प्रदेश की अहम सीट के तौर पर जानी जाती मंडी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दो बुजुर्ग नेता भाजपा की सुगम नजर आ रही राह में रोड़ा बनकर अटक गए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर का खुद का जिला होने के बावजूद भाजपा को यहां खूब मेहनत करनी पड़ रही है। कांग्रेस के ये दोनों नेता है 93 साल के पंडित सुखराम और 85 साल के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इनके कारण भाजपा के पसीने भी छूटे हुए हैं। इनमें से पंडित सुखराम 50 साल से भी अधिक समय से राजनीति में हैं बल्कि 12 से अधिक बार चुनाव लड़ और जीत भी चुके हैं। इस बार अपने पोते आश्रय के लिए सबकुछ दांव पर लगाकर भाजपा के लिए परेशानियां पैदा कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर वीरभद्र जो यहां से कई बार सांसद रह चुके हैं और दो बार उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी सांसद रही हैं, भी मैदान में उतर गए हैं।

चाणक्य ने खेला भावनात्मक कार्ड?
नामांकन रैली में सेरी मंच से पंडित सुखराम ने वीरभद्र सिंह और प्रदेश की जनता से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी। साथ ही साथ अपनी चाणक्य नीति का दांव खेलते हुए भावनात्मक कार्ड उछाल दिया। कुछ ही दूरी पर घर बैठे बेटे अनिल शर्मा जो अभी भी सदर से भाजपा विधायक हैं और जय राम ठाकुर सरकार में मंत्री रह चुके हैं, का हवाला देते हुए कह डाला कि आज मेरा बेटा यहां नहीं है। साथ ही आंसू भी बहा डाले। इसमें लगे हाथों आश्रय शर्मा ने भी दादा का पूरा साथ दिया। अब यह तो समय ही बताएगा कि सुखराम के दिल के अरमां आंसुओं में बह गए या फलीभूत हो गए। लेकिन इतना तो तय है कि उन्होंने वीरभद्र और जनता का दिल जीतने का पूरा प्रयास किया है।

वीरभद्र प्रचार में जुटे, पर आलोचना से नहीं चूक रहे
अब वीरभद्र भी मंडी लोकसभा क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं और कांग्रेस के लिए वोट भी मांग रहे हैं। यह बात अलग है कि उन्होंने अपने दौरे के दौरान चैलचौक में साफ तौर पर कह दिया कि सुखराम ने कांग्रेस और मुझे बहुत धोखा दिया है। उन्हें तो मैं माफ नहीं करूंगा। आश्रय युवा है उनके लिए वोट जरूर मांगूगा।

जय राम के लिए प्रतिष्ठा बनी सीट
मंडी मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर का गृह क्षेत्र है। भाजपा उम्मीदवार रामस्वरूप शर्मा भी उन्हीं की पसंद हैं। ऐसे में जय राम के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की बन गई है। मुख्यमंत्री मंडी से होने के नाते भाजपा के लिए मंडी सीट की राह आसान लग रही थी लेकिन पंडित सुखराम और वीरभद्र की बुजुर्ग जोड़ी ने इसमें रोड़ा अटका दिया है। 2004 में जिस तरह वीरभद्र ने अपनी पत्नी के लिए सुखराम का साथ लिया था, उसी तरह वे सुखराम के पोते के लिए उनका साथ दे रहे हैं। ऐसे में अपनों को जिताने साथ आई इस जोड़ी का मतदाताआें पर कितना असर होगा यह देखने वाली बात होगी। भाजपा जहां मुख्यमंत्री के सहारे टिकी है तो कांग्रेस का सहारा यह बुजुर्ग युगल बन गया है।