Lok Sabha Election Result 2019: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की संसदीय सीट इस बार के चुनावों में काफी चर्चा में रही। इसकी वजह बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा हैं। उनके खिलाफ राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह चुनावी मैदान में हैं। साध्वी को लोग जहां मालेगांव धमाकों की आरोपी के तौर पर जानते रहे हैं, वहीं दिग्विजय सिंह अपने बयानों के लेकर मीडिया में सुर्खियां बटोरते रहे हैं। 15 साल के राजनीतिक संन्यास के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दिग्विजय सिंह ने पहली बार 1977 में मध्य प्रदेश विधान सभा का चुनाव लड़ा था। तब देश में कांग्रेस के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश था। बावजूद इसके दिग्विजय सिंह जीत दर्ज करते हुए विधान सभा पहुंचने में कामयाब रहे थे।
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आम चुनावों में कांग्रेस के इस वरिष्ठ नेता ने भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली भोपाल सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया, लेकिन दिग्विजय सिंह को भाजपा की साध्वी प्रज्ञा के सामने हार का सामना करना पड़ा है। चुनाव में दिग्विजय सिंह को जहां 5,01,279 मिले, वहीं साध्वी प्रज्ञा को 8,65,212 वोट पाकर विजयी रहीं। 1977 में दिग्विजय सिंह ने गुना जिले की राघोगढ़ विधान सभा सीट से जीत दर्ज की थी। यहीं से 1952 में देश के पहले लोकसभा चुनाव में उनके पिता बलभद्र सिंह ने चुनाव में जीत दर्ज की थी। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी टेक डिग्रीधारी दिग्विजय 1977 के बाद 1980 में दोबारा विधायक बने तो अर्जुन सिंह की सरकार में कृषि, सिंचाई, पशुपालन और मत्स्यपालन मंत्री बनाए गए। इसके बाद 1984 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और राजगढ़ संसदीय सीट से चुनकर संसद पहुंचे। 1991 में उन्होंने दोबारा लोकसभा का चुनाव जीता।
1993 में दिग्विजय सिंह को राज्य की कमान सौंपी गई और वो मध्य प्रदेश के 14वें मुख्यमंत्री बनाए गए। इसके बाद दस सालों तक (1993 से 2003) राज्य के मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया लेकिन 2003 के विधान सभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की हार का भी बड़ा रिकॉर्ड बनाया। तब 230 सदस्यों वाली एमपी विधान सभा में कांग्रेस को मात्र 38 सीटें मिली थीं। इस बड़ी हार के बाद दिग्विजय सिंह ने राज्य की राजनीति से खुद को दूर कर लिया और दिल्ली में डेरा जमा लिया। वो कांग्रेस के महासचिव बनाए गए। 2004 से 2018 के दौरान उन्होंने महासचिव के तौर पर ओडिशा, बिहार, यूपी, असम, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और गोवा का कामकाज देखा। उन्होंने कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान चुनावों में भी प्रभारी की भूमिका निभाई।