Lok Sabha Election 2019: बिहार के बेगूसराय में इस बार लड़ाई दिलचस्प है। नवादा से मौजूदा बीजेपी सांसद को इस बार पार्टी ने यहां भेजा है वही भाकपा (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी) की उम्मीद कन्हैया कुमार उनके सामने खड़े हैं। कन्हैया कुमार के आने के बाद भाकपा को भी इस सीट को लेकर उम्मीद है, वहीं बीजेपी को उम्मीद है कि जातिगत समीकरण ठीक बैठेगा और वे बाजी मार ले जाएंगे। बेगूसराय के जमीनी हालात के बारे में बात करें तो वहां प्रचार-प्रसार ने जोर पकड़ लिया है। कन्हैया और गिरिराज दोनों के रोड शो में जमकर भीड़ उमड़ी जिसकी चर्चा दिल्ली तक में भी हुई। मतदान 29 अप्रैल को होने वाला है।
बेगूसराय से कितने उम्मीदवार मैदान मेंः इस बार 2019 लोकसभा चुनाव में बेगूसराय के मैदान में 13 प्रत्याशी हैं, लेकिन मुख्य मुकाबले में गिरिराज सिंह, कन्हैया कुमार और तनवीर हसन ही हैं। तनवीर को भी किसी से कम नहीं माना जा सकता है, क्योंकि पिछली बार उन्होंने ही भाजपा के भोला सिंह को कड़ी चुनौती दी थी। हालांकि मोदी लहर के सहारे भोला ने तनवीर को 58 हजार वोटोंं से पराजित कर दिया था। भोला के स्वर्गीय होने के बाद अबकी भाजपा ने गिरिराज पर भरोसा जताया है, जो पिछली बार नवादा से सांसद बने थे। इस बार भी पुराना मोर्चा छोडऩे के लिए गिरिराज राजी नहीं थे, किंतु बाद में तैयार हो गए।
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जाति फैक्टर भी हावी: बेगूसराय को भूमिहार बहुल क्षेत्र माना जाता है। गिरिराज और कन्हैया दोनों इसी जाति से हैं। भाजपा का पुराना आधार और जातीय समीकरण गिरिराज के काम आ सकता है। यही संयोग कन्हैया के साथ भी है। तनवीर के पास राजद का मजबूत माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण है। भूमिहार के बाद वहां यादव-मुस्लिम ही प्रभावी हैं। इसलिए किसी की दावेदारी को कम करके नहीं आंका जा सकता है, बल्कि जातीय समीकरण के लिहाज से तनवीर भारी नजर आ रहे हैं। ऐसे में प्रारंभिक दौर में वोटों की छीना-झपटी के लिए कन्हैया का संघर्ष तनवीर से है। गिरिराज के सामने कन्हैया तनकर तभी खड़े हो सकेंगे जब तनवीर के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाएंगे। नाकाम हुए तो देशभर में फैले वाम विचारों और भाजपा विरोधी सियासत की उम्मीदों को झटका लग सकता है। कन्हैया पिछड़े तो गिरिराज के सामने तनवीर खड़े मिलेंगे। किंतु जीत के लिए उन्हें मुस्लिम-यादव के साथ अन्य पिछड़ी जातियों का भी सहारा चाहिए। कन्हैया अगर महागठबंधन के प्रत्याशी होते तो भाजपा को कड़ी और बड़ी चुनौती दे सकते थे। ऐसा हुआ नहीं तो गिरिराज को फौरी तौर पर राहत मिलती दिख रही है, किंतु दोबारा संसद पहुंचने के लिए उन्हें धार्मिक आधार पर गोलबंदी का जुगाड़ करना होगा।
परिसीमन का क्या असर: नए परिसीमन ने इसकी भौगोलिक पहचान के साथ-साथ सियासी मिजाज को भी बदल दिया है। 2009 से पहले यह क्षेत्र दो हिस्सों में बंटा था। पहला बेगूसराय और दूसरा बलिया। 1962 से 1971 तक पुराने बेगूसराय में भाकपा और कांग्र्रेस के बीच ही लड़ाई चलती रही थी, जबकि बलिया वामपंथ का गढ़ था। यहां 1980 से 1996 के बीच हुए पांच आम चुनावों में चार बार भाकपा ने जीत दर्ज की। 2009 के परिसीमन ने बेगूसराय को पुरानी पहचान दोबारा दिला दी है। परिसीमन के बाद पहले चुनाव में जदयू के राजीव रंजन सिंह ने भाकपा के दिग्गज नेता शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हरा दिया। हालांकि भाकपा की मजबूत उपस्थिति बनी रही।
पिछली बार क्या रहा था परिणाम
प्रत्याशी | पार्टी | कुल वोट |
भोला सिंह | भाजपा | 4,28,227 |
तनवीर हसन | राजद | 3,69,892 |
राजेंद्र प्रसाद सिंह | भाकपा | 1,92,639 |
नोटा | 26,600 |