उत्तर प्रदेश की प्रतापगढ़ सीट सियासी रूप से काफी अहम मानी जाती है। 1858 में अस्तित्व में आई प्रतापगढ़ सीट किसी भी एक पार्टी का गढ़ नहीं मानी गई है। यहां पर समय-समय पर पार्टियां भी बदली हैं और प्रत्याशी भी अलग-अलग चुने गए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो प्रतापगढ़ सीट से भारतीय जनता पार्टी के संगम लाल गुप्ता ने बड़ी जीत दर्ज की थी। इसी तरह 2014 में भी मोदी लहर की वजह से कुंवर हरिवंश सिंह को वहां से जीत मिली थी।
जानकारी के लिए बता दें प्रतापगढ़ से विश्वासगंज, रामपुर खास, प्रतापगढ़, पट्टी और रानीगंज जैसी विधानसभा सिम निकलती हैं। अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने प्रतापगढ़ सीट को काफी आसानी से जीत लिया था। एक लाख के भी बड़े अंतर से सपा और बसपा के संयुक्त उम्मीदवार अशोक त्रिपाठी को हराया गया था। कांग्रेस की राजकुमारी रत्ना सिंह तो तीसरे नंबर पर रह गई थीं। इसी तरह 2014 में बसपा के प्रत्याशी निजामुद्दीन सिद्दीकी को बीजेपी और अपना दल के संयुक्त उम्मीदवार कुंवर हरि वंश सिंह ने भारी मतों से हरा दिया था।
प्रतापगढ़ जिले की जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर यादव समाज, कुर्मी, मौर्य समाज के निर्णायक वोटर रहते हैं। कुर्मी यादव और मुस्लिम मिलकर 36% बनते हैं। 11 फीसदी कुर्मी वोटर, 16 फीसदी ब्राह्मण और 8 फीसदी क्षत्रिय वोटर भी प्रतापगढ़ सीट पर ही हैं।
प्रतापगढ़ सीट पर शुरुआत में कांग्रेस का दबदबा देखने को मिलता था। कुल 10 बार देश की सबसे पुरानी पार्टी ने प्रतापगढ़ में जीत दर्ज की है। वहीं बीजेपी की बात करें तो उसने सबसे पहले 1998 में अपना खाता खोला था जब राम विलास वेदांती ने वो सीट अपने नाम की थी।