लोकसभा चुनाव में जैसे-जैसे चरण पूरे होते जा रहे हैं, मुद्दे भी अपना रास्ता तय कर रहे हैं। शुरुआत विकसित भारत और भ्रष्टाचार से हुई थी, दूसरे चरण में तक वो मंगलसूत्र और संविधान बचाने पर आई। तीसरे चरण में पाकिस्तान की एंट्री हुई और अब चौथे चरण से पहले मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा गरमा गया है। इस समय लालू प्रसाद यादव का एक बयान चर्चा का विषय बना हुआ है। राजद प्रमुख ने कह दिया है कि मुस्लिमों को आरक्षण तो जरूर मिलना चाहिए, पूरा मिलना चाहिए।
लालू ने क्या बयान दिया, बीजेपी ने क्या समझा?
अब लालू का ये बयान ही एक नए विवाद को जन्म दे गया है। जिस देश में धर्म के आधार पर वोट देने की बात कहीं नहीं लिखी है, वहां पर लालू ऐसा बयान देकर क्या कहना चाहते हैं। सफाई तो जरूर दी गई है कि वे धर्म के आधार पर आरक्षण देने की बात नहीं कर रहे थे, लेकिन उनके बयान से लगी विवाद की आग बीजेपी खेमे तक पहुंच चुकी है जहां पर घी डालकर उसे और ज्यादा भुनाने का काम हो रहा है।
लालू ने नहीं की कोई गलती, सब पहले से तय!
वैसे लालू प्रसाद यादव राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, गलती से भी वे अगर कोई बयान दे जाएं, उसके पीछे भी रणनीति होती है। इस समय देश में ध्रुवीकरण वाले कई मुद्दे राजनीतिक फिजा में घुल चुके हैं, बात चाहे महिलाओं के मंगलसूत्र की हो, ज्यादा बच्चे वालों को संपत्ति बांटने का नेरेटिव हो या फिर पाकिस्तान का जिक्र, ये सारे बयान बीजेपी किस मंशा के साथ उठा रही है, हर कोई ये समझ चुका है। लालू भी समझदार हैं, ऐसे में ध्रुवीकरण का जवाब ध्रुवीकरण से ही देना चाहते हैं।
कितनी सीटों पर असर रखते मुस्लिम?
अब समझने वाली बात ये है कि देश में मुस्लिम आबादी लोकसभा की कितनी सीटों पर अपनी भूमिका निभाती है। आंकड़े बताते हैं कि लोकसभा की 35 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी से भी ज्यादा चल रही है, 38 सीटें ऐसी हैं जहां पर आबादी 30 फीसदी के आसपास बैठती है। अगर और ज्यादा ध्यान से समझने की कोशिश करें तो 145 सीटें ऐसी सामने आती हैं जहां पर मुस्लिम आबादी 11 से 20 प्रतिशत चल रही है। यानी कि अगर इन्हें जोड़ दिया जाए तो 218 ऐसी सीटें सामने आती हैं जहां पर हार-जीत के लिए मुस्लिम वोट ही मायने रखता है।
अगर राज्यों के लिहाज से बात करें तो लोकसभा में 30% से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सीटें इस प्रकार से हैं- यूपी की 8, असम की 4, पश्चिम बंगाल की 9, बिहार की 3, केरल की 4, तेलंगाना की 1, लक्ष्यद्वीप की 1, जम्मू-कश्मीर की 5 सीटें शामिल हैं।
एक वर्ग के वोट के लिए बाकी की कुर्बानी?
लालू प्रसाद यादव ने आरक्षण बयान से इन्हीं 218 सीटों पर अपना फोकस जमाया है। राम मंदिर कार्यक्रम से दूरी बनाकर इंडिया गठबंधन के तमाम नेताओं ने पहले ही एक संदेश दे दिया था, वो संदेश था मुस्लिमों को नाराज ना करने का, उनके प्रति अपनी वफादारी निभाने का। अब जब एक कदम आगे बढ़कर लालू ने उन्हें पूरा आरक्षण देने की बात कर दी है, 218 सीटों का मोह साफ दिखाई दे रहा है, चाहे इसके लिए 325 सीटों की तिलांजलि ही क्यों ना देनी पड़ जाए।
मुश्किल में इंडिया, बीजेपी करेगी ध्रुवीकरण?
बीजेपी तो खुद लालू के बयान को इसी तरह से पेश भी करना चाहती है। कहा जा रहा है कि सिर्फ M फैक्टर पर फोकस किया जा रहा है, यादवों की राजनीति को भी पीछे छोड़ दिया गया है। ये बयान मायने रखता है क्योंकि बीजेपी लंबे समय से यादव वोटबैंक में बड़ी सेंधमारी करना चाहती है। इसी वजह से एमपी में मोहन यादव को सीएम भी बनाया गया। अब बीजेपी का ये काम कुछ आसान बन सकता है क्योंकि लालू के आरक्षण बयान ने इंडिया गठबंधन को एक और विवाद में फंसा दिया है।
मंगलसूत्र-राम मंदिर बनाम मुस्लिम आरक्षण
इंडिया गठबंधन के लिए ये ज्यादा बड़ी चुनौती इसलिए भी है क्योंकि बीजेपी ने ये नेरेटिव पहले से ही सेट कर रखा है कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई तो मुस्लिमों में देश की संपत्ति बांट देगी। ये बात हकीकत से दूर हो सकती है, लेकिन राजनीति में सबकुछ जायज है और उसी दिशा में बीजेपी आगे भी बढ़ रही है। यानी कि अगर इंडिया गठबंधन आरक्षण के नाम पर मुस्लिमों का ध्रुवीकरण करेगा तो बीजेपी मंगलसूत्र, राम मंदिर के नाम पर हिंदू वोटरों का ध्रुवीकरण करेगी। अब किसका ध्रुवीकरण चुनावी मौसम में ज्यादा सटीक बैठता है, वही से अगली सरकार का निर्णय होने वाला है।