देश में लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। सात चरणों में होने वाले इस चुनाव के नतीजे 4 जून को आएंगे। अब सभी पार्टियों के अपने दावे हैं, जीत को लेकर सभी आश्वस्त भी दिख रहे हैं, लेकिन एक पहलू विपक्ष के पेट में दर्द दे रहा है। उसे ये समझ नहीं आ रहा कि आखिर इतने चरणों में चुनाव क्यों संपन्न करवाए जा रहे हैं। सवाल ये भी है कि अगर इतने चरणों में चुनाव हो रहे हैं तो क्या इससे किसी को फायदा भी पहुंचता है?
एंटी इनकमबेंसी का फैक्टर
अब वैसे तो इस सवाल का कोई एक जवाब नहीं हो सकता, लेकिन जानकार जरूर मानते हैं कि जब चुनाव ज्यादा चरणों में करवाए जाते हैं तो सत्ता पक्ष को इसका ज्यादा फायदा रहता है। समझने वाली बात ये है कि विपक्ष को तो सिर्फ सरकार फिर आना है, लेकिन सत्ता पक्ष को अपनी सत्ता बचानी है। ऐसे में उसे सिर्फ सत्ता वापसी की चिंता नहीं होती है, बल्कि उसके खिलाफ जो एंटी इनकमबेंसी बनती है, उससे भी निपटना पड़ता है।
नेरेटिव बिल्डिंग के लिए पूरा समय
लेकिन जब चुनाव ज्यादा चरणों में होते हैं तब नेरेटिव सेट करने के लिए भी उतना ही ज्यादा टाइम मिलता है। ड्राइविंग सीट पर सत्ता पक्ष रह सकता है। एक बड़ा फैक्टर ये भी रहता है कि अगर शुरुआती चरणों में कुछ चूक हो जाए तो उसकी भरपाई आगे चलकर की जा सकती है। ये प्वाइंट लागू विपक्ष पर भी होता है, लेकिन ज्यादा फायदा सत्ता पक्ष के पास रहता है।
क्षेत्रीय दल क्यों होते हैं परेशान?
एक बड़ी बात ये भी रहती है कि कई राज्यों में भी अलग-अलग चरणों में वोटिंग को संपन्न करवाया जाता है। इस वजह से कई जो क्षेत्रीय दल होते हैं, वे अपने राज्य तक ही सीमित रह जाते हैं। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में इस बार सात चरणों में वोटिंग होने जा रही है। यानी कि जितना चुनावी कार्यक्रम है, अंत तक यूपी में इलेक्शन मोड में ही रहने वाला है। इस स्थिति में सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी को करना पड़ेगा।
चरणों वाला चुनाव और यूपी पॉलिटिक्स
ये दो ऐसी पार्टियां हैं जिनके सपने जरूर यूपी से भी बाहर खुद को विस्तार देने के हैं, लेकिन क्योंकि चुनाव ही सात चरणों तक चलने वाले हैं, ऐसे में एक असमंजस की स्थिति बनी रहेगी- यूपी की सीटों पर प्रचार किया जाए या दूसरे राज्यों का रुख? दूसरी तरफ बीजेपी एक राष्ट्रीय पार्टी है जो हर राज्य में प्रचार लगातार जारी रखेगी। पीएम मोदी खुद उत्तर प्रदेश में चरण दर चरण कई रैलियां करेंगे। वे तो एक रैली यूपी तो दूसरी बंगाल में भी कर सकते हैं। ऐसे में कम समय में ज्यादा जगह पर प्रचार संभव रहेगा। लेकिन जो क्षेत्रीय पार्टियां हैं, उनके पास अवसर कुछ कम रहने वाले हैं।
जितनी बड़ी चुनावी मशीनरी उतना फायदा
यूपी के लिहाज से तो समझने वाली बात ये भी है कि वहां चुनाव पश्चिम यूपी से होता हुआ पूर्वांचल तक जाता है और हर चरण के बीच में कुछ दिनों का गैप दिया गया है। ऐसे में प्रचार का पूरा वक्त मिल रहा है और काफी आराम से किसी भी मुद्दे को लेकर नेरेटिव सेट किया जा सकता है। यहां भी अब क्योंकि बीजेपी की चुनावी मशीनरी ज्यादा मजबूत है, ऐसे में दूसरों की तुलना में ज्यादा लाभ की स्थिति में पार्टी रहने वाली है।
दो चुनावों का पैटर्न क्या बता रहा?
अब चुनाव आयोग तो तर्क देता है कि उसे अपनी तैयारी करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है, जितना बड़ा देश है उतनी तैयारियां भी करनी पड़ती हैं। उस बात को गलत नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि ज्यादा चरणों में होने वाले चुनाव कई बार सत्ता पक्ष को एक अपर हैंड देने का काम करते हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव 8 चरणों में किया गया था, वहीं 14 के चुनाव में तो 9 चरणों में इलेक्शन को संपन्न करवाया गया था। एक पार्टी की लहर रही, चरण दर चरण लीड मजबूत होती गई और एक पूर्ण बहुमत की सरकार देखने को मिली। अब 2024 में इन चरणों वाले चुनाव से क्या सियासी तस्वीर निकलकर सामने आती है, ये देखना दिलचस्प रहेगा।