थे और लोगों से लोकतंत्र की रक्षा के लिए मतदान करने की अपील करते थे।
कैसे बदला ट्रेंड
धीरे-धीरे प्रचार करने का ट्रेंड बदल गया है। चुनावों के दौरान सड़कों से लेकर गली-मोहल्लों में कार, रिक्शा और ऑटो समेत अन्य गाड़ियों में लाउडस्पीकर लगाकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियां और निर्दलीय उम्मीदवार अपने-अपने चुनावी चिह्न लगे झंडों के साथ प्रचार करते रहे हैं। अब सोशल मीडिया के आ जाने के बाद पारंपरिक तरीकों में कुछ कमी आई है। हर पार्टी के उम्मीदवार और पार्टी अपने-अपने स्तर पर सोशल मीडिया के जरिये धुआंधार प्रचार करते हैं।
राजनीतिक पार्टियां और प्रत्याशी सोशल मीडिया के उन तमाम प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं, जिनकी रीच आम आदमी तक बहुत ही आराम और आसानी से होती है। उसमें लोगों को समझ में आने वाली और कोशिश की जाती है कि उन्हीं की भाषा में प्रचार की सामग्री तैयार की जाए। इसके लिए इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, एक्स, फेसबुक, एमएमएस, वाट्सऐप, विशेष प्रचार के लिए बनाए जाने वाले ऐप, टीवी, पहले से रिकॉर्ड संदेश, एआई के जरिए भी प्रचार, स्नैपचैट, ई-मेल, वेबसाइट, सीरियल समेत न्यूज या अन्य किसी कार्यक्रम के बीच में दिए जाने वाले चुनावी विज्ञापन के अलावा सोशल मीडिया के तमाम माध्यम से चुनावी प्रचार किया जाता है।