कर्नाटक चुनाव में इस बार बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि बीएस येदियुरप्पा ने खुद चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया है। उनका चुनाव ना लड़ना लिंगायत समुदाय के बीच में ज्यादा अच्छा मैसेज लेकर नहीं गया है। इस सब के ऊपर जिस शिकारीपुरा सीट से इस बार येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र ताल ठोंक रहे हैं, वहां पर उनकी सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस नहीं है, बल्कि उनके पिता की ही जबरदस्त लोकप्रियता है।
पिता लोकप्रिय, बेटे को नुकसान तो नहीं हो जाएगा?
असल में शिकारीपुरा में कई जगह देखा जा रहा है कि लोगों के मन में आज भी येदियुरप्पा ही बसे हुए हैं, उनके लिए वहीं उम्मीदवार भी हैं। ऐसे में लोगों के बीच में पहले ये धारणा तोड़ना कि इस बार येदियुरप्पा नहीं बल्कि विजयेंद्र चुनाव लड़ रहे हैं, ये चुनौती बन गया है। एक महिला तो अपने घर के बाहर खड़े होकर पूछ रही हैं कि क्या येदियुरप्पा आ गए? जब उन्हें बताया गया कि इस बार उनके बेटे यहां से उम्मीदवार हैं, वे निराश नजर आईं।
अब ये सिर्फ कोई एक शख्स की प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि कई लोग ऐसी ही बातें कर रहे हैं। ऐसे में पार्टी के लिए जो इस समय प्रचार कर रहे हैं, उनका जोर इस बात पर भी है कि लोगों के कन्फ्यूजन को दूर किया जाए, स्पष्टता से बताया जाए कि इस बार येदियुरप्पा नहीं बल्कि उनके बेटे चुनाव लड़ रहे हैं। लोगों को जोर देकर कहा जा रहा है कि विजयेंद्र एक अच्छा लड़का है, उसने अपने पिता के क्षेत्र में बेहतरीन काम किया है। बातचीत में एक फॉरेस्ट ऑफिसर ने तो यहां तक कहा है कि विजयेंद्र को वोट कर कर्नाटक का नया नेता बनाया जाए।
विजयेंद्र की क्या रणनीति चल रही है?
वैसे विजयेंद्र खुद भी अपने पिता की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। वे जगह-जगह प्रचार के दौरान खुद कह रहे हैं कि जनता ने उनके पिता को पूरा सपोर्ट किया है, उन्हें लगातार जिताया है, अब वे भी ऐसे ही समर्थन की उम्मीद कर रहे हैं।
अब येदियुरप्पा की लोकप्रियता तो विजयेंद्र के लिए थोड़ी मुश्किलें खड़ी कर ही रही है, इसके अलावा जिस तरह से राज्य सरकार ने आरक्षण में बड़ा बदलाव किया है, ये भी एक चुनौती बन गया है। जब से राज्य सरकार ने कहा है कि वो मुस्लिमों के चार फीसदी आरक्षण को दो-दो प्रतिशत वोकलिंगा और लिंगायत समाज में बांट देगी, इस पर अलग ही विवाद देखने को मिल रहा है। असल में जब से 17 प्रतिशत आरक्षण को आतंरिक रूप से बांटने की बात हुई है, बंजारा समुदाय खासा नाराज हो गया है। आरक्षण के आतंरिक बंटवारे से पहले बंजारा समुदाय को 10 फीसदी तक आरक्षण का लाभ मिल रहा था, लेकिन अब ये घटकर 4.5 फीसदी रह जाएगा। ऐसे में बंजारा समुदाय का गुस्सा विजयेंद्र को सियासी झटका दे सकता है।
आरक्षण का दांव कहीं गले की फांस तो नहीं बन गया?
वैसे इस पूरे विवाद पर खुद विजयेंद्र कहते हैं कि विपक्ष द्वारा एक गलत प्रचार किया जा रहा है। लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। उल्टा येदियुरप्पा ने तो बंजारा गांव के विकास के लिए कॉरपोरेशन तक का गठन किया था। अब ये तर्क लोगों के बीच में कितना सटीक बैठता है, ये तो 13 मई को ही पता चल पाएगा। वैसे शिकारीपुरा के कुछ इलाकों में अभी भी बीजेपी के लिए मजबूत बेस देखने को मिल रहा है।
उदाहरण के लिए Agrahara Muchadi गांव में अच्छी संख्या में लिंगायत वोटर है। यहां के स्थानीय नेता शिवालिंगाय दावा करते हैं कि 1200 में से 900 वोट तो कम से कम विजयेंद्र के लिए लाए जाएंगे। उनका कहना है कि येदियुरप्पा ने यहां के हर गांव की तस्वीर बदल दी है। मंदिर के विकास के लिए भी फंड दिए गए हैं, स्कूल बन गए हैं, कॉलेज हैं। अब येदियुरप्पा इतना विकास इसलिए कर पाए हैं क्योंकि वे शिकारीपुरा से ही आठ बार विधायक रहे हैं, सिर्फ1999 में उन्हें एक बार हार का सामना करना पड़ा था।
कर्नाटक विधानसभा की क्या स्थिति है?
कर्नाटक चुनाव की बात करें तो 10 मई को वोटिंग होने वाली है और 13 मई को नतीजे आएंगे। वर्तमान में राज्य में बीजेपी की सरकार है और बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. उस समय बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसके खाते में 104 सीटें गई थीं, कांग्रेस की बात करें तो उसका आंकड़ा 80 पहुंच पाया था और जेडीएस को 37 सीटों के साथ संतुष्ट करना पड़ा था।