Lok Sabha Election 2019ः भारत में संसदीय चुनाव के इतिहास में अब तक 44,962 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा है लेकिन इनमें से महज 22 लोग ही संसद की दहलीज पर पहुंचने में कामयाब हुए हैं। आजादी के बाद से अब तक हुए चुनाव में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या लगातार कमी देखने को मिल रही है। 1957 के बाद से हुए लोकसभा चुनाव में महज छह बार ही निर्दलीय उम्मीदवारों की गिनती दोहरी संख्या में पहुंची है।

सबसे अधिक 42 निर्दलीय सांसद पहली लोकसभा के लिए हुए चुनाव में निर्वाचित हुए थे। 533 सीटों पर लड़े गए चुनाव में निर्दलीय सांसदों की यह संख्या कुल सदस्यों का 8.73 प्रतिशत थी। 1952 में 37 सांसद निर्दलीय चुने गए थे। इन दोनों चुनावों के अलावा निर्दलीय सांसदों की संख्या 1962 में 20, 1967 में 35, 1971 में 14 और 1989 में 12 थी। इनके अलावा सभी 10 लोकसभा चुनावों में निर्दलीय सांसदों की गिनती दोहरी संख्या में नहीं पहुंच सकी।

साल 1991 में निर्दलीय सांसदों की गिनती सिंगल डिजिट में पहुंची बल्कि इसमें तेजी से गिरावट भी देखने को मिली। इस साल महज एक सांसद ही निर्दलीय जीतकर संसद पहुंचा। साल 1991 में 5154 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था। इस तरह यह निर्दलीय उम्मीदवारों की सफलता की सबसे कम दर (0.02 फीसदी) थी। अब तक हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 37 निर्दलीय सांसद जीत चुके हैं।

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में महज 3 निर्दलीय सांसद ही निर्वाचित हुए थे। इसी तरह निर्दलीय उम्मीदवारों को मिलने वाले वोट शेयर प्रतिशत में कमी देखने को मिली है। 1998 में निर्दलीय उम्मीदवारों को सबसे कम 2.37 फीसदी वोट मिले थे। इस साल मैदान में 1915 उम्मीदवारों में महज 6 निर्दलीय सांसद ही निर्वाचित हुए थे। 1957 में निर्दलीय उम्मीदवारों को सबसे अधिक 19.32 फीसदी मत मिले थे। उस साल 481 में से 42 निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे।

भले ही भारतीय लोकतंत्र में निर्धारित योग्यता लड़ने वाला कोई भी व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है लेकिन निर्दलीय उम्मीदवारों की घटती संख्या को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने इनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की अनुशंसा की थी। भारतीय विधि आयोग ने भी ‘चुनाव कानूनों में सुधार’ पर अपनी रिपोर्ट में निर्दलीय उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की सिफारिश की है। हालांकि इस पर अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।