Lok Sabha Election 2019: इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी के बाद फंड की कोई कमी नहीं है। जानकारों का मानना है इस चुनाव में नरेंद्र मोदी विपक्ष पर भारी पड़ने वाले हैं। अनुमान है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा दुबारा सत्ता में वापसी कर सकती है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के अनुसार इस बार लोकसभा चुनाव में करीब 59,828 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
इतने खर्चीले चुनाव के बारे में जानने वाली वाली बात यह है कि राजनीतिक दलों के पास इतना पैसा आ कहा से रहा है और दल इन पैसों को किस तरह से या किस मद में खर्च कर रहे हैं। पारंपरिक रूप से राजनीतिक दलों को नकद, चेक और इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिये चंदा मिलता था। साल 2017 की शुरुआत में भाजपा ने चुनाव के लिए चंदा देने के नियम में कई बदलाव किए।
सरकार ने राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट चंदे पर लगी सीमा, जो कि पिछले तीन साल के औसत लाभ का 7.5 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती है, को खत्म किया। ऐसी कंपनियों को भी चंदा देने की अनुमति दी गई जिनमें कुछ विदेशी हिस्सेदारी भी हो। इसके साथ ही कंपनियों के लिए यह बाध्यता भी खत्म की गई कि वे बताए कि उन्होंने किस दल को चंदा दिया है।
सबसे हाई प्रोफाइल बदलाव इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में किया गया। इसने व्यक्तियों या कंपनियों को राजनीतिक दलों को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के जरिये राजनीतिक दलों के खातों में पैसा जमा कराने की अनुमति दी। इसमें दान देने वाला जितने चाहे उतने मूल्य का बॉन्ड खरीद सकता है। उसकी पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
पार्टियों को बॉन्ड के जरिये मिलने वाली राशि की जानकारी देना जरूरी है लेकिन देने वाली की पहचान बताना अनिवार्य नहीं है। 31 मार्च 2018 को खत्म हुए वित्त वर्ष में भाजपा की आय 1020 करोड़ रुपये था। जो कि कांग्रेस के घोषित आय से पांच गुना अधिक थी।
साल 2014 में भाजपा ने चुनाव प्रचार में 712 करोड़ रुपये खर्च किए थे जो कि कांग्रेस की तुलना में 40 फीसदी अधिक था। मोदी की सत्ता में आने के बाद से पार्टी का घोषित खर्च पांच गुना बढ़कर 1309 करोड़ रुपये हो गया है।

