Lok Sabha Election 2019: बात 1991 के लोकसभा चुनाव की है। अप्रैल-मई के महीने में देश में दसवीं लोकसभा के चुनाव हो रहे थे। बिहार की राजधानी पटना से राज्य की सत्ताधारी पार्टी जनता दल के उम्मीदवार के तौर पर इन्दर कुमार गुजराल चुनावी मैदान में थे। उन्हें खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने पटना चुनाव लड़ने के लिए लाया था। उनके खिलाफ पूर्व पीएम चंद्रशेखर की पार्टी समाजवादी जनता पार्टी के टिकट पर तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा मैदान में थे। यशवंत सिन्हा का पटना से पुराना रिश्ता था। वो वहीं पढ़े-लिखे थे और उसके बाद पटना कॉलेज में पढ़ाते थे लेकिन उसी बीच उनका सेलेक्शन आईएएस के लिए हो गया था। बाद में उन्होंने आईएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति की राह पकड़ ली थी। बाद में सिन्हा चंद्रशेखर की सरकार में वित्त मंत्री भी बनाए गए थे।
यशवंत सिन्हा ने उस चुनाव को रोचक अंदाज में बाहरी बनाम बिहारी का बना दिया था। इंदर कुमार गुजराल पंजाब के रहने वाले थे। इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री रह चुके थे। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी और जनता दल में शामिल हो गए थे। पटना संसदीय क्षेत्र में कायस्थ और यादव मतदाताओं का खासा प्रभाव था। इसलिए यशवंत सिन्हा ने उन्हें सीधे बाहरी करार देकर मुकाबले को अपने पक्ष में करना चाहा पर गुजराल के चुनाव की कमान संभाल रहे लालू ने उसे पलटने में देर नहीं लगाई। लालू ने गंवई अंदाज में कहना शुरू किया कि गुजराल जी गुज्जर हैं और गुज्जर यादव जैसा ही होता है।
लालू चुनावी सभाओं में भोजपुरी में कहते, “गुजराल जी गुज्जर हईं। पंजाब में गुज्जर लोग यादव जइसन ही जात हवे। ई बाहरी ना हवें, अपने आदमी हवें (यादव)। यादव लोगन के तरह इहों के गांव, किसान, गरीब के भलाई करब। ईहां के अधिका से अधिका वोट देके जितावे के बा।” बिहार में उस वक्त लालू का सिक्का चलता था। उनके इस अंदाज और डायलॉग की तो घोर आलोचना हुई लेकिन इसका असर उनके कैडर मतदाताओं पर गहरा पड़ा। यादवों को लगने लगा कि गुजराल यादव हैं और उन्हें जिताना है। यशवंत जहां कायस्थ मतदाताओं को लामबंद करने में कामयाब थे, वहीं लालू यादव और अन्य पिछड़े मतदाताओं को लामबंद कर चुके थे।
जब चुनाव होने लगे तो इस संसदीय क्षेत्र के कई ग्रामीण बूथों से बूथ कैप्चरिंग की खबरें आने लगी। बिहार में उन दिनों चुनावों में खून-खराबा और बूथ कैप्चरिंग की बात आम थी। दबंगों ने न केवल बोगस वोटिंग की बल्कि बूथ भी लूट लिया। इसकी भनक लगने पर चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया। इसके दो साल बाद वहां उप चुनाव हुए तो अबकी बार न तो यशवंत सिन्हा मैदान में थे और न ही इंदर कुमार गुजराल। लालू यादव ने जनता दल के टिकट पर रामकृपाल यादव को उप चुनाव में उतारा था। इसी चुनाव में जीतकर रामकृपाल पहली बार सांसद बने थे। इसके बाद वो 1996 और 2004 में भी इस सीट से सांसद चुने जा चुके हैं। गुजराल भी बाद में अप्रैल 1997 से मार्च 1998 तक देश के 12वें प्रधानमंत्री बने।

