लोकसभा चुनाव नजदीक है बिहार की सियासत भी काफी दिलचस्प बनी हुई है। यहां की कई सीटों पर इस बार कांटे का मुकाबला देखने को मिलने वाला है। एक तरफ अगर नीतीश कुमार ने फिर एनडीए से हाथ मिला लिया है तो दूसरी तरफ आरजेडी भी महागठबंधन के साथ कड़ी टक्कर देने का काम कर रही है। इसी कड़ी में बिहार की महाराजगंज सीट भी सियासी रूप से मायने रखती है। राजपूत बहुल ये इलाका कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक का गढ़ बना हुआ है।
महाराजगंज सीट की खासियत ये है कि आजाद भारत में यहां से अब तक 14 से ज्यादा बार राजपूत जाति के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। बात चाहे महेंद्र नारायण सिंह की हो, कृष्णकांत सिंह की हो, रामदेव सिंह की हो, या फिर चंद्रशेखर, इन सभी ने महाराजगंज से ही बड़ी जीत हासिल की है। जानकारी के लिए बता दें 1984 तक कांग्रेस का महाराजगंज पर कब्जा रहता था, लगातार उसकी जीत हो रही थी। लेकिन 1984 के बाद सियासी फिजा बदल गई और कांग्रेस फिर कभी इस सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सकी। 2014 से बीजेपी ने हर बार महाराजगंज सीट से बड़े अंतर से जीत दर्ज की है, पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने यहां से जीत दर्ज की थी। एक बार फिर राजपूत के इस केंद्र में कड़ा मुकाबला देखने को मिलने वाला है।
महाराजगंज के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर राजपूत की संख्या सबसे ज्यादा है, लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजपूतों के जरिए ही हार जीत तय होती हो। महाराजगंज में भूमिहार और यादव वोट बैंक भी मायने रखता है। इसके अलावा मुस्लिम वोटों की भी निर्णायक संख्या है।
2019 के नतीजे की बात करें तो महाराजगंज सीट से बीजेपी के जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने राजद के रणधीर सिंह को 2 लाख से ज्यादा वोटो से हरा दिया था। दूसरी तरफ तीसरे नंबर पर बीएसपी की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अनिरुद्ध प्रसाद काफी पीछे छूट गए थे। बड़ी बात ये रही कि 2014 में भी बीजेपी के जनार्दन ने ही इस सीट से जीत दर्ज की थी।